(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण बुनियादी ढांचे का विकास [AUGUST-2018]


(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण बुनियादी ढांचे का विकास [AUGUST-2018]


::ग्रामीण बुनियादी ढांचे का विकास::

बुनियादी ढांचा किसी देश की प्रगति और आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और किसी राष्ट्र की प्रगति की परख उसके बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता से होती है। बुनियादी ढांचा निजी और सार्वजनिक, भौतिक और सेवाओं संबंधी और सामाजिक व आर्थिक किसी भी तरह का हो सकता है। आर्थिक बुनियादी ढांचे के अंतर्गत परिवहन, संचार, बिजली, सिंचाई और इसी तरह की सुविधाएं शामिल हैं जबकि सामाजिक अवसंरचना के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता, आवास आदि आते हैं। इन क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के विकास से निवेश दक्षता में वृद्धि होती है, विनिर्माण में प्रतिस्पर्धात्मकता आती है और निर्यात, रोजगार, शहरी व ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है तथा ग्रामीण विकास व जीवन की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ देश को अनेक फायदे मिलते हैं।

रंगराजन आयोग (2001) ने बुनियादी ढांचे की परिभाषा किसी स्थान विशेष में स्थापित एक ऐसी व्यवस्था के रूप में की है जो स्वाभाविक एकाधिकार वाली, उच्च निवेश से निर्मित, बेची न जाने योग्य, प्रतिद्वंद्विता से मुक्त और मूल्य विशिष्टता वाली हो। राकेश मोहन कमेटी रिपोर्ट (1996) और केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) ने बुनियादी ढांचे के अंतर्गत बिजली, गैस, जल आपूर्ति, दूरसंचार, सड़क, औद्योगिक पार्क, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे, शहरी अवसंरचना तथा कोल्ड स्टोरेज के ढांचे को शामिल किया है। भारतीय रिजर्व बैंक (2007) बुनियादी ढांचे के तहत बिजली, दूरसंचार, रेलवे, सड़क और पुलों, बंदरगाहों व हवाई अड्डों, औद्योगिक पार्को तथा शहरी अवसंरचना (जल आपूर्ति, स्वच्छता और जल-मल प्रणाली) को शामिल मानता है। बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) (2008) ने बुनियादी ढांचे में सड़कों (जिनमें टोल वाली सड़कें भी शामिल हैं), पुलों, रेलवे प्रणाली, बंदरगाहों, अंतर्देशीय जलमार्गों व अंतर्देशीय बंदरगाहों, जलापूर्ति परियोजनाओं, सिंचाई परियोजनाओं, पानी साफ करने की प्रणालियों, स्वच्छता और जल-मल निस्तारण प्रणाली या ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, दूरसंचार सेवाओं (जिसमें मूल दूरसंचार सेवाएं और सेल्यूलर फोन सेवा शामिल हैं), घरेलू उपग्रह सेवाओं, ट्रैकिंग नेटवर्क, ब्रॉडबैंड नेटवर्क तथा इंटरनेट सेवाओं, औद्योगिक पार्क या विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, विद्युत ट्रांसमिशन और वितरण, संरक्षण की दृष्टि से निर्माण, प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों, फल-सब्जी और फूलों जैसे जल्द खराब होने वाली चीजों के भंडारण, गुणवत्ता परीक्षण सुविधाओं, शिक्षा संस्थाओं, अस्पतालों तथा प्राधिकरण द्वारा सरकारी गजट में अधिसूचित इसी तरह की कोई अन्य सार्वजनिक सुविधा को शामिल किया है।

सड़कों का बुनियादी ढांचा

सड़क प्रणाली देश की अर्थव्यवस्था की धुरी है और विकास के केंद्र के रूप में कार्य करती है। इसके जरिए माल और कृषि पदार्थों का ढुलान, पर्यटन और संपर्क जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य संपन्न होते हैं। देश में सभी मौसमों में चालू रहने वाली बेहतरीन किस्म के मजबूत सड़क नेटवर्क को बढ़ावा देने से तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ, व्यापार के सुचारू रूप से संचालन तथा देश भर के बाजारों के समन्वयन में मदद मिलती है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) का मूल उद्देश्य देश के ऐसे गांवों को सड़क संपर्क से जोड़ना है जो अब तक अलग-थलग पड़े हुए थे। दिसंबर 2017 तक ऐसे करीब 82 प्रतिशत गांवों को सड़क संपर्क से जोड़ा जा चुका था। बाकी 47,000 गांवों को मार्च 2019 तक जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। | सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का 2017-18 का कुल खर्च करीब 64,900 करोड़ रुपये था जोकि 2016-17 के संशोधित अनुमान से 24 प्रतिशत ज्यादा है। वर्ष 2017-18 में कुल खर्च में से सबसे अधिक आबंटन सड़कों और पुलों के निर्माण के लिए रखा गया, इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लिए 37 प्रतिशत का आबंटन किया गया जिसमें राजस्व खर्च 10,723 करोड़ रुपये और पूंजी खर्च 54,177 करोड़ रुपये है।

