(The Gist of Kurukshetra) कृषिगत आधारभूत अवसंरचना [AUGUST-2018]


(The Gist of Kurukshetra) कृषिगत आधारभूत अवसंरचना [AUGUST-2018]


::कृषिगत आधारभूत अवसंरचना::

ग्रामीण क्षेत्र की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अर्थोपार्जन के Iलिए कृषि अथवा कृषि संबंधित उपागम पर आश्रित है। कृषि को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। स्वतंत्रता के पश्चात् सभी सरकारों ने कृषि संबंधी सुधार के अनेक प्रयास किए हैं। हरितक्रांति के परिणामस्वरूप देश अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर तो बन गया लेकिन बढ़ती जनसंख्या और कमरतोड़ महंगाई के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं हो सका। किसानों द्वारा खेती का लागत मूल्य निकाल पाना चुनौतीपूर्ण है। प्रधानमंत्री 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिए कृषि क्षेत्र में आधारभूत अवसंरचना के विकास पर बल दे रहे हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष में सरकार ने किसानों को लागत मूल्य की डेढ़ गुना कीमत प्रदान करने के लिए खरीफ की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि कर दी है। | वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के बावजूद देश में आज भी 40 से 50 फीसदी कृषि प्रणाली मानसून (भगवान) के भरोसे है। जिस वर्ष प्रकृति साथ देती है, उस वर्ष तो देश में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न उत्पादन होता है। परंतु प्रकृति के कुपित होने की स्थिति में खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। इसी कारण देश की कृषि अर्थव्यवस्था को मानसून आधारित जुआ कहा जाता है। कर्ज तले दबा किसान अगली फसल के लिए फिर से कर्ज लेने को मजबूर हो जाता है। विगत वर्षों में कर्ज के जाल में उलझे अनेक किसानों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के लिए स्वयं मौत का आलिंगन कर लिया। प्राकृतिक निर्भरता को कम करने और किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए कृषि क्षेत्र में आधारभूत अवसंरचना के विकास पर जोर दिया जा रहा हैं।

किसानों को आधुनिक कृषि संयंत्र खरीदने एवं अन्य कृषि जरूरतों की पूर्ति हेतु सस्ती दर पर पर्याप्त मात्रा में कृषि ऋण की व्यवस्था की गई है। खाद्यान्नों के संरक्षण हेतु ब्लॉक स्तर पर गोदामों का निर्माण कराया जा रहा है। इसी तरह फल व सब्जियों को संरक्षित करने हेतु शीतगृह एवं शीतशृखंला का निर्माण किया जा रहा है। किसानों को उपज का सही मूल्य दिलाने और बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) और ग्रामीण कृषि बाजार की स्थापना की गई है। साथ ही, किसानों की आमदनी में वृद्धि करने के लिए खेती को ‘उद्यम के रूप में विकसित किया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर किसानों को कृषिगत रोजगार मुहैया कराने और फसल उत्पादों के मूल्य संवर्धन के लिए खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए देशभर में 42 मेगा फूड पार्को की स्थापना की जा रही है। ग्रामीण स्तर पर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से । आर्थिक स्वावलंबन हेतु बैंकों से अनुदान व ऋण सहायता का प्रब किया गया है। कृषि उत्पाद आधारित लघु एवं मध्यम उद्योगों व स्थापना एवं सफल क्रियान्वयन हेतु आर्थिक अनुदान व सहायता की व्यवस्था की गई है।

सिंचाई संसाधनों का विकास

देश की भौगोलिक व प्राकृतिक विविधता के कारण कुछ क्षेत्रों में तो सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में पीने के पानी का भी अकाल है। अच्छी पैदावार के लिए समय से पर्याप्त मात्रा में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फसल की प्रकृति के अनुरूप कम या अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। इसी कारण भौगोलिक संरचना एवं उपलब्ध सिंचाई संसाधनों के आधार पर देश के विभिन्न भागों में फसल उत्पादन में विविधता पाई जाती है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 48 प्रतिशत भू–भाग ही सिंचित है। जल संसाधनों की उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। देश की बढ़ती आबादी की खाद्य और पेय संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए निकट भविष्य में बहुत बड़े पैमाने पर जल की आवश्यकता पड़ने वाली है।
जल परिवहन में दक्षता - सिंचाई के दौरान परिवहन में बड़े पैमाने पर जल बर्बाद हो जाता है। आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल कर जल परिवहन में जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
जल उपयोग में दक्षता - ‘प्रति बूंद जल का अधिकतम उपयोग सिंचाई का 30-40 प्रतिशत जल वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है। आधुनिक पद्धति का उपयोग कर सिंचाई के संपूर्ण जल का उपयोग फसल पैदावार के लिए किया जा सकता है।

