(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण विकास के लिए अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी [May-2018]


(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण विकास के लिए अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी [May-2018]


ग्रामीण विकास के लिए अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी

भारतीय अंतरिक्ष कर्यक्रम का मूल उद्देश्य टेक्नोलॉजी और अनुप्रयोग कर्यक्रम का विकास करना है जिससे देश की विकास संबंधी आवश्यकताएं पूरी हो सके। अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी मददगार के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों, खासतौर पर गांव के समग्र और त्वरित विकास के लिए कई महत्वपूर्ण साधन उपलब्ध कराती है। भारत उपग्रह दूरसंवेदन और संचार दोनों ही क्षेत्रों में आदि से अंत तक की क्षमता सृजित करने वाले दुनिया के अग्रणी देशों में से एक रहा है।ग्रामीण रोजगार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को महसूस करते हुए विकेंद्रित नियोजन में वेब जीआईएस के रूप में अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी का उपयोग शुरू किया गया। इसे एसआईएस डीपी कार्यक्रम के माध्यम से भुवन पंचायत पर अमल में लाया गया । इसके बाद वॉटरशैड निगरानी, मनरेगा के अंतर्गत निर्मित संपत्तियों की जिओ टैगिंग करने और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आरकेवीवाई राष्ट्रीय-स्तर की कृषि विस्तार परियोजना है, चित्र—1) के तहत सृजित खेती के बुनियादी ढांचे की जिओ टैगिंग करने इसकी मदद गई। राष्ट्रीय -कृषि , भूमि संसाधन और ग्रामीण रोजगार से संबंधित तीन प्रमुख विभागों ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पीएमकेएसवाई) के अंतर्गत इन तीन महत्वपूर्ण पहलों को संयुक्त रूप से अपनाया । है ताकि इनका क्रियान्वयन साझा तौर पर हो जिससे विकास कार्यक्रमों का फायदा अंततः किसानों तक पहुंच सके ।

वर्षाजल का संग्रह और इसका स्थानीय स्तर पर संरक्षण देश के वर्षाजल पर आधारित कृषि वाले इलाकों में सिंचाई के प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का मुख्य विषय है। इसका उद्देश्य मिट्टी और पानी के संरक्षण से संबंधित ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में समन्वय करके ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति में सुधार करना है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का उद्देश्य भारत के सिंचाई की समस्या वाले इलाकों में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता और इसका कारगर उपयोग सुनिश्चित करना है। जिन चार कार्यक्रमों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजनाका स्तंभ माना जाता है उनमें समन्वित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम वाटरशेड संरक्षण मिशन (मनरेगा, हर खेत को पानी और पर ड्रॉप मार क्रॉप (यानी पानी की हर गेंद से अधिक फसल) शामिल हैं।

ये कार्यक्रम जिस मूल सिद्धांत से जुड़े हैं, वह यह है कि बारानी खेती वाले इलाकों में सिंचाई की व्यवस्था पहले होनी चाहिए। इन चारों कार्यक्रामों की निगरानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरोद्वारा स्मार्टफोन एप और समन्वित वैब जीआईएस आधारित टेक्नोलॉजी के जरिए की जा रही है। समन्वित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम और जिओ मनरेगा की निगरानी का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बड़ा महत्व है क्योंकि इसके अंतर्गत बागवानी और वानिकी दोनों से संबंधित फसलों में बड़े पैमाने पर निवेश के साथ-साथ कषि उत्पादन में भी वृद्धि होती है