संचार अवसंरचना

ई-गवर्नेस, बैंकों, वित्तीय सेवाओं, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पर्यटन, लॉजिस्टिक्स, परिवहन और नागरिक सेवाओं के क्षेत्र में नकदीविहीन लेन-देन में विकास से दूरसंचार क्षेत्र में जबर्दस्त तेजी आई है। दूरसंचार क्षेत्र में प्रगति से स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी पहल के जरिए नवसृजन और उद्यमिता को बढ़ावा मिला है। आज देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों के बीच मोबाइल फोन के जरिए संपर्क संभव है। दूरसंचार क्षेत्र आज देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है। ब्रॉडबैंड फोरम ऑफ इंडिया (बीआईएफ) के अनुसार 2015 में भारत के जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 1.75 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया था।

नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना

भारत नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा उत्पन्न करने वाले प्रमुख देशों में से एक के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। 31 मार्च, 2018 तक देश की कुल संस्थापित क्षमता का 20 प्रतिशत (69.2 गीगावॉट) इस तरह के स्रोतों से प्राप्त हो रहा था जिसमें 33 प्रतिशत योगदान जलविद्युत का था। देश की पवन ऊर्जा क्षमता 31 मार्च, 2018 को 34,046 मेगावॉट थी और वह पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने वाला दुनिया का चौथा प्रमुख देश बन चुका था। इसी तरह 2022 तक भारत ने 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। बायोमास को जलाकर बिजली उत्पन्न करने, बायोमास से गैस उत्पन्न कर बिजली बनाने और गन्ने की खोई से बिजली उत्पादन 31 मार्च, 2018 को 8.3 गीगावॉट पहुंच चुका था जबकि घरेलू बायोगैस संयंत्रों से 39.8 लाख यूनिट बिजली उत्पन्न करने की संस्थापित क्षमता प्राप्त की जा चुकी थी। अंतर्राष्ट्रीय सौर अलायंस परियोजना से दुनिया भर में 120 देशों में सौर ऊर्जा के उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है और भारत ने 2030 तक अपने कुल विद्युत उत्पादन का 40 प्रतिशत गैर–जीवाश्म ईंधन वाले सोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण भारत में प्रत्येक व्यक्ति की पर्याप्त स्वच्छ पेयजल और भोजन संबंधी अन्य आवश्यक बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ये सभी चीजें चिरस्थायी आधार पर मिलती रहें, इसके लिए भी बुनियादी ढांचे और क्षमता का सृजन करने और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति प्रणाली के कुशलतापूर्वक संचालन की क्षमता सृजित करने का भी लक्ष्य रखा गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत 15 मार्च, 2017 तक 13 लाख (77 प्रतिशत) बसावटों को इस कार्यक्रम के दिशानिर्देशों के तहत प्रति व्यक्ति रोजाना 40 लीटर पानी उपलब्ध कराया जाने लगा था जबकि 33,086 परिवार आंशिक रूप से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के कार्यक्रम के दायरे में लाए गए थे और इनमें स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता 40 लीटर से कम थी। इसके अलावा 64,094 (3.73 प्रतिशत) गांव ऐसे थे जिनमें पानी की गुणवत्ता संबंधी समस्या का समाधान होना बाकी था।

स्वच्छ भारत अभियान

2014 में प्रारंभ किया गया स्वच्छ भारत अभियान लोगों में स्वच्छता, आरोग्य और स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एक क्रांतिकारी पहल है। इसमें शानदार प्रगति हुई है। वर्ष 2018-19 तक देशभर के 85 प्रतिशत इलाके को इसके दायरे में लिया जा चुका था और 391 जिलों के 3.8 लाख गांवों को खुले में शौच की बुराई से छुटकारा दिलाया जा चुका था। स्वच्छ भारत ग्रामीण अभियान के तहत मई 2018 तक 7.4 करोड़ से अधिक निजी घरेलू शौचालय बनाए जा चुके थे। इसके अंतर्गत दिसंबर 2018 तक शौचालयों के निर्माण का शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। लोग इस कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और अपने घर में निजी शौचालयों का निर्माण कर रहे हैं। लोगो की मानसिकता में बदलाव आने और शौचालयों की सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ने में लोग कूड़े-कचरे के निपटान के कार्यकर्मों में भी हिस्सा लेने लगे हैं।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई)

