(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण [May-2018]
(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण [May-2018]
ग्रामीण क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण
आरयूटीएजी यानी ग्रामीण प्रौद्योगिकी कार्यसमूह एक सहक्रियात्मक और उप्रेरक क्रियाविधि है। यह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से आवश्यकता आधारित प्रौद्योगिकियों के उन्नयन से संबद्ध है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयूऔर राज्य और केंद्र सरकार के संगठनों द्वारा आवश्यकताओं को चिन्हित किया जाता है। आवश्यकता आधारित कदमों में प्रौद्योगिकी उन्नयनवितरण प्रशिक्षण और प्रदर्शन आदि शामिल हैं। विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आरयूटीएजी द्वारा प्रायोजित किए जाते हैं।
एमीण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता
आज भारत में 6 लाख से अधिक गांव , जहां कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा रहता है जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय यहां देश की आबादी का लगभग 85 प्रतिशत भाग रहता था। शहरीकरण की बढ़ती दर के अलावा, शहरी आबादी में लगातार बढ़ोतरी के लिए ग्रामीण लोगों का बड़े पैमाने पर शहरों में रोजगार के अवसरों और रहन-सहन की बेहतर सुविधाओं की तलाश में प्रवास जिम्मेदार ठहराया जा है। अधिकांश गांवों में अभी भी बुनियादी सकता सुविधाओं (पानीसफाई व्यवस्था, बिजलीखाना पकाने की स्वच्छ ऊर्जा, सड़कों) और सुविधाओं (स्वास्थ्य शिक्षा संचार) की कमी है। ग्रामीण और शहरी इलाको के बिच असमानता ग्रामीण लोगो को बेहतर संभावनाओं की तलाश में शहरों की और दिशाहीन पलायन को प्रेरित कर रही है। और इसके परिणामस्वरूप शहरों की जनसंख्या में बेतरतीब वृद्धि हो रही है।
आरयूटीएजी आईआईटी बॉम्बे की पहल
लगभग 60 साल पहले भारत में स्थापित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान अर्थात आईआईटी,
आधुनिकतम प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं शिक्षा द्वारा राष्ट्र निर्माण में योगदान के
लिए जाने जाते हैं। मुख्यधारा की विकास प्रक्रिया में अक्सर उपेक्षित ग्रामीण लोगों
और असंगठित क्षेत्रों की मदद का उन्होंने प्रयास किया है। इस दूरी को पाटने के
लिएग्रामीण प्रौद्योगिकी कार्यसमूह आरयूटीएजी) की कल्पना भारत सरकार के प्रधान
वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. आर चिदंबरम ने की थी। आईआईटी में उपलब्ध विशेषज्ञता का
प्रयोग करते हए विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) हस्तांतरण द्वारा ग्रामीण
विकास में तेजी लाने के लिए एक तंत्र के रूप में आरयूटीएजी की स्थापना की गई थी। 7
आईआईटी मद्रासखड़गपुरदिल्ली, रुड़की, गुवाहाटी, कानपुर और बॉम्बे) में आरयूटीएजी
स्थापित किए गए हैं और आईआईटी, बॉम्बे की स्थापना 2010 में हुई थी।
तक, आरयूटीएजी, आईआईटी, बॉम्बे ने ग्रामीण विकास में 20 परियोजनाएं शुरू की हैं।
कुछ प्रौद्योगिकियां जैसे एक्वाकल्चर के लिए फ्लोटिंग फिश केज सफल सिद्ध हुई हैं और
सरकार द्वारा सराही गई हैं। परियोजना अन्वेषक और परियोजना स्टाफ | के अलावा,
विभिन्न विभागों जैसे सीटीएआरएमैकेनिकल इंजीनियरिंगसिविल इंजीनियरिंग, ऊर्जा