वाटरशेड प्रबंधन कार्यकर्मो के असर की निगरानी

वाटरशेड विकास कार्यक्रम देश के बारानी खेती वाले इलाकों में कृषि उत्पादन बढ़ाने और ग्रामीण लोगों की आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ- साथ प्राकृतिक संसाधनों के खत्म होने पर रोक लगाने के उद्देश्य से भूमि और जल संसाधनों के संरक्षण की दिशा में एक प्रमुख पहल है। पिछले वर्षों में अंतरिक्ष अनुप्रयोग को इस तरह से अनुकूलित किया गया है जिससे कि भूमि और जल संसाधनों के समन्वित विकास की जरूरतों को पूरा किया जा सके तथा उपचारित वाटरशेड में हुए सुधार का आकलन किया जा सके। जमीन के उपयोगफसल क्षेत्र जलाशयों और पानी की निकासी, मिट्टीक्षेत्र की विशेषताओं जैसे संसाधनों की स्थिति दर्शाने वाले मानचित्रों का उपयोग करके सूक्ष्म वाटरशेड-स्तर पर जो विकास योजनाएं तैयार की गई हैं उनका प्रभाव जमीनी स्तर पर विभिन्न रूप में दिखाई देने लगा है। इससे फसलों की सघनता और उपज में सुधार हुआ है, परती भूमि का क्षेत्र घटा है और सिंचित फसलों का क्षेत्र बढ़ा है।

समन्वित वाटरशेड प्रबंधन कार्यकर्म का असर

जल संरक्षण के प्रयासों का प्रभाव क्रियान्वयन अवधि के दौरान स्पष्ट रूप से बाइ-टैम्पोरल उपग्रह चित्रों में देखा जा सकता है । क्षेत्रीय दौरों के दौरान प्रेक्षणों और बातचीत से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि समन्वित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम के तहत सिंचाई क्षमता में बढ़ोतरी हुई है। चूंकि समूची प्रक्रिया भू-स्थानिक डाटाबेस के रूप में उपलब्ध है जिसमें वाटरशेड प्रबंधन के नतीजों को भी शामिल किया गया है, इसलिए निरंतरता के संकेतकों को कालक्रम के अनुसार लिए गए उपग्रह चित्रों से परियोजना अवधि से बाहर के काल में भी देखा जा सकता है ? चैक बांधों और खेतों में तालाबों के निर्माण तथा पेड़-पौधों और वनस्पतियों को (fp= 2) देखकर किसी वाटरशेड में हुए परिवर्तनों को समझा जा सकता है। इससे विकास गतिविधियों और उन तक नागरिकों की पहुंच को वेबयुक्त जीआईएस पोर्टल की क्षमता का पता चलता है।
जिओ मनरेगा : ग्रामीण रोजगार सृजन गतिविधियों के सूचीकरणनिगरानी और नियोजन के लिए भू-स्थानिक अनुप्रयोग

जिओ मनरेगा ग्रामीण विकास विभाग के मनरेगा का अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी आधारित घटक है। इसका उद्देश्य योजना के अंतर्गत संचालित की जाने वाली तमाम गतिविधियों के लिए । भौगोलिक सूचना प्रणाली का क्रियान्वयन करना है। राष्ट्रीय दूरसंवेदन केंद्र इसरोने भुवन के बारे में वेबपोर्टल का विकास कर इसे स्मार्ट फोन एप और जीआईएस से समन्वित किया है। जिओ टैगिंग के अपने प्रारंभिक प्रयासों में |ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जल संरक्षण आधारित गतिविधियों को पुनर्निर्धारित किया है और इसमें दूरसंवेदनजीपीएस और जीआईएस टेक्नोलॉजी को भी शामिल कर लिया गया है। जिसकी नियोजनक्रियान्वयन और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका राष्ट्रीय दूरसंवेदन केंद्र द्वारा विकसित जिओ मनरेगा भू-सूचना समन्वित वेब सेवा/पोर्टल है जिससे मनरेगा की नियोजन और प्रबंधन संबंधी गतिविधियों में सहायता मिलती है। ये गतिविधियां सहायता देने से लेकर आखिरी उपयोग करने वालों को सहायता पहुंचाने संबंधी हो सकती हैं। इसका विकास मनरेगा सॉफ्ट को इसरो के भुवन पोर्टल के साथ समन्वित करके किया गया है। मनरेगा सॉफ्ट पर उपलब्ध तमाम परिसंपत्तियों का डाटाबेस भुवन पर भी डाल दिया गया है जिसका उपयोग जिओ मनरेगा के माध्यम | से ग्राम पंचायत के अधीन प्रत्येक डाटा संग्राहक द्वारा किया जाता है। ब्लॉक स्तर पर अधिकारी संकलित डाटा का संपादन कर उसे गुणवत्ता संबंधी स्वीकृति प्रदान करते हैं। इस तरह भुवन निर्मित परिसंपत्तियों के बारे में एक समावेशी भौगोलिक सूचना संग्रह पुनप्रप्ति, विश्लेषण और रिपोर्टिग का मंच उपलब्ध कराता है। इस सबके पीछे अत्यंत उच्च रिजोल्यूशन वाला भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह है जो हमारे ग्रामीण विकास संबंधी नियोजन का आधार है। जिओ मनरेगा का सबसे प्रमुख अनुप्रयोग मूलतः परिसंपत्तियों की संचालनात्मक निगरानी में है।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के लिए मू-स्थानिक टेक्नोलॉजी