जल संरक्षण - वर्षा के जल को नष्ट होने से बचाने के लिए तथा भविष्य में उसका पुर्न-उपयोग करने के लिए जल संरक्षण पर बल दिया जा रहा है। इसके लिए सरकार द्वारा वाटरशेड जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर भी गढ्ढे और तालाब खोदकर जल एकत्रण का प्रयास किया जा रहा है।

जल वितरण दक्षता - सिंचाई के दौरान जल का एक समान वितरण किया जाना चाहिए। जल का जितना समान वितरण होगा, फसल की पैदावार उतनी ही अच्छी होगी। | इस योजना में तीन मंत्रालय जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय समेकित रूप से कृषि मंत्रालय का सहयोग कर रहे हैं। सूखा प्रभावित इलाकों में जल संरक्षण और बांध आधारित बड़ी परियोजनाओं के सहयोग से स्थानीय जरूरतों के मुताबिक जिला-स्तरीय परियोजना के द्वारा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। आधुनिक तकनीक का उपयोग कर ‘प्रति बूंद अधिक फसल उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। जल बचत और सटीक सिंचाई प्रणाली द्वारा पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार किया जा रहा है। देश के प्रत्येक खेत में सिंचाई सुविधाओं के लिए जल संरक्षण और अपव्यय को कम करने पर बल दिया जा रहा है।

शीत एवं भंडारगृहों की स्थापना

देश में रिकॉर्ड फसल उत्पादन के पश्चात् कृषि उत्पाद को सुरक्षित रखना सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण है। गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रतिवर्ष 670 लाख टन खाद्यान्न नष्ट हो जाते हैं। भारत सरकार के 'सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के अध्ययन के अनुसार, उचित भंडारण की कमी के कारण देश में बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती है जिससे लाखों लोगों की भोजन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है। खाद्य पदार्थों की बर्बादी के कारण देश में भुखमरी और महंगाई में बढ़ोतरी हो रही है। भंडारण की समुचित व्यवस्था से खाद्यान्न संरक्षण द्वारा किसानों को फसल की समुचित कीमत मिलने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को सस्ते दर पर खाद्य पदार्थ मुहैया हो सकता है। कृषि मंत्री स्वयं स्वीकारते हैं कि देश में बड़े पैमाने पर प्याज, टमाटर, आलू इत्यादि खेत से उपभोक्ता तक पहुंचने से पूर्व ही नष्ट हो जाते हैं।

कृषि बाजार तत्र

किसानों के समक्ष खाद्यान्न उत्पादन से बड़ी चुनौती कृषि उत्पाद को बेचकर उचित मूल्य प्राप्त करना है। बाजार-तंत्र पर सेठ, साहूकार और बिचौलियों का कब्जा होने के कारण किसान कृषि उत्पाद औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होता है। वैसे भी जब फसल तैयार होती है, तो मांग की तुलना में आपूर्ति की अधिकता के कारण फसल उत्पाद की कीमत बहुत कम हो जाती है। जहां बिचौलिये मोटा मुनाफा कमाने के लिए कृषि उत्पाद को कुछ समय तक रोक लेते हैं या देश के अन्य भागों में बेचते हैं। वहीं किसान सालभर हाड़-तोड़ मेहनत और प्राकृतिक चुनौतियों से जूझते हुए फसल उत्पादन के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देता है। इसके बावजूद उसे फसल की समुचित कीमत नहीं प्राप्त होती है। यद्यपि सरकार किसानों को फसल के न्यूनतम मूल्य की गारंटी देने के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है और बड़े पैमाने पर खाद्यान्न की खरीदारी करती है, लेकिन इसके बावजूद कृषि उत्पाद के उपभोक्ता मूल्य और किसानों को प्राप्त कीमत में भारी अंतर होता है।

