(The Gist of Kurukshetra) लाभकारी किसानी की दिशा में नई पहल [April-2018]
(The Gist of Kurukshetra) लाभकारी किसानी की दिशा में नई पहला [April-2018]
लाभकारी किसानी की दिशा में नई पहल
संसद के बजट सत्र के दौरान एक सवाल के लिखित जवाब में कृषि एंव किसान कल्याण राजयमंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जानकारी दी कि एक सर्वे के मुताबिक हर चार में से एक किसान पैदावार की कम कीमत को लेकर परेशान है और ये हाल किसी एक इलाके या क्षेत्र का नहींबल्कि पूरे देश का है। सेंटर फॉर स्टडी एंड डेवलपिंग सोसायटिज के मूड ऑफ द नेशन 2018 सर्वे में किसान की परेशानी की जिन वजहों देखें सूची संख्या 1) का जिक्र किया गया, उनमें फसल की वाजिब कीमत के बाद सिंचाई सुविधाओं का अभाव, फसल बर्बाद हो जाना, सरकार की नजरअंदाजी, कच्चे माल की ऊंची लागत वगैरह शामिल हैं। जहां देश की करीब दो तिहाई से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है, वहां पर ऐसी परेशानियों का सामने आना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ा करता है। ऐसे में ये सवाल उठता है कि इन चुनौतियों से निबटने के लिए सरकार क्या कर रही है? क्या कृषि व संबद्ध क्षेत्रों से जुड़ी योजनाएं इस चुनौती से निबटने में सक्षम हैं या नहीं? इन सारे सवालों के केंद्रबिंदु में है किसानों को उनकी फसल के लिए लाभकारी कीमत प्रदान करना। ये कैसे होगा?
इसके लिए एक विशेष लक्ष्य पर काम किया जा रहा है। आइये देंखे की ये विशेष लक्ष्य क्या है , उसे हासिल केने के लिए किन योजनाओ पर काम चल रहा है और उन योजनाओ के लिए बजट से कितनी मदद मिल रही है।
किसानो की आमदनी दुगुनी करना
वर्ष 2018 - 19 का आम बजट पेश करने के दौरान
वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली ने खा था की हम किसानो की आमदनी बढ़ाने पर विशेष जोर दे
रहे है। हम कृषि को एक खर्च करके सामान भूमि पर कहि ज्यादा उपज सुनिश्चित क्र सके
और उसके साथ ही अपनी उपज की बेहतर कीमते भी प्राप्त कर सके।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके है की देश की 75 वी वर्षगांठ यानि
2022 तक किसानो की आमदनी को दुगुनी करने का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को हासिल करने के
लिए आधारभूत सिद्धांत उत्पादन की लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक यानि लागत से
डेढ़ गुना दाम दिलाना है। वर्ष 2017-18 की रबी फसलों के लिए अधिकांश घोषित फसलों का
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी लागत से कम से डेढ़ गुना ज्यादा पहले ही तय किया
जाता जा चूका है।
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समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएचके जरिए बागवानी फसलो की पैदावार की ऊंची दर हासिल करने का लक्ष्य है।
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कैसे घटे लागत : इस समूह में तीन योजनाओं का जिक्र किया जा सकता है:
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मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) की मदद से ये जाना जाता है कि खास जगह की मिट्टी की सेहत कैसी है, उसे किस तरह से और बेहतर बनाया जा सकता है। सेहत के मुताबिक तय होता है कि वहां किस तरह की खाद की जरुरत है। इन उपायों के जरिए किसानों का खर्च कम किया जाना संभव हो पाता है।
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निमलेपित यूरिया (एनसीयू) के जरिए कोशिश ये है कि यूरिया का उचित इस्तेमाल हो सके। चूंकि यूरिया की खुदरा कीमत सरकार तय करती है और ये किसानों को बेहद सस्ती कीमत पर मिलती है, इसीलिए किसान दूसरे खाद के मुकाबले यूरिया का इस्तेमाल करना ज्यादा उचित समझते हैं. भले ही मिट्टी में उसकी जरुरत हो या नहीं। यही नहीं इस खाद के गलत इस्तेमाल को रोकने में भी नीमलेपित यूरिया कारगर साबित हो रहा है। दूसरी ओरइस कदम से फसल में नाइट्रोजन की उपलब्धता को बढ़ाने में भी मदद मिलगी।
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प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (सूक्ष्म सिंचाई घटक एव लक्ष्य 12 लाख हेक्टेयर प्रति वर्षके तहत हर खेत को पानी पहुंचाने की कोशिश है। ये बात सर्वविदित है कि सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भरता कई मौकों पर किसानों के लिए भारी परेशानी का सबब बन जाती है। अब ऐसी स्थिति से निबटने के लिए जरूरी है कि देश में उपलब्ध जन-संसाधनों का बेहतर तरीके से उपयोग कर किसानों की मदद की जाए। इस दिशा में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना मददगार साबित होगी।
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कैसे मिले लागत से ज्यादा यानी लाभकारी आय : इसके ए सरकार की कई योजनाएं हैं जिनका ब्यौरा कुछ इस तरह है:
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राष्ट्रीय कृषि मंडी योजना यानी ई नैम के तहत एक राष्ट्र एक मंडी की सोच पर अमल किया जा रहा है। योजना के तहत मंडी व्यवस्था में व्यापक फेरबदल करना है जिससे किसानों को ये पता चल सके कि किस तरह से उसे बेहतर कीमत मिल सकेगी। साथ ही किसानों को पारदर्शी तरीके से लाभकारी कीमत मुहैया कराना भी सुनिश्चित करना है।