भारत सरकार के कृषि और सहकारिता तथा किसान कल्याण विभाग ने अपनी विशेष अतिरिक्त केंद्रीय सहायता योजना के रूप में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का क्रियान्वयन किया है। यह परियोजना 2007-08 में प्रारंभ हुई और इसके अंतर्गत 5768 परियोजनाएं शामिल हैं जिन्हें मोटे तौर पर कृषि और संबंधित क्षेत्रों जैसे बागवानी, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधनकृषि का यंत्रीकरण, विपणन और फसल कटाई के बाद के प्रबंधनपशुपालन , दुग्ध उत्पादनमछली पालनऔर विस्तार के अंतर्गत रखा जा सकता सकता है राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत मानचित्रण के लिए भुवन पोर्टल का विकास किया गया है। देशभर में फैली परिसंपत्तियों के चित्र लेने के लिए एनआरएससी/इसरो द्वारा मोबाइल स्मार्ट फोन एप विकसित किया गया है। यह एप स्थान विशेष सापेक्ष है और इसमें भुवन मानचित्र पर परिसंपत्तियों की स्थिति के निर्धारण, फोटो के साथ अक्षांश और देशांतर दर्ज करने, और सूचना देने वाले क्षेत्रीय अधिकारी/गणक के नाम के उल्लेख की व्यवस्था की गई है। अब तक कुल 62000 परिसंपत्तियों की जिओटैगिंग की जा चुकी है जिनमें से 12000 को सत्यापन के बाद स्वीकार भी कर लिया गया है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) ।

ग्रामीण सड़कों के बारे में पारंपरिक डाटा स्रोत जैसे भू-राजस्व मानचित्र और एसओआई टोपो मैप आदि बड़ी उपयोगी जानकारियां उपलब्ध कराते हैं। लेकिन कारगर निगरानी और मूल्यांकन के लिए इस तरह की सूचना को समय-समय पर अद्यतन करना पड़ता है। इस संदर्भ में उच्च रिजोल्यूशन वाले उपग्रह डाटा से ग्रामीण सड़कों के बारे में चित्र लेने की तारीख को विश्वसनीय सूचना प्राप्त की जा सकती है। 1999 में पहली बार ग्रामीण सड़कों के बारे में स्थानिक डाटाबेस तैयार करने की दिशा में प्रयास हुआ। उस समय तेलंगाना के आदिलाबाद जिले में इचोडा मंडल के लिए परीक्षण के तौर पर इसकी कोशिश की गई जिसमें आईआरएस 1सी से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया गया। बाद में 2001 में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुरोध पर इस अध्ययन का दायरा बढ़ा कर राजस्थान के झालावाड़बारां और धौलपुर जिलों को भी इसमें शामिल कर लिया गया। । इसके बाद 2015 में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत ग्रामीण विकास में भू-सूचना विज्ञान अनुप्रयोग केंद्रराष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान परीक्षण के तौर पर एक परियोजना पर अमल किया जिसमें पांच राज्यों के 10 जिलों को शामिल किया गया था। इसके साथ ही तेलंगाना के पूर्ववर्ती महबूबनगर जिले के चुने हुए तीन ब्लॉकों में राष्ट्रीय दूरसंवेदन केंद्र ने इसी तरह के अध्ययन किए। इससे जो भू-स्थानिक सूचना प्राप्त हुई उसे भुवन पोर्टल पर प्रदर्शित किया गया।

