(The Gist of Kurukshetra) मत्स्य पालन के नए आयाम [April-2018]


(The Gist of Kurukshetra) मत्स्य पालन के नए आयाम [April-2018]


मत्स्य पालन के नए आयाम

विश्व में भारत मत्स्य उत्पादन या मात्स्यिकी में दूसरे स्थान पर है। देश में वर्ष 2016-17 के दौरान लगभग 1.14 करोड़ टन मछलियां और अन्य जलजीव, समुद्री तटों एवं अंत स्थलीय मछुआरों द्वारा पकड़े अथवा मत्स्य पालन के जरिए उत्पादित किए गए हैं। यही नहीं जलजीव संवर्धन/पालन (एक्वाकल्चर) के क्षेत्र में भी हमारा देश विश्व में दूसरे पायदान पर है। वर्तमान में देश में लगभग 1.5 करोड़ लोगों की आजीविका का आधार मात्स्यिकी मत्स्य प्रग्रहण के कार्यकलापों से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2016-17 में भारत द्वारा रिकार्ड 37870.90 करोड़ रुपये मूल्य के बराबर की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा 1134,948 मीट्रिक टन समुद्री मछलियों/जलजीवों का निर्यात कर कमाई गई थी। राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्डया एनएफडीबी के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में मत्स्य क्षेत्र की भागीदारी लगभग 11 प्रतिशत और कृषि जीडीपी में लगभग 5.15 फीसदी है। बढ़ते मत्स्य उत्पादन के कारण ही देश में प्रति व्यक्ति 9 किलोग्राम मत्स्य आहार की उपलब्धता संभव हो पाई है। इन तथ्यों से मात्स्यिकी फिशरीजके महत्व को बखूबी समझा जा सकता है। सरकार द्वारा भी इस क्षेत्र पर अब भरपूर ध्यान दिया जा रहा है और इसी क्रम में नील क्रांति मिशन को तैयार कर उस पर अमल किया जा रहा है। इसमें वर्ष 2020 तक मत्स्य निर्यात को 100 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य तक पहुंचाना तय किया गया है ।

विश्व में समुद्री मात्स्यिकी को सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले खाद्य उत्पादन क्षेत्र के तौर पर देखा जा रहा है। इसके पीछे कारण है बढ़ती विश्व आबादी के लिए प्रोटीनयुक्त अत्यत कम लागत के आहार को बड़ी मात्रा में उपलब्ध करवाने की समुद्री मात्स्यिकी की अक्त क्षमता। सीफ़ड पर आधारित व्यंजनों का चलन भी संभवत इसी वजह से तमाम देशों में बढ़ता हुआ देखा जा सकता है। कई फास्टफूड समूह तो सीफूड से तैयार विभिन्न डिश के बल पर ही अपने कारोबार को तेजी से बढ़ा रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए विभिन्न प्रकार की समुद्री मछलियों और अन्य जलजीवों का निर्यात बढ़ाने के अच्छे अवसर हो सकते हैं।

भारत का बढ़ता मात्स्यिकी निर्यात

अमेरिका और यूरोप के देशो के सदस्य देश भी भारत से समुंद्री जलजीवों का भारी मात्रा में आयत कर है
निर्यात में हिस्सेदारी निरंतर बढ़ रही है कुल मत्स्य निर्यात में लगभग 3828 प्रतिशत या डॉलर में हुई कमाई के रूप में 64.50 प्रतिशत की निम्प की भागीदारी है।
श्रिम्प के बाद हिमीकृत मछलियों की सर्वाधिक मात्रा निर्यात (2615 प्रतिशतकी जाती है।
समुद्री जलजीवों के भारत से आयात में डॉलर से भुगतान के आधार पर अमेरिका पहले (2998 प्रतिशत, दक्षिणीपूर्वी एशिया। दूसरे (2991 प्रतिशत) और यूरोपियन यूनियन (7.98 प्रतिशतके। साथ तीसरे स्थान पर है।

श्रिम्प एल वन्नामेयी, जलजीव प्रजातियों में विविधता और गुणवत्ता में बढ़ोतरी तथा समुद्री जलजीवों के प्रसंस्करण की सुविधाओं में बढ़ते निवेश से निर्यात में वृद्धि हो रही है।

भारत से टाइगर श्रिम्प के खरीददार के रूप में जापान सबसे आगे है। इसकी हिस्सेदारी लगभग 48.34 प्रतिशत है।
भारत से लगभग 75 देशों को मछलियों और शेलफिश के उत्पादों का निर्यात किया जाता है।
देश के कुल कृषि निर्यात में मात्स्यिकी क्षेत्र की भागीदारी लगभग 20 प्रतिशत है।

