(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण भारत में वित्तीय समावेशन के लिए प्रौद्योगिकी [May-2018]


(The Gist of Kurukshetra) ग्रामीण भारत में वित्तीय समावेशन के लिए प्रौद्योगिकी [May-2018]


ग्रामीण भारत में वित्तीय समावेशन के लिए प्रौद्योगिकी

वित्तीय समावेशन मुख्यधारा की संस्थाओं के जरिए उन उत्पादों और सेवाओं तक किफायती, निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से पहुंच सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है जिनकी जरूरत आमतौर पर समाज के सभी तबकों तथा खासतौर से कमजोर और कम आय वर्ग के लोगों को पड़ती है। वास्तव में यह राष्ट्रीय समावेशी विकास के सबसे महत्वपूर्ण निर्धारकों में से एक है। भारत जैसे देश में इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है जहां आजादी मिलने के 70 साल बाद भी कुल आबादी का लगभग 19 प्रतिशत हिस्सा बैंकिंग प्रणाली से बाहर है। व्यापक वित्तीय समावेशन के बिना कृषि आधारित प्रणाली से उत्तर-औद्योगिक आधुनिक समाज में आर्थिक परिवर्तन की मिसालें शायद ही कहीं मिलती हों।

जरा एक नजर अपने देश और ग्रामीण भारत के वंचित तबकों की जमीनी हकीकत पर डालें। लगभग 51.4 प्रतिशत किसान परिवार वित्तीय प्रणाली से बाहर हैं। कुल किसान परिवारों में से सिर्फ 27 प्रतिशत औपचारिक स्रोतों से कर्ज लेते हैं। इस समूह का एक-तिहाई भाग अनौपचारिक स्रोतों से भी ऋण हासिल करता है। किसान परिवारों के 73 प्रतिशत हिस्से की ऋण के औपचारिक स्रोतों तक पहुंच ही नहीं है। अपवर्जन बहुत बड़ा होने के साथ ही इसके आकार में भी विभिन्न क्षेत्रोंसामाजिक समूहों और संपत्ति स्वामित्वों में काफी फर्क है। समूह जितना गरीब है, उसका अपवर्जन भी उतना ही बड़ा होगा। कृषि आय की तुलना में किसानों का कर्ज काफी तेजी से बढ़रहा है। परिणामस्वरूप देश के सभी हिस्सों में किसान आत्महत्या जैसे कठोर और भयावह कदम तक उठाने लगे हैं। केन्या जैसे छोटे देश तक में लगभग दो-तिहाई बालिग नागरिक मोबाइल फोन आधारित धन स्थांतरण और भुगतान सेवा के सक्रीय ग्राहक है। तंजनिया में मोबाइल फ़ोन रखने वाले लगभग 50 प्रतिशत लोग धन के लेन-देन की प्रणाली के लिए भी इसका इस्तेमाल करते है।

वित्तीय साक्षरता वास्तव में वित्तीय समावेशन का सबसे बढ़ा तत्व है। सरकार कितने भी बढ़ी संख्या जुटा ली जाये अगर किसी व्यक्ति को अपने सामने मौजूद वित्तीय विकल्पों की जानकारी नहीं है तो नीतियों, कर्यकर्मो और वित्तीय उपकरणों का मतलब कुछ भी नहीं होगा। यह एकदम स्पष्ट है कि वित्तीय समावेशन और वित्तीय साक्षरता के लक्ष्य हासिल करने के लिए अन्य उपायों के अलावा प्रौद्योगिकी का पूरा इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
वित्तीय सारक्षता तीन सिंद्धान्तो पर आधारित होनी चाहिए

1. जनता को विरोध साधनों के बारे में कौशलज्ञान और सूचना हासिल करने में सक्षम बनाने में कम्प्यूटर, मोबाइल फोन और इंटरनेट जैसे माध्यमों का प्रभावशाली इस्तेमाल।
2. यह सुनिश्चित करना कि लोग विजिटल माध्यमों से हासिल सामग्री के गुणदोष समझने में सक्षम हों।
3. वे इसका इस्तेमाल अपनी अधिकतम जानकारी और क्षमता के अनुरूप करें।

भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई) ने इस मसले पर गहराई से गौर करते हुए पाया कि खासतौर से अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे लेनदेनजमाकर्ज इत्यादि के लिए वित्तीय समावेशन और वित्तीय साक्षरता के विशाल लक्ष्य को हासिल करने में बैंकिंग के पारंपरिक तौर-तरीके उपयोगी नहीं हैं। लिहाजा देश का दीय बैंक ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को वाणिज्यिक बैंकों के औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र के दायरे में लाने के लिए प्रौद्योगिकी का सक्रियता से इस्तेमाल कर रहा है। गांवों में यह काम राीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) को सौंपा गया है। यह मांग और आपूर्ति दोनों की कठिनाइयों

दो प्रमुख संगठनों / विभागों के जरिए देशभर में चलाया जा रहा स्वयंसेवा समूह- बैंक संयोजन कार्यक्रम एक प्रभावशाली वैकल्पिकऋण ऋण अंतरण प्रणाली के रूप में सबसे बढ़ा मील पत्थर साबित हुआ है। भारत को डिजिटल तौर पर सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के प्रधानमंत्री के मिशन के अनुरूप स्वयंसेवा समूहों (एसएचजी) जे डिजिटलकरण की परियोजना देश के 100 जिलों में चलाई जा रही है। परियोजना के तहत सबसे पहले हर जिले में बैंकवार और शाखावार मौजूद एसएचजी की मैपिंग की जाती है। इसके बाद स्वयंसेवको को स्वंसहायता समूहवार और सदस्यवार आंकड़े एकत्र करने के लिए परीक्षित किया जाता है। आंकड़ों को एक विशेष सॉफ्टवेयर के जरिये केंद्रीय सर्वर में डाला जाता है। इसके बाद इन्हे विशेष वेबसाइट के जरिए वेब पर डाला जाता है। इसके बाद इनहे विशेष वेबसाइट के जरिए केंद्रीय सर्वर में डाला जाता है इसके बाद इनहे विशेष वेबसाइट के जरिए विशेष वेब पर डाला और नियमित तौर पर अपडेट किया जाता है। इस तरह अंत में विभिन्न उपयोगकर्ताओं के लिए प्रबन्धन सुचना प्रणाली (एमआईएस) तैयार किया जाती है।

