(The Gist of Kurukshetra) ‘सौभाग्य’ - हर घर बिजली का लक्ष्य [AUGUST-2018]


(The Gist of Kurukshetra) ‘सौभाग्य’ - हर घर बिजली का लक्ष्य [AUGUST-2018]


::‘सौभाग्य’ - हर घर बिजली का लक्ष्य::

सरकारी सूत्रों के अनुसार, 28 अप्रैल, 2017 को हर गांव बिजली से जुड़ा घोषित कर दिया गया। गौरतलब है कि किसी गांव को बिजली से जुड़ा घोषित करने के लिए वहां के लगभग 10 प्रतिशत घर, स्कूल, पंचायत, स्वास्थ्य केंद्र, डिस्पेंसरी और सामुदायिक भवनों तक बिजली की सप्लाई पहुंचना जरूरी है। । देश के कुल 577,464 गांवों में अब बिजली पहुंचा दी गई है। इस क्रम का अंतिम गांव है मणिपुर राज्य के सेनापति जिले का लेइसांग गांव जिसे 28 अप्रैल, 2017 को राष्ट्रीय बिजली ग्रिड से जोड़ दिया गया। इस गांव में कुल 19 परिवारों के 65 लोग रहते हैं जिनमें से 31 पुरुष और 34 महिलाएं हैं। इसका श्रेय दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) को जाता है। एनडीए सरकार की 75,883 करोड़ रुपये की यह योजना वर्ष 2015 में शुरु की गई थी, तब देश के कुल 18,452 गांव बिजली से वंचित थे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2015 को लालकिले की प्राचीर से यह घोषणा की थी कि अगले 1000 दिन में देश के हरेक गांव को बिजली से जोड़ दिया जाएगा। लेकिन, 1236 गांव ऐसे भी हैं जहां कोई रहता नहीं है और 35 गांवों को चारागाह रिजर्व के रूप में घोषित किया गया है।

दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना को लागू करने का जिम्मा सरकार की ओर से संचालित ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी) को मिला था। बिजलीकरण में नोडल एजेंसी के रूप में कार्यरत आईईसी ने रिकॉर्ड समय के अंदर अपने लक्ष्य को हासिल किया।

हर गांव को बिजली पहुंचाने के बाद सरकार का अगला लक्ष्य देश के हर घर, चाहे वह शहर में हो या गांव में, को बिजली पहुंचाना है। इस लक्ष्य पूर्ति के लिए सरकार ने 25 सितंबर, 2017 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिवस के दिन सौभाग्य (प्रधानमंत्री बिजली सहज हर घर योजना) योजना की शुरुआत की। योजना के अनुसार 31 मार्च, 2019 तक हर घर को बिजली पहुंचाकर उसे रोशन किया जाएगा। इस योजना पर कुल 16 हजार 320 करोड़ रुपये खर्च होंगे। फिलहाल सरकार ने इसके लिए 12 हजार 320 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन किया है। सौभाग्य- इस योजना के लिए केंद्र सरकार से 60 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। जबकि राज्यों को 10 प्रतिशत लगाना होगा और शेष 30 प्रतिशत राशि को बतौर ऋण बैंकों से लेना होगा। विशेष राज्यों के लिए केंद्र सरकार 85 प्रतिशत अनुदान देगी; बाकी का 5 प्रतिशत राज्य को लगाना होगा और बैंकों से सिर्फ 10 प्रतिशत ऋण लेना पड़ेगा। सौभाग्य योजना केंद्र और राज्यों के सहयोग से क्रियान्वित होगी। इस योजना में 20 राज्यों पर जोर दिया गया है। उनमें बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्य और राजस्थान शामिल हैं।

हालांकि देश के हर घर तक बिजली पहुंचाने के लक्ष्य को 31 मार्च, 2019 रखा गया है। लेकिन व्यावहारिक रूप से यह कितना संभव होगा, यह तो समय ही बताएगा। इस योजना के कार्यान्वयन के मार्ग में बहुत-सी अड़चनें हैं। केवल तारों को पहुंचा देने से ही विद्युतीकरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता। आधारभूत संरचना इस प्रकार होनी चाहिए कि हर घर तक बिजली पहुंचे। इसके लिए लाइन डेफिशिट को कम करना तथा पॉवर कट के रिस्क को कम करना भी जरूरी है। जहां तक पॉवर मीटरों की बात है, ये प्रीपेड मीटर होंगे। इन मीटरों की मदद से समय पर बिजली का भुगतान हो सकेगा, साथ ही इन मीटरों की रीडिंग और बिलिंग जैसे कार्यों के लिए मानवशक्ति यानी मैनपॉवर की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। लेकिन वर्तमान में सरकार द्वारा जिस दर से घरों को बिजली पहुंचाई जा रही है, उसे देखते हुए लगता है कि हर इन राज्यों में सबसे अच्छी स्थिति मध्य प्रदेश की लगती है। बाकी राज्य अपने निर्धारित लक्ष्य से काफी पीछे हैं। गौरतलब है। कि ‘सौभाग्य योजना के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों की भी आवश्यकता है। हालांकि पहले इनकी कमी हो रही थी, लेकिन अब कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय इस कमी को दूर करने के लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों को चयनित राज्यों को मुहैया कराने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। बेशक लक्ष्य 31 मार्च, 2019 तक पूरा होता है या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन हर घर तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखने वाली 'सौभाग्य योजना निस्संदेह एक अच्छी योजना है और सरकार द्वारा लिया गया एक सकारात्मक कदम है जिसकी सराहना की जानी चाहिए।