पिंजरे में जलजीव संवर्धन

समुद्री मुहानों, खाड़ियोंछोटे जलाशयों तथा खारे जलाशयों के लिए स्थानीय तौर पर बनाए गए उपयुक्त पिंजरों में मछली पालन एक उभरती हुई नवोन्मेषी और व्यावहारिक प्रौद्योगिकी है।रोजगार सृजनमछली उत्पादन और आय अर्जन के उद्देश्य से इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग खारे जल संसाधनों के साथ देश के तटीय हिस्सों में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। खारा जलजीव पालन विकास की दिशा में नोडल अनुसंधान संस्थान के तौर पर भाकृअनुप केंद्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान, चेन्नई और राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थानचेन्नई द्वारा साझेदारी में काम किया जा रहा है। इसके अंतर्गत न सिर्फ युवाओं को इससे संबंधित विशिष्ट ट्रेनिंग प्रदान की जाती है बल्कि पिंजरा डिजाइन, निर्माण व स्थापना के क्षेत्र में भी कौशल को बढ़ावा दिया जाता है। भाकृअनुपकेंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान कोच्चि द्वारा भी पिंजरे में जलजीव संवर्धन तकनीकी का विकास किया गया है। इसका सफलतापूर्वक प्रयोग कोबिया और सिल्वर पोम्पानो प्रजातियों के संवर्धन में कई स्थानों पर किया जा रहा है। तटवर्ती क्षेत्रों में इनके झुंड बैंक और हैचरी सुविधाओं की बड़े पैमाने पर आवश्यकता है ताकि स्थानीय मछुआरे इनका लाभ उठाते हुए पिंजरे में कोबिया और सिल्वर पम्पानों का उत्पादन कर देश के मत्स्य उत्पादन में बढ़ोतरी करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा संस्थान के इस प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है ताकि समुद्री तटवर्ती राज्यों में पिंजरे में मत्स्य संवर्धन को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन दिया जा सके। इस तकनीक की समी और अंतः स्थलीय मत्स्य पालनदोनों ही तरह के क्षेत्र में आने वाले समय में उपयोग बढ़ने की पूरी संभावनाएं है।\

नील क्रांति मिशन

भारत सरकार द्वारा मात्स्यिकी और जलजीव पालन के महत्व को समझते हुए पहले से चल रही इनसे जुड़ी विभिन्न योजनओं और कार्यक्रम हुए नीलक्रांति मिशन के अंतरगर्त शामिल किया गया है। इसमें नेशनल फिशरीज डेवलोपमेन्ट बोर्ड के कार्यकलापों के अतिरिक्त अतः स्थलीय मात्स्यिकी एंव जलजीव पालन , समुंद्री मात्स्यिकीइंफ्रास्ट्रक्चर तथा पोस्ट हार्वेस्ट ऑपरेशंस मात्स्यिकी क्षेत्र के डाटाबेस तथा जीआईएस का समुचित विकासमात्स्यिकी से जुड़े संस्थानों के बीच आपसी तालमेलमछुआरों के कल्याण हेतु राष्ट्रीय योजना आदि को भी सम्मिलित किया गया है। इसका उद्देश्य मात्स्यिकी के माध्यम से लोगों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए मत्स्य कृषकों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य की प्राप्ति भी है। वर्ष 2017 में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री श्री सुदर्शन भगत द्वारा बताया गया था कि उनके विभाग द्वारा आगामी 5 वर्षों की अवधि के लिए नेशनल फिशरीज एक्शन प्लान 2020 तैयार किया गया है। इसके तहत मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाते हुए नीलक्रांति मिशन की अवधारणा को साकार किया जाएगा। नीलक्रांति मिशन के अंतर्गत वर्ष 2020 तक का लक्ष्य .1.5 करोड़ टन मत्स्य उत्पादन 8 प्रतिशत वृद्धि दर से हासिल करना निर्धारित किया गया है।

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राष्ट्रिय मात्स्यिकी विकास बोर्ड

इसकी स्थापना 2006 में स्वायत्तशासी संस्था के तौर पर पशुपालनडेयरी एवं मात्स्यिकी विभाग (कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय) के अंतर्गत की गई थी। इसके पदेन अध्यक्ष केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री होते हैं। बोर्ड का अधिदेश देश में मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता में सतत बढ़ोतरी करने में योगदान देना है। इस अधिदेश के अंतर्गत मात्स्यिकी उत्पादनप्रसंस्करण, भंडारणपरिवहन और मार्केटिंग से संबंधित समस्त कार्यकलाप राष्ट्रीय जल संसाधनों के प्रबंधन और रखरखाव संरक्षण की जिम्मेदारी शामिल हैं। मात्स्यिकी के क्षेत्र से जुड़ी प्रौद्योगिकियों और आधनिक तकनीकों का प्रचार-प्रसार मात्स्यिकी के क्षेत्र में समुचित प्रबंधन एवं आधुनिक बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, मात्स्यिकी के क्षेत्र में महिलाओं को प्रशिक्षित कर उनका सशक्तिकरण एवं रोजगार की व्यवस्था और पोषण सुरक्षा हेतु मत्स्य उत्पादों की उपलब्धता सनिश्चित करना निहित है।

राष्ट्रिय मात्स्यिकी विकास बोर्ड द्वारा वित्तीय सहायता

  • श्रिम्प हैचरी में फिनफिश बीज के उत्पादन हेतु

  • ओपन सी केज कल्चर की स्थापना हेतु

मत्स्य पालन क्षेत्र में क्रांति, नीली क्रांति के अंतर्गत सभी मौजूदा योजनाओं को एकीकृत कर योजना की पूनसरचना की गई

