(The Gist of Kurukshetra) प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और रोजगार सृजन [AUGUST-2018]


(The Gist of Kurukshetra) प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और रोजगार सृजन [AUGUST-2018]


::प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और रोजगार सृजन::

गरीबों को सिर छिपाने को छत उपलब्ध कराना भारत के लिए हमेशा एक चुनौती रहा है और ग्रामीण इलाकों में तो यह समस्या और भी विकराल रूप ले लेती है। पिछली सरकारों ने बीते वर्षों में इस समस्या के समाधान के लिए विभिन्न आवास योजनाएं प्रारंभ की हैं। वर्तमान सरकार ने 2022 तक सबके लिए आवास' के लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयास में मौजूदा इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) का पुनर्गठन किया और इसे प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) का नाम दिया। इसका उद्देश्य इंदिरा आवास योजना पर नियंत्रक महालेखा परीक्षक के निष्पादन ऑडिट की रिपोर्ट (सीएजी 2014) में बताई गई कमियों को दूर करना तथा ‘कुछ ग्रामीण विकास योजनाओं के अंतर्गत खर्च न की जा सकी राशियों तथा पूंजी के प्रवाह' पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना था (भानुमूर्ति और अन्य, 2015)। गांवों के गरीबों के लिए यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के समन्वय से 2022 तक ऐसे पक्के मकान उपलब्ध कराना है जिनमें नलों के जरिए स्वच्छ पेयजल तथा बिजली और रसोई गैस कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों। जो लोग कच्चे या टूटे-फूटे घरों में रह रहे हैं या जिनके पास सिर छुपाने को छत नहीं है, उन्हें भी इसके दायरे में रखा गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस कार्यक्रम पर समुचित और कारगर अमल करने तथा श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले आवास उपलब्ध कराने के बारे में “पहल” नाम से सामान्य दिशानिर्देश और मकानों के डिजाईन जारी किए हैं। इसके पहले चरण में 2019 तक एक करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए लाभार्थियों का चयन सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) 2011 के जरिए किया जाना है। लाभार्थियों को मैदानी इलाकों में 1.20 लाख रुपये और पहाड़ी, दुर्गम और समन्वित कार्य योजना वाले इलाकों में 1.30 लाख रुपये प्रति इकाई की सहायता उपलब्ध कराई जाती है। इस योजना के तहत धन का अंतरण राज्य स्तर पर बनाए गए एकल नोडल खाते से डिजिटल तरीके से सीधे लाभार्थी के खाते में किया जाता है। इकाई सहायता के अलावा उन्हें 70 हजार रुपये तक का संस्थागत वित्त उपलब्ध कराने का विकल्प दिया जाता है। लाभार्थी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 90 से 95 दिन तक का रोजगार प्राप्त करने के भी अधिकारी हैं। इसके अलावा उन्हें स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालयों के निर्माण के लिए 12,000 रुपये भी दिए जाते हैं। इन फायदों के अलावा लाभर्थियों को कई मददगार सेवाओं का फायदा दिया जाता है जैसे राजमिस्त्री के काम का प्रशिक्षण, मकानों के निर्माण में गुणवत्ता के लिए प्रमाणपत्र, निर्माण सामग्री की उचित स्रोत से प्राप्ति, बुजुर्ग और दिव्यांग लाभार्थियों को मकान बनाने में मदद, मकान के निर्माण में इलाके की स्थिति और मकान के डिजाईन आदि की सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का कार्यान्वयन पारदर्शी तरीके से हो, गुणवत्ता सुनिश्ति हो सके और मकानों का निर्माण समय पर हो, इसके लिए निर्माण की भौतिक प्रगति की निगरानी 'आवाससॉफ्ट' की मदद से भारत सरकार और राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों के स्तर पर की जाती है।

रोजगार पर असर

आवास पर किए जाने वाले खर्च से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों ही तरह के रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं, इसमें 2016-17 से (जिस साल से पुनर्गठित योजना लागू की गई) रोजगार पर इसके असर को समझने का एक प्रयास किया गया है। प्रत्यक्ष प्रभाव के मामले में अध्ययन में राज्य स्तर पर उपलब्ध कराए गए ‘पहल’ प्रारूपों का प्रयोग किया गया और अप्रत्यक्ष प्रभावों के लिए अध्ययन में इनपुट-आउटपुट सूचियों का उपयोग किया गया।