विज्ञान और इंजीनियरिंग औद्योगिक डिजाइन केंद्र (आईडीसी)मानविकी और सामाजिक विज्ञान
(एचएसएस, और आईआईटी, बॉम्बे के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग के 20 से अधिक
संकाय सदस्य आरयूटीएजी परियोजनाओं और गतिविधियों में शामिल हैं।
आरयूटीएजी, आईआईटी, बॉम्बे, आरयूटीएजीआईआईटी, बॉम्बे सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी, अल्टरनेटिव्स फॉर रूरल एरियाज (सीटीएआरए) जो आईआईटी, बॉम्बे में स्थित एक स्वतंत्र अकादमिक इकाई है ,संस्थान के साथ निकट सहयोग में काम करता है। सीटीएआरए ग्रामीण क्षेत्रों की प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। सीटीएआरए के शिक्षण और अनुसंधान का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रासंगिक समाधान प्रदान करना है। सीटीएआरए असंगठित क्षेत्रों और सुविधाओं से वंचित समुदायों की समस्याओं की पहचान और उनके समाधान के कार्यान्वयन में मांग अनुसार संचालित भागीदारी दृष्टिकोण में विश्वास करता है। इसे प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिए सीटीएआरए ने एनजीओ, सरकारी विभागोंमंत्रालयों और उद्योग जैसे विभिन्न हितधारकों के साथ संपर्क बनाए हैं। सीटीएआरए के संकाय सदस्य और छात्र कई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।और आरयूटीएजी, आरयूटीएजीआईआईटी बॉम्बे की गतिविधियों में भरपूर योगदान दिया है।
आरयूटीएजी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पद्धति
आरयूटीएजी, आईआईटी, बॉम्बे पश्चिमी क्षेत्र में क्रियाशील है. जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा राज्य शामिल हैं। इस खंड में हस्तांतरण की जाने वाली तकनीकों को तैयार करने में आरयूटीएजी आईआईटी, बॉम्बे में अपनायी गई सामान्य पद्धति वर्णित की गई है।
परियोजनाओं की पहचान के लिए प्रक्रिया
आरयूटीएजी परियोजनाएं मांग संचालित हैं, यानी समस्या अंतिम उपयोगकर्ताओं से आनी है। यह हितधारकों से बेहतर सहभागिता स्थापित करने में भी मदद करता है जो तकनीकों के हस्तांतरण की सफलता सुनिश्चित करता है। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है, इसलिए लाभार्थी समुदायों तक संचार और पहुंच के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
ग्रामीण इलाकों में कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों एनजीओ) पर लोगों तक पहुंचने और उनके मुद्दों को समझने के लिए विश्वास किया जाता है। किसी परिस्थिति और संचार की समस्या की बेहतर समझ के लिए क्षेत्र से बेहतर परिचय और स्थानीय परिस्थिति की जानकारी आवश्यक हैं। वर्षों से, कई एनजीओ से संबंध स्थापित किए गए हैं। आरयूटीएजीआईआईटीबॉम्बे के टीम की सदस्य नियमित रूप से क्षेत्रीय दौरे करते हैं जिस दौरान वे ग्रामीण क्षेत्रों में एनजीओ के साथ नेटवर्किंग करते हैं और हितधारकों के साथ चर्चा करते हैं और आरटीएजी परियोजनाओं के लिए उपयुक्त समस्याओं की पहचान करते हैं। कभी-कभी कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं जिनमें क्षेत्र या खंड पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाता है। ये कार्यशालाएं सभी हितधारकों को एक मंच प्रदान करती हैं जहां वे मिलकर चर्चा करते हैं और समस्याओं की प्राथमिकताएं निर्धारित करते हैं जिनके लिए टेक्नोलॉजी हस्तांतरण किया जाना है।