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कृषि उत्पाद एवं पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2017 के रूप में एक नया मॉडल जारी किया गया ताकि विभिन्न राज्य और केंद्रशासित प्रदेश कृषि उत्पादों के विपणन को और बेहतर बना सकें। इस मॉडल के तहत निजी मंडियों की स्थापनाप्रत्यक्ष विपणनकिसान उपभोक्ता मंडियों और विशेष जींस मंडियों के साथ वेयरहाउससाइलोज
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वेयरहाउसिंग सुविधा - भंडारण एक बड़ी समस्या है। भंडारण की पर्याप्त सुविधा नहीं होने की वजह से किसान मजबूरी में अपनी पैदावार औनेपौने भाव पर बेच देता है। इसी को ध्यान में रखते हुए पैदावार तैयार हो जाने के बाद रियायती दर पर वेयरहाउसिंग सुविधा और फसल बाद कर्ज का इंतजाम है।
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सरकार 22 अधिदेशित फसलों (खरीफ की 14 फसलरबी की 6 फसलकोपरा और पटसन) का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी तय करती है। विशेष परिस्थतियों में राज्य सरकार के आग्रह पर राशन की दुकानों से बेचे जाने के लिए केंद्र सरकार विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों की मदद से तिलहन, दलहन और कपास की खरीद करती है जिसके जरिए किसानों और ग्राहकों दोनों को ही मदद पहुंचाने की कोशिश होती है।
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फलसब्जियों जैसे नाशवान प्रकृति के कृषि व बागवानी उत्पादो की खरीद के लिए मंडी हस्तक्षेप योजना है।
कैसे करे फसल जोखिम बीमा का योजना -
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के तहत प्राकृतिक आपदाओं कीट और रोगों के परिणामस्वरूप अधिसूचित फसल में से किसी की विफलता की स्थिति में किसानों को बीमा कवरेज और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। साथ ही, इसके जरिए कृषि में किसानों की सतत प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए उनकी आय को स्थायित्व देने का भी लक्ष्य है। योजना में शामिल किसानों द्वारा सभी खरीफ फसलों के लिए केवल 2 प्रतिशत एवं सभी रबी फसलों के लिए 15 प्रतिशत का एक समान प्रीमियम का भुगतान किया जाना है। वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के मामले में प्रीमियम केवल 5 प्रतिशत होगा। अधिसूचित क्षेत्रों में अधिसूचित फसल उगाने वाले पट्टेदार जोतदार किसानों सहित सभी किसान कवरेज के लिए पात्र हैं। यह योजना सभी किसानों के लिए है। यह कर्ज लेने वाले किसानों के लिए अनिवार्य है, जबकि अन्य किसानों के लिए स्वैच्छिक।
कैसे जारी रहे खेती का सिलसिला
किसानों के लिए अपने उत्पादों की न केवल लाभकारी आय जरूरी है, बल्कि ये भी देखना है कि वो लगातार खेतीबाड़ी में लगा रहे। ये मुमकिन हो सकता है परम्परागत खेती के इतर दूसरे तौर-तरीकों को बढ़ावा देकर जिससे किसानों को अतिरिक्त आय हो सके इसके लिए सरकार ने कुछ खास योजनाएं शुरु की हैं, मसलन
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परम्परागत कृषि विकास योजना यानी पीकेवीवाई के तहत जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे जहा एक और मिट्टी की सेहत सुधरेगी, वहीं किसान के लिए आय बढ़ाने का नया जरिया भी तैयार होगा।
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खेतों में वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए हर मेड़ पर पेड़ की योजना शुरू की गई है। इसके जरिए एक तरफ जहां मिट्टी की सेहत बेहतर होती है, वहीं दूसरी ओर इमारती लकड़ी मुहैया करा कर किसान अतिरिक्त कमाई कर सकते है।
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बांस कई मामलों में उपयोगी है। जैसे इसके तने का इस्तेमाल अगर लकड़ी के तौर पर हो सकता है तो इसमें कई तरह के औषधीय गुण भी हैं। इन बहुपयोगिता का किसान किस तरह से फायदा उठा सकेंइसके लिए राष्ट्रीय बांस मिशन की शरुआत की गई है। मिशन के तहत उन्नत किस्म के बांस के पेड़ लगाने और उसके इस्तेमाल के लिए जरूरी सुविधाएँ मुहैया करने का लक्ष्य है।
कुल मिलाकर कृषि व संबद्ध क्षेत्रों को लेकर सरकार की पूरी कोशिश यही है कि किसान परेशान नहीं रहे। इसी को ध्यान में रखते हुए आम बजट 2018-19 के केंद्रबिंदु में किसानों को रखा गया। सरकार ने इस बात को भी समझा है कि किसानों की समस्या सिर्फ फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाना ही नहीं है, बल्कि जो दाम मिल रहे हैं, वो समय पर नहीं मिल रहा। ऐसे में अगली फसल की व्यवस्था प्रभावित होती है। सरकार मानती है।कि किसान कर्ज चुकाने के मामले में काफी ईमानदार होते हैं। इसीको देखते हुए रियायती दर पर कर्ज का लक्ष्य 11 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।
इससे कृषि में व्यक्तिगत स्तर पर निवेश तो बढ़ेगा ही, किसानो की जिंदगी भी बेहतर हो सकेगी। उम्मीद की जनि चाहिए की नए बजट के प्रावधानों से इस लक्ष्य की तरफ एक मजबूत कदम बढ़ाने में मदद मिलेगी।
ऑपरेशन ग्रीन से सुधरेगी कृषि की तस्वीर