परती भूमि का विकास

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन भूमि संसाधन विभाग ने राष्ट्रिय दूरसंवेदन केंद्र/भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से दूरसंवेदन तकनीकों का इस्तेमाल करके देश में कुल परती भूमि, इसके फैलाव, इसकी प्रकृति और खराबी की स्तिथि व् परिणाम आदि की दृष्टि से स्थानिक सूचना त्यार करने का अनुरोध किया था ताकि इस तरह की जमीन को उपयोगी बनाने की विकास योजनाओं और नीतियों पर अमल किया जा सके। राष्ट्रिय दूरसंवेदन केंद्र में ऐसी भूमि का मानचित्र और एटलस 1986 में तैयार कर लिया था और 2005-06 से उसकी निगरानी कर रहा है।

राष्ट्रिय परती भूमि विकास बोर्ड के अनुसार परती भूमि ऐसी खराब जमीं है जिस पर युक्तिसंगत से प्रयासों पेड़-पौधे और वनस्पतियां उगाई जा सकती हैं, मगर जिसका अभी पूरा उपयोग नहीं हो रहा है। इसी तरह ऐसी जमीन भी परती भूमि है जो उपयुक्त जल और भूमि प्रबंधन की कमी या प्राकृतिक कारणों से खराब होती जा रही है। राष्ट्रीय दूरसंवेदन केंद्र ने वर्ष 1985 में देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में परती भूमि के मानचित्र 1 : 10,00000 के पैमाने पर बनाए। देश में परती भूमि के मानचित्रण के लिए आठ-स्तरीय वर्गीकरण प्रणाली भी अपनाई गई। इस अध्ययन के आधार पर देश में कुल .33 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र परती भूमि के अंतर्गत पाया गया जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1620 प्रतिशत है। । इस प्रयास के तहत जो मानचित्र तैयार हुए उनसे देश में कुल परती भूमि और उनके स्थानिक वितरण का लगाया गया।
परती भूमि मानचित्रण का काम 1986 से 2000 के दौरान किया गया। इसमें तेरह-स्तरीय वर्गीकरण प्रणाली अपनाई गई। परती भूमि के बारे में अंतिम समेकित एटलस मई 2000 में छपी। बाद में भूमि संसाधन विभाग के अनुरोध पर राष्ट्रीय दूरसंवेदन केंद्र ने 28 स्तरीय वर्गीकरण अपनाते हुए इस तरह की भूमि का मानचित्रण किया और पुरानी एटलस को अद्यतन बना दिया। देश में परती भूमि का विस्तार 5527 करोड़ हेक्टेयर होने का अनुमान है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 17.45 प्रतिशत है। परती भूमि में स्थान और काल संबंधी बदलावों को समझने के लिए 2006 में परती भूामि की निगरानी की राष्ट्रीय योजना प्रारंभ की गई। इसका उद्देश्य परती भूमि की स्थिति का आकलन करना और इसमें बदलाव की निगरानी करना था। इसमें वर्ष 2005-06 के तीन मौसमों यानी खरीफ, रबी और ज़ायद के उपग्रह आंकड़ों का उपयोग परती भूमि के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिए किया गया। इससे जीन मौसमों के उपग्रह आंकड़ों के आधार पर परती भूमि की विभिन्न श्रेणियों के सीमांकन में सुधार लाने में मदद मिली। देश में 4722 करोड़ कुल भौगोलिक क्षेत्रफल (टीजीएका 1491 प्रतिशत) हेक्टेयर इलाका परतीभूमि के रूप में दर्ज किया गया। 2010 में भूमि सुधार विभाग ने 2008-09 के उपग्रह आंकड़ों के आधार पर परती भूमि के मानचित्रण और 2005-06 की तुलना में आए बदलावों को दर्ज करने का फिर अनुरोध किया। इस आधार पर परती भूमि की श्रेणियों में संशोधन किया गया और इलाकों की पहचान की गई। इन परिवर्तनों की बाद में सीमित जमीनी जांच से पुष्टि की गई।