डिजाइन विशेषताएं
- परियोजना शुरू हो जाने के बाद, परियोजना (परियोजना पीआई और सह-पीआई ) से जुड़े संकाय सदस्य परियोजना गतिविधियों की शुरुआत करते हैं। प्रोटोटाइप को डिजाइन करते समयनिम्नलिखित बातों को शामिल करने पर विशेष ध्यान दिया
- जोड़ने में आसान- उपकरण और यंत्रों का आमतौर पर सरल डिजाइन होता है और इसे बनाना या जोड़ना आसान होता।
- कम लागत- यह सुनिश्चित किया जाता है कि मशीनें कम लागत की और किफायती हों।
- स्थानीय निर्माताओं को शामिल करना- स्थानीय निर्माताओं को आमतौर पर विनिर्माण उपकरणों के प्रयोग में प्रशिक्षित किया जाता है ताकि स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप तंत्र तैयार किया जा सके।
- स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का उपयोग- जहां तक संभव हो, उपकरण के निर्माण के लिए स्थानीय रूप से सामग्री का उपयोग करने का प्रयास किया जाता है।
- प्रोटोटाइप के तैयार होने के बाद, उसके सुचारू कार्यप्रदर्शन और सुरक्षा संबंधी किसी संभावित समस्या की पहचान के लिए जांच की जाती है। अंतिम उपयोगकर्ता से फीडबैक प्राप्त की जाती है क्योंकि उनके सुझाव बहुत अमूल्य होते हैं। यदि आवश्यक हो तो तकनीकों में संशोधन किए जाते हैं और प्रक्रिया को फिर से चालू किया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक हम अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए स्वीकार्य और उपयुक्त मशीन तैयार नहीं कर लेते ।
आरयूटीएजी द्वारा तकनीकों के हस्तांतरण के उदाहरण
पिछले सात वर्षों मेंलगभग 20 परियोजनाएं पूरी की गई हैं, ज्यादातर मत्स्य पालनपशुपालन, एनटीएफपी या कृषि उपज के बाद फसल प्रसस्करण और पारंपरिक शिल्प जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कड़ी मेहनत में कमी और आजीविका में वृद्धि का लक्ष्य रहा है। यहां कुछ उदाहरण दिए गए , जबकि अधिक जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध है (http:/www-ctara-itb-ac-in/en rutag)।
अंतस्थलीय मत्स्यपालन के लिए फ्लोटिंग फिश केज की संरचना
आरयूटीएजी आईआईटी, बॉम्बे के अब तक के सबसे सफल तकनीकी हस्तांतरणों में से एक अंतरथलीय मत्स्यपालन के लिए फ्लोटिंग फिश केज की संरचना है। इस तकनीक को तैयार करने की प्रेरणा महाराष्ट्र के पुणे जिले के एनजीओ 'शाश्वत के अनुरोध से मिली थी। केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (सीआईएफईने दिम्भ बांध के कारण विस्थापित आदिवासियों के जीविकोपार्जन के लिए मत्स्य पालन की अनुशंसा की और ‘फ्लोटिंग फिश केज की मदद से मत्स्यपालन आरंभ किया। सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सिद्धार्थ घोष ने फिश केज की संरचना विकसित की थी। फिश केज संरचनाओं का उपयोग सुरक्षात्मक मत्स्यपालन के लिए किया जाता , जिसमें फिंगरलिंग यानी मछली के बच्चे को छोटी मछलियों तक विकसित होने के लिए पाला जाता है (खुले पानी में जीवित रहने की बेहतर दर जिसके कारण उच्च पैदावार होती है. या उससे भी बड़े आकार तक मछलियों को विकसित किया जा सकता है। फिश केज की संरचना बहुत मजबूतसुरक्षित और टिकाऊ है। इस तकनीक द्वारा देशभर में अंतः स्थलीय मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका को बेहतर बनाया जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार ने इसकी सराहना की है। संरचना की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं—
