(The Gist of Kurukshetra) जनजातीय इलाको में PESA [JULY-2018]


(The Gist of Kurukshetra) जनजातीय इलाको में 'पेसा' [JULY-2018]


जनजातीय इलाको में 'पेसा' [Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act]

स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण स्थानीय स्वशासन को महात्मा गांधी की परिकल्पना के अनुसार व्यावहारिक और आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार प्रयास किए गए हैं। दुर्भाग्य से इस संबंध में राज्य सरकारों का रवैया बिलकुल अलग रहा और इसके परिणामस्वरूप प्रारंभिक चरण में स्थानीय ग्रामीण राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना का रुझान बहुत उत्साहजनक नहीं रहा। राज्य सरकारों ने ग्राम-स्तर की संस्थाओं को अधिकार-संपन्न बनाने में बहुत कम दिल्चस्पी ली और इन संस्थाओं को सत्ता क | हस्तांतरण तो नगण्य ही रहा।

आजादी के करीब 45 वर्षों बाद केंद्र सरकार को इस कड़वी सच्चाई का अहसास हुआ कि जनजातीय/ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं | प्रदान करने वाली प्रणाली कारगर तरीके से चालू नहीं हो पाई | थी। यह भी महसूस किया गया कि पंचायतों के माध्यम से जनता की कामकाजी भागीदारी के बिना ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों का विकास टिकाऊ नहीं रह पाएगा। इसके परिणामस्वरूप 1993 में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया। भारत के सभी राज्यों के लिए इस अधिनियम पर अमल को अनिवार्य कर दिया गया और पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया। 73वें संशोधन के माध्यम से विकेंद्रीकरण के सिद्धांत और जनता की शक्ति के हस्तांतरण के सिद्धांत के आधार पर देश की शासन प्रणाली और प्रशासनिक व्यवस्था का मूलभूत पुनर्गठन किया गया। |अब तक नीति नियोजन करने वालों को यह अहसास हो चला था कि नई पंचायती राज संस्थाओं के पास जनता की जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुसार बदलाव और विकास के नए युग में ले जाने और इस तरह जमीनी स्तर पर बुरी तरह गड़बड़ा चुकी । लोकतांत्रिक प्रणाली में नई जान फेंकने की क्षमता है (बहर और कुमार : 2002)

73 में संशोधन और 'पेसा' कानून का कार्यान्वयन

जनजातीय समुदाय भारतीय समाज के सबसे उपेक्षित वर्गों में शामिल है। ये लोग मुख्यधारा की विकास प्रक्रिया से अपेक्षाकृत कटे रहे हैं और इनकी अपनी लंबी व अविच्छिन्न परंपरा रही है। इन लोगों के अपने रीति-रिवाज और परंपराओं के ताने-बाने पर आधारित संयुक्त सामाजिक ढांचा है। अपने आपसी विवादों को सुलझाने और अपने संसाधनों तथा सामाजिक–राजनीतिक जीवन के नियमन के लिए इनकी अपनी पारंपरिक संस्थाएं हैं। जब नई पंचायती राज प्रणाली को जनजातीय इलाकों में लागू करने की योजना बनाई गई तो यह महसूस किया गया कि वैश्वीकरण के आज के युग में जनजातीय लोगों को उपेक्षा से बचाया जाना चाहिए। नौवीं पंचवर्षीय योजना के कार्यदल (1996) ने जनजातीय इलाकों में विकास और समानता के लिए सहभागितापूर्ण नियोजन को आवश्यक पूर्व शर्त बताया क्योंकि स्वतंत्रता के बाद इन इलाकों को विकास प्रक्रिया में अधिक महत्व नहीं मिल पाया। था। जमीनी स्तर की स्थानीय संस्थाओं को मजबूत करने और जनजातीय इलाकों को स्वशासन उपलब्ध कराने के लिए संविधान के खंड-9 का, जो पंचायतों से संबंधित है, संसद के अधिनियम के जरिए विस्तार किया गया।

पैसा कानून की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसका वह सुझाव है जिसमें कहा गया है कि हर ग्रामसभा लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों और विवादों के समाधान के परंपरागत तरीकों की हिफाजत करने में सक्षम होगी। इसके अलावा 1996 के केंद्रीय अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं को निम्नलिखित क्षेत्रों में विस्तृत अधिकार दिए जाने चाहिए : (1) सामाजिक और आर्थिक विकास के कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने से पहले उनकी स्वीकृति; (2) गरीबी दूर करने के कार्यक्रमों के लाभार्थियों की पहचान करना; (3) पंचायतों द्वारा खर्च की गई धनराशि के उपयोग का प्रमाणन् ।

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार) अधिनियम, 1996 (पैसा) में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई को उपर्युक्त अधिकार देने के बाद यह प्रावधान भी है कि ग्रामसभा या पंचायतें उपयुक्त स्तर पर निम्नलिखित अधिकारों से युक्त होंगीः (1) भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास के मामलों में परामर्श देने, (2) छुटपुट खनिजों के लिए लाइसेंस देने और इसी तरह की गतिविधियों में रियायतें देने, (3) छोटे जलाशयों की योजना बनाने और उनका प्रबंधन करने, (4) नशाबंदी लागू करने या किसी भी मादक पदार्थ की बिक्री और उपभोग को विनियमित या प्रतिबंधित करने (5) लघु वन उपजों का मालिकाना अधिकार, (6) जमीन के हस्तांतरण का अधिकार और अनुसूचित जनजातियों की गैर-कानूनी तरीके से । हथियाई गई जमीन की वापसी, (7) ग्रामीण बाजारों के प्रबंधन का अधिकार (8) अनुसूचित जनजातियों के लोगों को कर्ज देने संबंधी गतिविधियों पर नियंत्रण का अधिकार, (9) स्थानीय योजनाओं और संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार ।

