(The Gist of Kurukshetra) जैविक खेती के विकास के लिए वेस्ट (कचरा) डीकंपोजरी [April-2018]


(The Gist of Kurukshetra) जैविक खेती के विकास के लिए वेस्ट (कचरा) डीकंपोजरी [April-2018]


जैविक खेती के विकास के लिए वेस्ट (कचरा) डीकंपोजर

राष्ट्रिय जैविक केंद्र ने वर्ष 2015 में कचरा दिक्पोजर का अविष्कार किया जिसके पुरे देश में आश्चर्यजनक सफल परिणाम निकले। इसका प्रयोग जैविक कचरे से तत्काल खाद बनाने के लिए किया जाता है तथा मिटटी के स्वास्थ्य में सुधर के लिए बढे पैमाने में केचुएं पैदा होते है और पौध की बीमारियों को रोकने के लिए इसका उपयोग किया जाता है इसको देशी गाय के गोबर से सुष्म जैविक जीवाणु निकल कर बनाया गया है। वेस्ट डिंकपोजर की 30 ग्राम की मात्र को पैक्ड बोतल में बेचा जा रहा है जिसकी लगत 20 रु प्रति बोतल आती है। इसका निर्माण राष्ट्रिय जैविक खेती केंद्र , गाजियाबाद में होता है। देश के एक लाख किसानो के पास अभी यह पहुंचा है जिससे 20 लाख से ज्यादा किसान इससे लाभान्वित हुए है। इस वेस्ट डिंकपोजर को आईसीएसआर द्वारा सत्यपित किया जाता है।

(कचरा) वेस्ट डीकंपोजर तैयार करने का तरीका

  • 2 किलो गुड़ को 200 लीटर पानी वाले प्लास्टिक के ड्रम में मिलाएं।
  • अब एक बोतल वेस्ट डीकंपोजर की ले और उसे गुड़ के गोल वाले प्लास्टिक ड्रम में मिला दें।
  • ड्रम में सही ढंग से वेस्ट डीकंपोजर के वितरण के लिए लकड़ी के एक डंडे से इसे हिलाएं और व्यवस्थित ढंग से मिलाएं।
  • इस ड्रम को पेपर या कार्ड बोर्ड से ढक दें और प्रत्येक दिन एक या दो बार इसको पुनः मिलाएं।
  • 5 दिनों के बाद ड्रम का गोल क्रीमी हो जाएगा यानी एक बोतल से 200 लीटर वेस्ट डी कंपोजर घोल तैयार हो जाता है।

उपयोग

1. वेस्ट डीकंपोजर का उपयोग 1000 लीटर प्रति एकड़ किया जाता है जिससे सभी प्रकार की मिट्टी क्षारीय एवं अम्लीय) के।रासायनिक एवं भौतिक गुणों में इस प्रकार के अनुप्रयोग के 21 दिनों के भीतर सुधार आने लगता है तथा इससे 6 माह के भीतर एक एकड़ भूमि हो में मृदा में 4 लाख से अधिक केचुएं पैदा जाते हैं।

2. कृषि जानवरों मलकिचन का कचरा तथा शहरों का कचरा जैसी सभी नाशवान जैविक सामग्री 40 दिनों के भीतर कचराका गल कर जैविक खाद बन जाती है।

3. वेस्ट डीकंपोजर से बीजों का उपचार करने पर 98 प्रतिशत मामलों में बीजों की शीघ्र और एक सामान अंकुरण की घटनाएं देखने में आती हैं तथा इससे अंकुरण से पहले बीजों को संरक्षण प्रदान होता है।

4. वेस्ट डीकंपोजर का पौधों पर छिड़काव करने से विभिन्न फसलों में सभी प्रकार की बीमारियों पर प्रभावी ढंग से रोक लगती है।

5. वेस्ट डीकंपोजर का उपयोग करके किसान बिना रसायन उर्वरक व कीटनाशक हैं। इससे , डीएपी या फसल उगा सकते यूरिया एमओपी की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

6. वेस्ट डीकंपोजर का प्रयोग करने से सभी प्रकार की कीटनाशी / फफूदनाशी और नाशीजीव दवाईयों का 90 प्रतिशत तक उपयोग कम हो जाता है क्योंकि यह जड़ों की बीमारियों और तनों की बीमारियों को नियंत्रित करता है ।

जैविक खेती की सीमाएं

  • यह अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया पर आधारित है।
  • प्रारम्भ में पैदावार कम होती है।
  • बढे पैमाने पर जैविक आधानो उपलब्धता की आवश्यकता।
  • उच्च गुणवत्ता वाले आधानो की कम उपलब्धता।
  • विपणन सुविधाओं की कमी।
  • किसानो के लिए प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए संगठन और सरकारी योजनाएं / पहल

राष्ट्रिय जैविक खेती अनुसंधान संसथान , गंगटोक, सिक्किम हल ही में स्थापित यह सनुसन्धान संसथान जैविक खेती पर अनुसन्धान और शिक्षा को बढ़ावा देता है। इसमें जैविक उत्पादन प्रणाली, खासतौर पर पूर्वोत राज्यों के पर्वतीय इलाको में जैविक उत्पादन में प्रशिक्षण दिया जाता है।

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राष्ट्रिय जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) :

केंद्र सरकार द्वारा संचालित इस संसथान और बंगलुरु, भुवनेश्वर पंचकुला, इम्फाल जबलपुर और नागपुर में छह क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किये गए है जो केंद्र द्वारा प्रायोजित योजना- राष्ट्रिय जैविक खेती परियोजना पर अमल के लिए स्थापित किये गए है।

सहभागितापूर्ण गारंटी प्रणाली : इसके तहत सभी संबद्ध पक्षों (उत्पादकों, उपभोक्ताओंखुदरा व्यापारियों और बड़े व्यापारियों के साथ-साथ एनजीओ, समितियों/ ग्राम पंचायतों/राज्यों/केंद्र सरकार के संगठनों एजेंसियोंकिसानों आदि) के साथ सहभागितापूर्ण रवैया अपनाया जाता है। वे खेतों में जाकर फसलों का जायजा ले सकते हैं और एक दूसरे के उत्पादन के तौर-तरीकों की जांच कर सकते हैं और जैविक प्रमाणन के बारे में भी कोई फैसला ले सकते हैं। इस प्रणाली के तहत स्थानीय -स्तर पर गुणवत्ता आश्वासन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह प्रतिभागियों के लिए भरोसा हासिल करने सामाजिक नेटवर्क बनाने का एक मंच है। जिसके अंतर्गत जैविक खेती के आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए किसानों द्वारा जानकारियों का आदान-प्रदान किया जाता है।

परम्परागरत कृषि विकास योजना : यह केंद्र द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन का विस्तारित घटक है जिसकी शुरुआत 2015 में हुई थी। इसके तहत क्लस्टर विधि और पीजीएम प्रमाणन के जरिए किसानो और युवाओं में जैविक खेती की नवीनतम टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी का प्रचार किया जाता है।

निष्कर्ष : कृषि की चुनौतियों से निपटने के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल आज की सबसे बढ़ी आवश्यक है। इस तरह की खेती के प्राम्भरिक चरणों में आर्थिक लाभ कम होने से किसान जैविक खेती के तौर - तरिके अपनाने से बचते है। लेकिन यह इस तरह की खेती के फायदों के बारे में किसानो की जानकारी की कमी को दर्शाता है। सरकारी एजेंसियों और योजनाओ में इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसके लिए कृषक समुदाय को जैविक खेती के वैकल्पित तरीको के बारे में विशेष्ज्ञता हासिल कर सके।

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Courtesy: Kurukshetra