विकेन्द्रित नियोजन के लिए अंतरिक्ष आधारित सूचना सहायता (एसआईएस - डीपी)

सबसे निचले स्तर पर विकासमूलक नियोजन के लिए भूमि और जल संसाधनों तथा उनके अनुकूलतम प्रबंधन के बारे में विश्वसनीय सूचना होना बहुत जरूरी है। इस तरह की अंतरिक्ष आधारित सूचना का उपयोग विकेंद्रित नियोजन के लिए किया जा रहा है जिसके अंतर्गत स्थानीय निकायों (ग्राम पंचायतों) को विकास की योजनाएं बनाने को कहा जा रहा है। इसमें प्राकृतिक संसाधनों के बारे में स्थान विशेष का संदर्भ देने वाले चित्र और राज्य स्तर के आंकड़े सम्मिलित रहते हैं जो 1 : 10000 के पैमाने पर होते हैं। इसके अलावा लाभार्थियों संबंधी विभिन्न आंकड़े भी उपलब्ध रहते हैं। चित्रों, संसाधनों के मानचित्रणगतिविधि नियोजन और पंचायत -स्तर पर योजनाओं की निगरानी के लिए "भुवन पंचायत" नाम का एक पोर्टल बनाया गया है। इसके तहत देश की करीब 2.5 लाख पंचायतों में परिसंपत्तियों का मानचित्रण करने की योजना बनाई गई है। भुवन पंचायत पोर्टल की क्षमता को और बढ़ाया जाएगा ताकि विकास संबंधी नियोजन के लिए किसी स्थान विशेष से संबंधित कार्ययोजना तैयार की जा सके।
भुवन पोर्टल में देश में नियोजित विकास की शुरुआत के समय से योजना प्रक्रिया के बारे में जानकारी देने के लिए व्यवस्था की गई है जिससे उपलब्ध अद्यतन जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

ग्रामीण विकास से संबंधित विषय आधारित प्रमुख डाटाबेस भूमि के उपयोग और उस पर उगाई जाने वाली फसलों के बारे में है। जो 1 : 10000 के पैमाने पर बनाया गया है। इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 'इसरो के अग्रणी कार्यक्रम विकेंद्रित नियोजन के लिए अंतरिक्ष आधारित सूचना सहायता (एसआईएसडीपी) के तहत बनाया गया है। इसमें पानी की निकासी और सड़कों से संबंधित चित्र भी अत्यंत उच्च रिजोल्यूशन पर उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके साथ उपलब्ध डिजिटल एलीवेशन मॉडल नियोजन के लिए भौतिक निर्धारक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे किसी इलाके के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। और यह पता लगाया जा सकता है कि इलाका पहाड़ की चोटी है। या घाटी और उसी के अनुसार उपयुक्त योजना बनाई जा सकती है। भूमि उपयोग और भूमि आच्छादन से संबंधित डाटाबेस में 27 श्रेणियां हैं जिसके आधार पर इलाके की विशेषताओं का पता लगाकर सूक्ष्म-स्तर की योजना बनाई जा सकती है।

कृषि और जल संसाधन क्षेत्रों में अंतरिक्ष अनुप्रयोग

राष्ट्रीय दूरसंवेदन केंद्र ने कृषि और जल संसाधनों के क्षेत्र में निम्नलिखित भू-स्थानिक समाधान विकसित किए हैं। इनसे खाद्यान्न उत्पादन, किसानों की आमदनी और स्थान विशेष में सिंचाई और जलजीव पालन के लिए जल की उपलब्धता का पता लगाकर ग्रामीण क्षेत्रों का विकास किया जा सकता है। इन भू-स्थानिक समाधानों की ग्रामीण भारत का सतत विकास। सुनिश्चित करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है।

  • फसल बीमा निर्णय सहायता प्रणाली (सीआईडीएसएस- यह। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर अमल के लिए वैब-समर्थित 'समन्वित पैकेज है। सघन फसल उत्पादन - पूर्वी
  • भारत में हरितक्रांति लाने के लिए खरीफ की फसल के बाद धान के खाली पड़े खेतों का उपग्रह आधारित मानचित्रण। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन उच्च लागत वाली फसलों का मानचित्रण और मूल्याकन।
  • सूखे के प्रति कृषि की संवेदनशीलता।
  • बागवानी फसलों का मानचित्रण
  • रेशेदार फसलों की सूचना प्रणाली
  • जलाशय सूचना प्रणाली