पेसा कानून के बारे में जानकारी

यह सचमुच में चिंता का विषय है कि बड़ी भारी संख्या में उत्तरदाताओं को पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पंचायतों के विशेष दर्ज के बारे में जानकारी बहुत ही कम थी। यह बात बड़ा मायने रखती है क्योंकि प्रतिनिधियों को समझाने और उन त जानकारिया पहचान के लिए लगातार प्रयास किए जाते हैं।

ग्रामसभाओं को सक्रिय बनाना

पंचायती राज प्रतिनिधियों के गागराशा के बारे में दृष्टिकोण में लगभग नहीं के बराबर बदलाव आया है। ऐसा इसलिए भी है। क्योंकि जनजातियों के लोगों की जानकारी का स्तर बहुत कम है और महिला पचायती राज प्रतिनिधियों को इन मा की शादी कोई समझ है। ज्यादातर उत्तरदाताओं को, जो पचास प्रतिनिधि भी है, विशेष अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

ग्राम पंचायतों का संचालन

ग्राम पंचायत जमीनी स्तर पर तमाम कार्यों को करने वाली मुख्य संस्था है। बहुत बड़ी तादाद में उत्तरदाताओं ने बताया कि ये शाम पंचायत की बैठकों में नियमित रूप से हिस्सा लेते है। यह यात जाती। स्थिति को शान में रखते हुए बहुत महत्वपूर्ण है। बहुत बड़ी तादाद में उत्तरदाताओं ने यह भी कहा कि वे गांव में चल । कायों का भी निरीक्षण करते हैं। उत्तरदाता निरीक्षण के लिए विभिन्न कार्यालयों का दौरा करते हैं। लेकिन स्कूलों और आंगनवाड़ियों का आमतौर पर प्रयाप्त निरीक्षण नहीं होता। गाय में अब भी पीने के पानी, जली, सडक/पुल जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है।

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन

सेसा कानून के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधनों का जनजातीय लोगों के देसी ज्ञान के अनुसार प्रबंधन पेसा कानून के तहत एक प्रमुख गतिविधि है। आधे से भी कम उत्तरदाताओं को इस बात की। जानकारी है कि पेसा कानून के अंतर्गत ग्रामसभाओं को सौंपे गए। बेहद महत्वपूर्ण कार्यों में से एक प्राकृतिक संसाधनों (भूमि, जल और वन) के प्रबंधन का है। जनजातीय गांवों में से 50 प्रतिशत के पास वन और लघु वन उपज उपलब्ध हैं। जहां तक वनों पर नियंत्रण का सवाल है, सभी उत्तरदाताओं का स्पष्ट रूप से मानना है कि इन पर सरकारी / वन विभाग का नियंत्रण है। बहुत ही कम संख्या में ऐसे गांव हैं जहां छुटपुट खनिज उपलब्ध हैं। बहुत बड़ी तादात में गांवों में तालाब जैसे जलसंग्रह के स्थान हैं। जलाशयों के जलाशयों के प्रबंधन के लिए कमेटी प्रणाली काम में लाइ जा रही है। लेकिन बड़ी संख्या में उत्तरदाताओं ने यह भी कहा कि उनके गांव में । जलाशयों के प्रबंधन के लिए कोई व्यवस्था नहीं है

परंपराओं और रीति-रिवाजों का संरक्षण और सुरक्षा

बहुत बड़ी तादाद में उत्तरदाताओं की स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों में आस्था है। ग्रामसभाओं पर परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण और सुरक्षा की जिम्मेदारी है। हैरानी की बात है कि उत्तर देने वालों में से ज्यादातर को इस तथ्य । की जानकारी नहीं है। बहुत ही सीमित संख्या में उत्तरदाताओं ने परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कतिक पहचान के संरक्षण और सुरक्षा के बारे में ग्रामसभा में विचार-विमर्श किया है। परंपराओं और रीति-रिवाजों संबंधी जानकारी बहुत ही सतही किस्म के मुद्दों तक सीमित है और विवाद समाधान के पारंपरिक तौर-तरीके, प्राकृतिक संसाधनों की पूजा, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन की पारंपरिक विधियों, आजीविका के स्वरूप जैसे मुद्दों के किसी खास पहलू पर ग्रामसभा की बैठकों में चर्चा नहीं होती। ज्यादातर मामलों में ग्रामसभा/ जाति पंचायत सरपंच ही विवाद समाधान के मसलों को निपटा लेते हैं।

निष्कर्ष ।

हाल के वर्षों में कई रिपोट (उग्रवाद के असर वाले इलाकों | में विकास की चुनौती के बारे में योजना आयोग के विशेषज्ञ दल की रिपोर्ट-2008; दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की दूसरी रिपोर्ट 2007; बालचंद मुंगेकर समिति की रिपोर्ट-9) में यह बात जोर देकर कही गई है कि 'पेसा' कानून पर अमल की स्थिति बड़ी । निराशाजनक है। इसलिए एक ऐसी कारगर युक्ति को तत्काल अपनाने की जरूरत है जिसमें अधिकतम लोगों को सूचित किया जा सके, उन्हें जागरूक बनाया जा सके और 'पेसा' कानून के | उचित कार्यान्वयन तथा अमल के बारे में आगे आने को प्रेरित किया जा सके। जनजातीय लोगों की चुप रहने की संस्कृति को बदलने और क्षमता निर्माण, लोगों को संवेदनशील बनाने और जनजातीय स्वशासन परिदृश्य में सुधार के लिए जानकारी देने की। | भी आवश्यकता है।

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Courtesy: Kurukshetra