कैसे पूरा होगा सौभाग्य योजना का लक्ष्य

आज हमारे देश में बिजली की कमी नहीं है। यह अलग बात है कि कई कारणों से अनेक गांवों तक अब तक बिजली नहीं पहुंचाई जा सकी थी। हमारे देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से कोयले पर ही निर्भर रहा है हालांकि इसमें गैस, नामिकीय ऊर्जा तथा नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त बिजली का भी योगदान है। गौरतलब है कि सन् 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 175 गीगावॉट रखा गया है। इसमें से सौर ऊर्जा का योगदान 100 गीगावॉट, पवन ऊर्जा का 60 गीगावॉट, बायोमास 10 गीगावॉट तथा लघु पनबिजली का योगदान 15 गीगावॉट है। जनवरी 2018 में 175 गीगावॉट के लक्ष्य को बढ़ाकर 227 गीगावॉट कर दिया गया है। सौर ऊर्जा युक्तियों पर छूट यानी सब्सिडी दिए जाने के कारण देश में सौर ऊर्जा पर आने वाली लागत कम होती जा रही। है। वैसे भी भारत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है। अतः देश में ग्रीन यानी हरित ऊर्जा स्रोतों के विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है। पेट्रोल और डीजल से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए सन् 2030 तक भारत विद्युत वाहनों को लाने की योजना बना रहा है। साथ ही साथ कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए 14 गीगावॉट विद्युतशक्ति के कोयले पर निर्भर ताप बिजलीघरों के निर्माण पर भी रोक लगा दी गई है।

बिजली के मामले में चोरी के अलावा संमरण एवं वितरण स्थिति (डिस्ट्रिब्यूशन एंड ट्रांसमिशन लॉस) की समस्या भी जुड़ी है। खासकर ग्रामीण इलाकों में विद्युतीकरण की प्रक्रिया में अधिक संमरण लागत (ट्रांसमिशन कॉस्ट) भी आती है। लेकिन दूरस्थ गांवों तक परंपरागत यानी नेशनल ग्रिड द्वारा बिजली पहुंचाना संभव नहीं। इसमें नवीकरणीय ऊर्जाओं, जैसेकि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैवभार (बायोमास) ऊर्जा तथा बायोगैस ऊर्जा से ही काम लिया जाता है। हाल के वर्षों में मिनी सोलर ग्रिड, हाइब्रिड सोलर-विंड तथा हाइब्रिड सोलर–बायोगैस की संकल्पनाएं भी उभर कर आई हैं। इससे विद्युतीकरण की प्रक्रिया आसान हुई है। आइए, इनके योगदान पर अब विशद् रूप से चर्चा करते हैं।

सौर ऊर्जा, हाइब्रिड सोलर-विंड तथा मिनी सौर ग्रिड | हमारे देश में सौर ऊर्जा प्रचुरता से उपलब्ध है। सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में फोटोवोल्टीय प्रणाली द्वारा बदला जा सकता है। इस प्रणाली में सौर पैनल होते हैं जो कई फोटोवोल्टीय सेलों (जिन्हें सामान्य भाषा में सौर सेल कहते हैं) से मिलकर बनते हैं। कई सौर पैनलों से मिलकर एक सौर एरे (सोलर एरे) बनता है। सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में कंसन्ट्रेटेड सोलर पॉवर (सीएससी) में लैंसों या दर्पणों एवं ट्रेकिंग प्रणालियों द्वारा भी बदला जा सकता है। इस प्रकार सूर्य के प्रकाश को एक संकीर्ण किरण पुंज के रूप में लाया जा सकता है।

गौरतलब है कि देश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए यू तो अनेक प्रयास हुए लेकिन एक मुख्य प्रयास 11 जनवरी, 2010 को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर अभियान के साथ प्रारंभ हुआ। इस अभियान का लक्ष्य सन् 2022 तक 20,000 मेगावॉट ग्रिड सौर पॉवर तथा 2,000 मेगावॉट ऑफ ग्रिड सौर पॉवर का उत्पादन था। राष्ट्रीय सौर अभियान का लक्ष्य भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक और अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना था। सरकार ने राष्ट्रीय सौर अभियान के लक्ष्य को संशोधित कर वर्ष 2022 तक 20,000 मेगावॉट की बजाए 1,00,000 मेगावॉट यानी 100 टेरावॉट का लक्ष्य तय किया।

अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का समग्र विद्युतीकरण में योगदान