'पहल' से प्रत्यक्ष रोजगार

'पहल' के तहत 100 से ज्यादा डिजाईन उपलब्ध कराए गए हैं और इन डिजाईनों के आधार पर प्रत्येक घटक के लिए लागत का मोटे तौर पर अनुमान लगाया गया है। लेकिन ये अनुमान डिजाईन के अनुसार बदल सकते हैं हालांकि यह बदलाव मामूली होता है। इस पर बात गौर करना भी महत्वपूर्ण है कि ‘पहल' में उपलब्ध कराए गए ज्यादातर डिजाईनों की लागत योजना में उपलब्ध कराई जाने वाली राशि से अधिक है। इसी तरह, इन डिजाईनों का क्षेत्रफल भी योजना में निर्धारित 25 वर्गमीटर से अधिक है। (पहल, 2017ए, 2017बी)। चित्र—1 में दिए गए लागत संयोजन से प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के मकानों की लागत में श्रम समेत विभिन्न आधानों के हिस्से का पता चलता है। कुल मिलाकर विभिन्न राज्यों और डिजाईनों में इस्तेमाल की गई सामग्री और श्रमशक्ति में ज्यादा अंतर नहीं पाया गया। ज्यादातर डिजाईन आधान संबंधी ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराते यहां आगे विश्लेषण के लिए हमने वह डिजाईन लिया है जिसमें सामग्री और श्रम संबंधी लागत का ब्यौरा उपलब्ध कराया गया है। मैदानी इलाकों के लिए हमने बिहार के डिजाईन चुने हैं और पहाड़ी इलाकों के लिए असम से एक डिजाईन का चयन किया गया है।

आकलन के बारे में अवधारणा

चूंकि हम रोजगार पर निर्माण के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों को समझना चाहते हैं, इसलिए निर्माण के समूचे नतीजों को आधान, खासतौर पर सामग्री और श्रम के रूप में अलग-अलग करने की आवश्यकता है। लेकिन 'पहल' विखंडित आंकड़े उपलब्ध नहीं कराता। सामग्री और श्रम की लागत के आकलन के लिए निम्नलिखित परिकल्पनाएं की गई हैं:

1. इस्पात के लिए गणना मकान के निर्माण में इस्तेमाल की गई सामग्री, जैसे रीइनफोर्समेंट के लिए काम में लाए गए इस्पात, चिकन मैश, लोहे के सरियों को बांधन के लिए तार, शटरिंग सामग्री, हार्डवेयर (कील, लैशेज और रस्सियों), दरवाजों और खिड़कियों के लिए इस्पात के ढांचे को ध्यान में रखकर की जाती है। इन सामग्रियों की कीमतें 'पहल' से ली गई हैं।

2. यह मान लिया गया है कि मकान में सफेदी कराने की कुल लागत में सामग्री और श्रम का अनुपात 60:40 के बीच है।

प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रोजगार पर पीएमएवाई - जी का प्रभाव

2016-17 और 2017-18 में पीएमएवाई-जी पर हुए खर्च के प्रभाव को जांचने के लिए गुणक विश्लेषण के जरिए बेंचमार्क अनुमानों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पीएमएवाई-जी में हुए कुल खर्च से अर्थव्यवस्था में 94.53 लाख अतिरिक्त नौकरियां सृजित हो सकती हैं। इनमें से 83.35 लाख लोगों को आवास निर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष रोजगार मिला है (तालिका 3.3)। इसका अर्थ है कुल रोजगार में 1.77 प्रतिशत की वृद्धि । इसी प्रकार कुल जीवीए में 0.55 प्रतिशत वृद्धि की संभावना है (तालिका-2)।