- यह मजबूत, सुरक्षितटिकाऊ, मापनीय है और जरूरत के अनुसार इसमें बदलाव लाया जा सकता है।
- यह जीआई पाइपों, फाइबर की जालियोंप्लास्टिक ड्रमों आदि से तैयार किया जाता है, जो आमतौर पर ज्यादातर स्थानों पर उपलब्ध हैं।
- पानी में तैरते हुए भी फिशकेज की सफाई रखरखाव किया जा सकता है।
डाउनर गाय के लिए गाय लिफ्ट
इस उपकरण द्वारा डाउनर गाय (ऐसी गाय जो किसी बीमारी के कारण पैर की कमजोर हुई
मांसपेशियों की वजह से खड़े होने में असमर्थ होती है ) को उपचार के लिए अपने पैरो पर
खड़े होने में सहायता मिलती है। इस उपकरण को पूरी तरह से खोला जा सकता है और जहां पशु
होता है उस
स्थान पर उसे फिर से जोड़ा जा सकता है। इसके तले में लगे पहियों के कारण यह उपकरण
पोर्टेबल है। इस परियोजना की जांच यांत्रिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर तनमय
भंदाककर ने की थी।
खाद्य पदार्थ सुखाने की हाइब्रिड सौर मशीन
यह मशीन जिसकी जांच ऊर्जा विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर शिरेश केदारे और प्रोफेसर मानस्विता बोस ने की थी कृषि उपज को तेज और कुशल तरीके से और लागत को हर संभव कम बनाए रखते हुए सुखाने के मुद्दे से जुड़ी है। कृषि उपज को लगातार सुखाना इस मशीन की प्रमुख विशेषता है। मौजूदा खाद्य पदार्थ सुखाने वाले सौर ड्रायर में से अधिकांश में इस सुविधा और गुणवत्ता की कमी है जिसके कारण सायंकाल में तापमान में गिरावट के कारण खाद्य उत्पाद पर कुप्रभाव पड़ता है। लगातार सुखाने के लिए पीसीएम फेज चेंज मेटेरियलउपयोग करना करना होता है।
जंगली मधुमक्खियों के छत्तों से शहद निकालने वालों के लिए हिफाजती पोशाक
इस परियोजना का लक्ष्य उन लोगों की सुरक्षा के लिए एक पोशाक तैयार करना है जो जंगली मधुमक्खियों के छत्तों से शहद निकालते हैं। यह पोशाक पहनने में सुविधाजनक होने के साथ व्यक्ति की रक्षा भी करेगी। यह पोशाक बनाने और उपयोग करने में आसान है। यह हलकी, टिकाऊ पोशाक है और इसकी धुलाई भी की जा सकती है। इस परियोजना की जाँच स्कुल ऑफ़ डिजाइन (औद्योगिक डिजाइन सेंटर) के प्रो. आर. सन्देश ने की थी।
फसल कटाई उपरांत प्रसंस्करण
आरयूटीएजी आईआईटीबॉम्बे द्वारा डिजाइन की गई कई तकनीकों द्वारा स्थानीय समुदायों को मूल्यवर्धन और आजीविका में बढोतरी के लिए जंगलों से एकत्रित कृषि उपज या एनटीएफपी (इमारती लकड़ी के अलावा वन उत्पाद) को संसाधित करने में सहायता मिलती है। हरीदा और बेहड़ा जैसे औषधीय फलों और चिरोंजी जैसे सूखे मेवों के प्रसंस्करण के लिए मशीनों को विकसित किया गया है जिनका बाजार मूल्य अच्छा है।
निष्कर्ष
आरयूटीएजी आईआईटी, बॉम्बे ने एक लंबा सफर तय किया है और इस दौरान यह ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं के निवारण के लिए कई उपयोगी तकनीकें तैयार कर चुका है। तकनीकों को डिजाइन करते समय यह सुनिश्चित किया जाता है कि स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग किया जाए और स्थानीय लोगों की इनमें हरसंभव तरीके से भागीदारी हो।
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Courtesy: Kurukshetra