भू-स्थानिक समाधानों के लाभ

  • समन्वित विकास गतिविधियों की बेहतर निगरानी और मूल्यांकन से अभिशासन में और अधिक सुगमता।
  • भू-स्थानिक समाधान क्षेत्र में जाकर मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले सर्वेक्षण के मुकाबले कहीं अधिक पारदर्शी और कुशल होते हैं।
  • इसमें प्रबंधन सूचना प्रणाली को भू-स्थानिक दृश्यता से जोड़ दिया जाता है।
  • इसमें स्थानीय-स्तर पर विस्तृत नियोजन और विकास होता है क्योंकि इसमें विभिन्न परियोजनाओं से आंकड़ों को समन्वित कर स्थान विशेष पर प्रभाव का विश्लेषण करने का अवसर प्राप्त होता है।
  • इससे किसी स्थान विशेष में परिसंपत्तियों के सृजन की आवश्यकता का पता लगाने में मदद मिलती है जिससे यह जाना जा सकता है अगर मानवीय या प्राकृतिक कारणों से परिसंपत्तियों को कोई नुकसान पहुंचा हो ।

भुवन जिओ पोर्टल

भुवन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के भारतीय प्लेटफार्म में उपग्रह डाटा के प्रदर्शनमुफ्त डाटा डाउनलोड विषय-केंद्रित मानचित्रों के प्रदर्शनडाउनलोड और विश्लेषण आपदाओं की समय रहते सूचना देने और किसी खास परियोजना के लिए जीआईएस अनुप्रयोग अगस्त 2009 से उपलब्ध करा रहा। है। भुवन पोर्टल उपलब्ध विषय-आधारित सेवा में सलेक्ट करने ब्राउज करने और थीमेटिक डाटाबेस से प्रश्न पूछने जैसी सुविधा उपलब्ध कराता है। इसका एलयूएलसी मानचित्र 1 : 10,000 के पैमाने पर कई अन्य विषयों के बारे में भी सूचनाएं प्रदान करता है। इसमें राज्यवार और जिलावार सूचनाएं आंकड़े प्राप्त करने की। सुविधा है और यह अभिरूचि के क्षेत्र पर आधारित विश्लेषण भी करता है। इसमें डब्ल्यूएमएस/डब्ल्यूएमटीएस सेवाओं के लिए यूआरएलप्रदर्शित चित्र का प्रिंट लेने की भी सुविधा है। इन सब सुविधाओं की वजह से यह वैज्ञानिक और अनुसंधान करने वालों और सरकारी संगठनों द्वारा विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों के लिए भू-सूचना वैज्ञानिक सूचनाओं का खजाना है।

निष्कर्ष

ग्रामीण क्षेत्रों में अभिशासनविशेष रूप से रोजगार क्षमता बढ़ाने के कार्यक्रमों को हाल में की गई पहलों से स्वागत योग्य बढ़ावा मिला है। इस तरह की पहलों में सभी सृजित परिसंपत्तियों की जिओ-टैगिंग करनाअभूतपूर्व-स्तर की पारदर्शिता लाना और कार्यकर्ताओं तथा नागरिकों दोनों का सत्यापन करना शामिल हैं। दूरसंवेदन की क्षमता में सुधार और स्थान व काल-आधारित समाधानों की व्यवस्था करने से सूक्ष्म-स्तर के सरोकारों का पूरी तरह और संतोषजनक तरीके से समाधान करने में बड़ी मदद मिल सकती है। वैब से जुड़े जीआईएस उपकरण सूचनाओं को देश के कोने-कोने तक पहुंचा सकते हैं और टेक्नोलॉजी के द्वारा आम आदमी के उपयोग के लिए खोल सकते हैं।

UPSC सामान्य अध्ययन प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा (Combo) Study Kit 2018

<<Go Back To Main Page

Courtesy: Kurukshetra