सौर एवं पवन ऊर्जा के अलावा जैव भार यानी बायोमॉस ऊर्जा तथा लघु पनबिजली (मिनी हाइड्रो) ऊर्जा का भी देश के समग्र विद्युतीकरण में योगदान है। फसलों के अपशिष्ट, सूखी पत्रियों, डंठलों, गन्ने की खोई, चावल और गेहूं की भूसी आदि बायोमास को गैसीफायर्स द्वारा गैसीकरण (गैसीफिकेशन) की प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा में बदला जाता है। इस ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने की टेक्नोलॉजी उपलब्ध है। देश में बायोमास से उत्पन्न विद्युत यानी बायोमास पॉवर की स्थापित क्षमता 31 मई, 2018 तक 8839.10 मेगावॉट थी।

लघु पनबिजली यानी स्यॉल हाइड्रो पावर को भी नवीकरणीय ऊर्जा में शामिल किया जाता है हालांकि वृहद् पनबिजली नवीकरणीय ऊर्जा में शामिल नहीं है। हमारे देश में लघु पनबिजली की स्थापित क्षमता 31 मई, 2018 तक 4485.81 मेगावॉट थी।। । बायोमास के अलावा मुख्यतया गोबर से चलने वाले बायोगैस संयंत्रों से वैकल्पिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। बायोगैस संयंत्रों से धुआंरहित ईंधन की आवश्यकता की पूर्ति भी होती है जो ग्रामीण महिलाओं की खासकर आंखें और फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।

बायोगैस को विद्युत ऊर्जा में भी बरता जा सकता है जिसके लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी देश में उपलब्ध है। सैद्धांतिक रूप से, आयोगैस को ईंधन (फ्यूल) सेल की मदद से सीधे ही बिजली में बदला जा सकता है। लेकिन, इसमें एकदम से स्वच्छ गैस एवं महंगे इंधन सेल की जरूरत पड़ती है। फिलहाल यह प्रौद्योगिकी व्यावहारिक नहीं है और इस पर अभी अनुसंधान चल रहा है।

वर्तमान परिदृश्य

आइए, देश के विद्युतीकरण परिदृश्य पर एक नजर डालते हैं। जैसाकि हम जानते हैं, हमारे देश में विद्युत उत्पादन मुख्य रूप से कोयला-आधारित है। कोयले के अलावा वृहद् पनबिजली नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, गैस, डीजल तथा नाभिकीय ऊर्जा से भी विद्युत उत्पादन होता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसेकि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास तथा लघु पनबिजली का समग्र विद्युत उत्पादन में योगदान क्रमशः 6.3 प्रतिशत, 9.9 प्रतिशत, 2.6 प्रतिशत तथा 1.3 प्रतिशत है। कुल मिलाकर, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का समग्र विद्युतीकरण में योगदान 20.1 प्रतिशत है। वृहद् पनबिजली का योगदान 13.2 प्रतिशत है। कोयले का योगदान सबसे अधिक 57.23 प्रतिशत जबकि गैस, डीजल एवं नाभिकीय ऊर्जा योगदान क्रमशः 7.2 प्रतिशत, 0.24 प्रतिशत तथा 1.97 प्रतिशत हैं। 31 मई, 2018 तक हमारे देश में उत्पन्न कुल बिजली 343,899 मेगावॉट थी (स्रोत : केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण) ।

उपरोक्त विवरण एवं आंकड़ों से स्पष्ट है कि 31 मार्च, 2019 तक ‘हर घर तक बिजली पहुंचाने का सरकार का सौभाग्य योजना का लक्ष्य फिलहाल अति महत्वाकांक्षी लगता है। देश के हर घर के विद्युतीकरण में अतिरिक्त समय भी लग सकता है। लेकिन मोटे तौर पर स्थिति आशाजनक है। आशा है, सबके लिए बिजली योजना पूर्ण होने पर वैश्विक रूप से देश की अलग ही छवि उभर कर आएगी।

इस संपूर्ण विवरण के बाद पाठकों के मस्तिष्क में एक बात जरूर उठ रही होगी कि सरकार विद्युतीकरण की स्थिति की मॉनीटरिंग कैसे कर रही है तथा आम जनता को इसकी जानकारी कैसे उपलब्ध होगी। इसके लिए अक्तूबर 2015 में सरकार द्वारा एक मोबाइल एप तथा एक वेब-डाटाबोर्ड, जिसका नाम गर्व (GARV) है, की स्थापना की गई है। साथ ही साथ सरकार द्वारा 309 ग्राम विद्युत अभियंताओं को विद्युतीकरण प्रक्रिया की मॉनीटरिंग का जिम्मा सौंपा गया है जो अद्यतन डाटा को 'गर्व' एप पर अपलोड करेंगे।

हालांकि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का सरकार ने दावा किया है, लेकिन कई डाटा में विसंगतियां पाई जा रही हैं। लेकिन इतने वृहद स्तर के इस कार्य में ऐसा होना एकदम स्वाभाविक है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि सौभाग्य योजना देश के नागरिकों के लिए विद्युतीकृत होने के सौभाग्य को लेकर आएगी। भारत जैसे विकासशील देशों के आगे का रास्ता ऐसी ही योजनाओं द्वारा प्रशस्त होता है। अतः सरकार के ऐसी विकासशील कार्यों की सराहना अवश्य होनी चाहिए।

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Courtesy: Kurukshetra