केंद्र सरकार कृषि विपणन प्रणाली में सुधार करते हुए किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर फसल बेचने के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार ई-नाम प्रणाली एवं स्थानीय स्तर पर ग्रामीण कृषि बाजार' की स्थापना कर रही है। ई-नाम एक पैन इंडिया इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है जो कृषि संबंधी उपजों के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण करने के लिए मौजूदा एपीएमसी मंडी का विस्तार है। यह पोर्टल समस्त एपीएमसी से संबंधित सूचनाओं व सेवाओं को एक स्थान पर प्रदान कराता है। अखिल भारतीय ऑनलाइन व्यापार मंच द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत कृषि विपणन व्यवस्था लागू होने से उपभोक्ता और किसान के मध्य ऑनलाइन सूचनाओं का संवाद स्थापित हो सकेगा जिससे राष्ट्रीय स्तर पर मांग व आपूर्ति के आधार पर खाद्य पदार्थों की कीमतों का निर्धारण हो सकेगा। किसानों की पहुंच राष्ट्रीय बाजार व्यवस्था तक हो सकेगी। किसानों को खाद्य उत्पाद की गुणवत्ता के मुताबिक समुचित कीमत तथा उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर बेहतरीन खाद्य उत्पाद प्राप्त हो सकेंगे।

राष्ट्रीय कृषि बाजार एक आभासी (अमूर्त) बाजार है परंतु इसके पीछे भौतिक (मूर्त) बाजार एपीएमसी का अस्तित्व है। एपीएमसी से संबंधित समस्त जानकारियां और सूचनाएं ई-नाम पोर्टल पर उपलब्ध हैं। ई-नाम योजना के अंतर्गत ई-मार्केट प्लेटफार्म की स्थापना की गई है। ई-नाम प्रणाली के क्रियान्वयन हेतु कृषि उत्पाद बाजार समितियों के कानूनों में संशोधन किया जा रहा है। ई-नाम के अंतर्गत एकल लाइसेंस प्रक्रिया शुरू की जा रही है जिससे किसान एकल व्यापार लाइसेंस द्वारा समूचे राज्य में कारोबार कर सकता है। इसके अंतर्गत एक जींस के थोक व्यापार के लिए एक ही स्थान पर बाजार शुल्क वसूलने की व्यवस्था की गई है। समस्त विपणन प्रणाली को पहले राज्य-स्तर पर फिर पोर्टल के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ा गया है।

खाद्य प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन

किसान साल में 5-6 महीने तक तो कृषि कार्यों में व्यस्त रहता है जबकि शेष 6 से 7 महीने खाली रहता है। इस दौरान या तो वह महानगरों में जाकर मजदूरी करता है अथवा बेरोजगार रहता है। फलों और सब्जियों की प्रकृति शीघ्रता से विनष्टकारी होने के कारण बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं। इसे लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए शीतगृह में रखा जाता है। देश में शीतगृहों का अभाव होने के कारण बड़े पैमाने पर फल व सब्जियां खराब हो जाती हैं। खाद्य प्रसंस्करण विधि द्वारा जहां एक ओर फल व सब्जियों के भौतिक व रासायनिक प्रकृति में परिवर्तन कर सामान्य तापक्रम पर लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर किसानों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं। मोदी सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण की महत्ता को देखते हुए देश में पहली बार खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का गठन किया है। खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने बजट 2018-19 में खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के लिए 1400 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना आरंभ की गई है। कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सभी 42 मेगा फूड पार्क में अत्याधुनिक परीक्षण सुविधा स्थापित की जा रही है। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में प्रतिवर्ष औसतन 8 प्रतिशत की दर से विकास हो रहा है। कृषि आय बढ़ाने के लिए डेयरी, पशुपालन, मत्स्य, पोल्ट्री इत्यादि के विकास पर भी जोर दिया जा रहा है। किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा का विस्तार मत्स्य एवं पशुपालन करने वालों तक कर दिया गया है। इसके लिए सरकार में प्रशिक्षण, सहायता और अनुदान देने की व्यवस्था की है। स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के अंतर्गत स्वावलंबी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। टमाटर, आलू और प्याज जैसी शीघ्र नष्ट होने वाली फसलों की कीमतों को निश्चितता से बचाने के लिए 'ऑपरेशन फ्लड' की तर्ज पर 'ऑपरेशन ग्रीन योजना शुरु किया गया है। 'ऑपरेशन ग्रीन' के द्वारा किसानों, उत्पादक संगठनों, कृषि संभार तंत्र, प्रसंस्करण सुविधाओं, व्यवसाय प्रबंधन में सामंजस्य स्थापित किया जाएगा। इसके लिए 500 करोड़ रुपये की निधि की स्थापना की घोषणा की गई है।

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Courtesy: Kurukshetra