  • सभी मछली पालन योजनाओं का एकीकरणनील क्रांति योजना को मंजूरी।

  • ‘पांच वर्षों के लिए 3000 करोड़ रुपये के व्यय से एकीकृत मछली पालन विकास एवं प्रबंधन।

  • बचत-सह-राहत के अंतर्गत प्रति वर्ष औसतन 4.90 लाख मछुआरे लाभान्वित।

  • प्रति वर्ष औसतन 4835 लाख मछुआरों का बीमा।

  • बजट का प्रावधान 2016-17 के 147 करोड़ रुपये से 6235 बढ़ाकर 2017-18 में 401 करोड़ रुपये किया गया।

  • मछली उत्पादन 2012-14 में 186.12 लाख टन से बढ़कर 2014-2016 में 209.59 टन हुआ।

  • मछुआरों की वार्षिक बिमा किश्त राशि को 29 रूपए से घटाकर 20.34 रूपये किया गया, जिससे अधिकांश मछुआरों ने बिमा कराया।

  • दुर्घटना मृत्यु और स्थाई अपंगता के लिए बिमा कवच राशि को एक लाख से बढ़ाकर दो लाख रूपये किया गया

  • समुंद्री सजावटी मछली उत्पादन हेतु

  • मस्सल फार्मिंग हेतु

  • वित्तीय सहायता के तौर पर कुल प्रोजेक्ट लागत का 40 प्रतिशत तक सब्सिडी के तौर पर देने का प्रावधान है।

चुनौतियां और सरकारी प्रयास

गत वर्ष के बजट में जहां हरितक्रांति के अंतर्गत जारी विभिन्न योजनाओं के लिए 13,741 करोड़ रुपये और श्वेतक्रांति के अंतर्गत पशुपालन क्षेत्र हेतु 1641 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। वहीं दूसरी ओर मात्स्यिकी के लिए मात्र 401 करोड़ रुपये का आबंटन किए जाने पर मत्स्य क्षेत्र से जुड़े संगठनों ने कड़ा विरोध दर्ज किया था। इन्हीं शिकायतों को ध्यान में रखते हुए अलग से इस वर्ष के बजट में फिशरीज एंड एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड का प्रावधान किया गया है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार निसंदेह सरकार के इस निर्णय से मात्स्यिकी क्षेत्र की समस्त समस्याओं का समाधान तो नहीं होगा, पर तात्कालिक तौर पर राहत अवश्य मिलेगी।

देश में निरंतर बढ़ते मत्स्य उत्पादन के बावजूद अभी प्रति मछुआरा/वर्ष मत्स्य उत्पादन महज 2 टन है जबकि नार्वे में 172 टनचिली में 72 टन तथा चीन में 6 टन है। भारतीय मछुआरों की मत्स्य उत्पादकता में बढ़ोतरी की जरूरत है तभी भारतीय मछुआरा समुदाय के जीवन -स्तर में सुधार संभव हो सकता है।

सड़क, बिजली और अन्य आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर का देश के ग्रामीण एवं अंदरूनी क्षेत्रों में अभाव होने के अलावा कोल्ड चेन स्टोरेज सुविधाओं की कमी भी मछुआरा समुदाय की आर्थिक बदहाली के लिए काफी हद तक जिम्मेदार कही जा सकती है। इनमें राज्य सरकारों द्वारा ध्यान देने के अतिरिक्त निजी क्षेत्र द्वारा भी निवेश किए जाने की तत्काल आवश्यकता है।

मत्स्य संगठनों द्वारा लंबे समय से मात्स्यिकी क्षेत्र को कृषि मंत्रालय से अलग करने और मत्स्य पालन मंत्रालय के गठन की मांग की जा रही है। हालांकि राज्यों में ऐसे मात्स्यिकी मंत्रालय। विभाग काम कर रहे । हैं। केंद्र सरकार द्वारा चालू किए गए नील क्रांति मिशन को इस दिशा में सकारात्मक कदम कहा जाना चाहिए।
मात्स्यिकी का क्षेत्र अभी भी बड़े पैमाने पर असंगठित है और प्रायः मत्स्य कृषकों को अपने मत्स्य उत्पादों के सही मूल्य नहीं मिल पाते हैं। मत्स्य व्यापारियों और बिचौलियों द्वारा अत्यंत कम मूल्य में मत्स्य उत्पादों की खरीद की जाती है। इस शोषण से बचाव के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

अमूमन मछुआरा समुदाय अशिक्षित और अप्रशिक्षित होने के साथ आर्थिक दृष्टि से भी काफी कमजोर है। इनके लिए मत्स्य पालन और प्रग्रहण सम्बंधित विशेष ट्रेनिंग की व्यवस्था बढ़े पैमाने पर उपलब्ध करवाए जाने की आवश्यकता है। हालांकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों सहित राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड एवं राज्य सरकारों के मत्स्य विभागों द्वारा समय-समय पर ऐसे ट्रेनिंग कार्यक्रमों का आयोजन किया किया जाता है।

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Courtesy: Kurukshetra