पीएमएवाई-जी के कुल अनुमानित खर्च से अर्थव्यवस्था में 94.53 लाख नौकरियों का सृजन हुआ होगा अर्थात रोजगार में 1.77 प्रतिशत वृद्धि हुई होगी। इनमें से 83.35 लाख सीधे आवास निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं और 1.99 लाख लोगों को निर्माण से संबंधित विनिर्माण क्षेत्र से रोजगार मिले हैं।

विभिन्न स्थितियों पर आधारित अनुमान

पहले दिए गए अनुमान खर्च की कुल मात्रा पर आधारित थे, जिनमें लाभार्थियों के काल्पनिक योगदान भी शामिल थे। लेकिन लाभार्थी का योगदान मात्रा तथा लाभार्थी की वहन करने की क्षमता के अनुसार अलग-अलग होता है। हो सकता है कि सभी लाभार्थी अतिरिक्त योगदान करने की स्थिति में। नहीं हों। इसीलिए तीन स्थितियों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रोजगार पर पीएमएवाई के प्रभाव का पता लगाने का प्रयास किया गया है। पहली स्थिति में लाभार्थी कोई भी अतिरिक्त योगदान नहीं करता (केस ए), दूसरी में 35,000 रुपये तक (कस बी) और तीसरी में 70,000 रुपये तक (केस सी) योगदान करता है। यह हमारे पहले के अनुमानों पर आधारित है, जिसमें हमें पता लगा था कि 'पहल' के अनुसार लाभार्थी 69,000 से 75,000 रुपये तक का योगदान करते हैं।

निष्कर्ष

इस लेख में भारत में रोजगार पर ग्रामीण आवास योजना के प्रभाव के उन परिणामों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है, जिनकी । गणना भानुमूर्ति एवं अन्य (2018) ने की है। यह लेख एक विस्तृत रिपोर्ट पर आधारित है और वह रिपोर्ट ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशन वाले हिस्से में उपलब्ध है। सामान्य तौर पर निर्माण का विशेष रूप से ग्रामीण आवास का अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ मजबूत जोड़ होने की अपेक्षा है, इसलिए रोजगार पर असर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष तरीकों से हो सकता है। यहां अप्रैल, 2016 से 5 मार्च, 2018 की अवधि के लिए गणना की गई है। प्रत्यक्ष रोजगार की गणना ग्रामीण आवास की नमूना डिजाइनों के आधार पर सृजित मानव दिवसों में की गई है। परोक्ष रोजगार के मामले में रिपोर्ट इनपुट-आउटपुट तालिका का प्रयोग करती है क्योंकि उसमें रोजगार, मूल्यवर्द्धन तथा आउटपुट या उत्पादन अथवा परिणाम के लिए गुणक होते हैं।

2016-17 से तैयार हुए तथा निर्माणाधीन मकानों के बारे में मिली जानकारी के आधार पर संभवतः योजना से लगभग 52. 47 करोड़ मानव दिवस सृजित हुए होंगे। दोनों वर्षों में इनमें से लगभग 20.85 करोड़ मानव दिवस कुशल श्रमिकों के और शेष 31.62 करोड़ मानव दिवस अकुशल श्रमबल के हैं। तैयार मकानों के जरिए सृजित प्रत्यक्ष रोजगार 40.07 करोड़ मानव दिवस (24.03 करोड़ मानव दिवस अकुशल एवं 16.04 करोड़ मानव दिवस कुशल श्रमबल के) रहे और निर्माणाधीन मकानों से 12.42 करोड़ मानव दिवस (7.60 करोड़ मानव दिवस अकुशल और 4.82 करोड़ मानव दिवस कुशल श्रमबल के) सृजित हुए। यदि सभी लाभार्थियों ने मनरेगा की सहायता ली है और क्षेत्र के आधार पर अकुशल श्रम के 90 या 95 दिनों का उपयोग किया है तो मनरेगा योजनाओं के अंतर्गत सृजित मानवदिवसों की अनुमानित संख्या तैयार मकानों के लिए 21. 46 करोड़ मानव दिवस और निर्माणाधीन मकानों के लिए 7.16 करोड़ मानव दिवस हो सकती है, जो कुल मिलाकर 28.62 करोड़ मानव दिवस बैठती है

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Courtesy: Kurukshetra