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना उत्पादन की दृष्टि से लाभप्रद खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की बेहद अभिनव योजना है। इसके अंतर्गत खेती का रकबा बढ़ाने के लिए निवेशों को समेकित किया गया है और पानी के उपयोग में दक्षता लाने के प्रयास किए गए हैं। जलाशयों को फिर से लबालब करने, गंदे पानी को साफ कर सिंचाई में उपयोग में लाने की भी व्यवस्था की गई है। इसके अंतर्गत जल संरक्षण, खेती के लिए सिंचाई तालाबों के निर्माण, वर्षाजल संचय ढांचों के निर्माण, छोटे चक बांधों और कंटूर बांधों के निर्माण, डाइवर्जन कैनलों और खेतों में छोटी नहरें बनाने, पानी के डाइवर्जन और लिफ्ट सिंचाई के साथ-साथ जल वितरण प्रणालियों के विकास, ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर्स से सिंचाई, पिवोट और रेनगन से सिंचाई के लिए ढांचों के निर्माण के जरिए किसानों को सिंचाई का पक्का साधन मुहैया कराने का प्रयास किया गया है। इसके लिए 2015-16 के बजट में 5,300 करोड़ रुपये का बजट खर्च रखा गया था।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत किए गए कार्य बुनियादी तौर पर ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास के कार्य हैं। इनमें कंटूर खाइयां और कंटूर बांधों के निर्माण, खेतों में मेड़ लगाने, गैबिन स्ट्रक्चर, मिट्टी के बांधों, खोद कर बनाए गए खेती के तालाबों, खाद और कम्पोस्ट अवसंरचना जैसे कृषि विकास कार्यों, मुर्गीपालन और बकरी पालन जैसे पशुधन विकास कार्यक्रमों, मत्स्य पालन योजनाओं, बरसाती पानी की निकासी के लिए नालों के निर्माण, पेयजल और स्वच्छता कार्यक्रमों जैसे सोखता गड्ढा, रिचार्ज पिट, व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण, स्कूलों व आंगनवाड़ियों में शौचालयों के इंतजाम, वा के पानी की निकासी के लिए नहरों की मरम्मत और उन्हें गहरा करने और लघु, अति लघु तथा सेतों की नहरों के विकास जैसे सिंचाई ढांचे के विकास की व्यवस्था की गई है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत 2017-18 में 48,000 करोड़ रुपये का बजट आबंटन किया गया और वित्त वर्ष 2018-19 में 55,000 करोड़ रुपये आबंटित किए गए हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं और गांवों के लोगों को आजीविका में मदद मिली है।

निष्कर्ष

बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता देना एक प्रगतिशील कदम है, जिसे ऐसी सामाजिक संपत्ति के निर्माण की गतिविधि माना जा सकता है और इसके माध्यम से उत्पादक गतिविधियों, आजीविका और जीवन गुणवत्ता के स्तर में सुधार के प्रयासों को तेज किया जा सकता है। आवास, संपर्क, विद्युतीकरण के साथ-साथ बैंकिंग, संचार, सड़क और आवास जैसी आर्थिक अवसंरचना से जुड़ी मूलभूत बुनियादी सेवाओं के उपलब्ध हो जाने से आज देश संभ्रांत और विकसित राष्ट्र बनने की दहलीज पर खड़ा है। सरकार सिंचाई के बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दे रही है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और फसल बीमा जैसे कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई है, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और स्वास्थ्य बीमा के जरिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ किया गया है। स्टैंडअप और स्टार्टअप, नकदीरहित लेनदेन, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, ई-गवर्नेस तथा एम-गवर्नेस जैसी कई योजनाएं प्रारंभ की गई हैं। ये सब प्रयास राष्ट्र को चिरस्थायी सामाजिक-आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर करने की दिशा में आगे ले जाने के लिए प्रगतिशील और सुसंगत कोशिश हैं। इनसे देश के ग्रामीण इलाकों में सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना का टिकाऊ तरीके से विकास होगा जिससे ग्रामीण लोगों की आजीविका में बढ़ोतरी होगी, उन्हें श्वारा व शिक्षा की बेहतर सुविधाएं मिलेगी और चिरस्थायी आजीविका प्रदान करने वाली प्रणाली कायम होने से जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार आने की संभावना है।

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Courtesy: Kurukshetra