इस लक्ष्य को हासिल करने में कई चुनौतियों का सामना करना पढ़ सकता है। इनमे दूरसंचार क्नोक्तिविटी, खातों को सक्रिय रखनेबैंक मित्र की सफलतापहुच और प्रभावओवरड्राफ्ट भुगतानलाभ के सीधे हस्तांतरण के खर्च तथा हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और वाम-उग्रवाद वाले जिलों जैसे मुश्किल क्षेत्रों के समावेशन की चुनौतियां शामिल हैं। आरबीआई ने वित्तीय समावेशन की अपनी योजना के तहत 2006 में व्यवसाय अभिकर्ता (बीसी) का मॉडल शुरू किया था। जिन इलाकों में बैंकों की मौजूदगी नहीं है, उनके लिए वे व्यवसाय अभिकर्ताओं की नियुक्ति करते हैं। ये अभिकर्ता दूरदराज के इलाकों में गरीबों के दरवाजों तक इन बैंकों की तरफ से बैंकिंग सेवाएं मुहैया कराते हैं। इस काम में दो प्रमुख प्रौद्योगिकीय उपकरण शामिल हैं। पहला, हाथ में रखा जाने वाला आफलाइन उपकरण जिसके जरिए ग्राहकों को वित्तीय सेवाएं प्रदान की जाती हैं। दूसरालेनदेन दर्ज करने के लिए हर ग्राहक को दिया जाने वाला 32/64के मेमोरी चिप का स्मार्ट कार्ड व्यवसाय अभिकर्ता इनके अलावा खाता खोलने फॉर्म ग्राहक की जानकारियां भरने के लिए लैपटॉप, उसका फोटो लेने के वास्ते डिजिटल/वेब कैमरा तथा अंगुलियों के निशान दर्ज करने के बायोमैट्रिक उपकरण का इस्तेमाल करते हैं। निस्संदेह व्यवसाय अभिकर्ता और व्यवसाय सहायक दूरदराज के इलाकों में बैंकिंग सेवाएं मुहैया करा रहे हैं मगर उनसे यह काम मुफ्त में करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। खासतौर पर पूर्वोत्तर क्षेत्र में लेन-देन की कम संख्या को देखते हुए व्यवसाय अभिकर्ता के मॉडल की व्यावहारिकता एक बड़ा मसला रही है। इस समस्या को दूर करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों आरआरबी) के मामले में मासिक कमीशन के एक हिस्से की क्षतिपूर्ति कोष से की जाती है। इसकी अधिकतम सीमा हर माह प्रति व्यवसाय अभिकर्ता 3000 रुपये निर्धारित की गई है।

इसके अलावा, ग्रामीण आबादी को हर समय और हरेक जगह बैंकिंग सुविधा मुहैया कराने के लिए सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को कोर बैंकिंग प्रणाली के प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। रूपे किसान कार्ड से कृषक समुदाय में नकदी रहित लेन-देन को बढ़ावा मिल रहा है। नाबार्ड सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को ईएमवी चिप आधारित रूपे किसान कार्ड की खरीद में सहयोग दे रहा है। प्रधानमंत्री जनधन योजना से वित्तीय समावेशन को मिली रफ्तार की बदौलत देश के दूरदराज के इलाकों में बड़े पैमाने पर रूपे कार्ड पहुंचाना संभव हुआ है। लेकिन 15 करोड़ बिक्रीस्थल (पीओएस) टर्मिनलों में से शायद ही कोई पहली और दूसरी श्रेणी के केंद्रों से बाहर लगाया गया है। इस कारण प्रधानमंत्री जन-धन योजना से संबंधित रूपे कार्ड का इस्तेमाल आमतौर पर नकदी निकालने के लिए ही किया जा रहा है। हम डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ रहे हैं और मौजूदा स्थिति को देखते हुए ग्रामीण भारत में ऐसा परिवेश तैयार करना जरूरी है जिसमें लोग कार्ड का इस्तेमाल सिर्फ एटीएम मशीनों में ही नहीं बल्कि डिजिटल लेन-देन के लिए भी करें। इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड पांचवीं और छठी श्रेणी के केंद्रों के एक लाख गांवों में दो लाख टर्मिनल तैनात करने के काम में सहयोग कर रहा है

आरबीआई ने बैंको के एक नए मॉडल भुगतान बैंक की अवधारणा सामने रखी है। भुगतान बैंक का मुख्य लक्ष्य देश के दूरदराज के इलाको में सुरक्षित प्रौद्योगिकी आधारित परिवेश में छोटे व्यवसाइयों, कम आमदनी वाले परिवारों और प्रव्रजक मजदूरों तक भुगतान और वित्तीय सेवाओं के प्रसार को व्यापक बनाना है। मौजूदा समय में देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी के पास मोबाइल फोन हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग के लिए पारंपरिक तौर-तरीकों के बजाय इसकी पहुंच का इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमंद है। यह भौगोलिक सीमाओं को पाटकर तुरंत, सुरक्षित और प्रभावशाली बैंकिंग में सहायक है। यह खासतौर से ग्रामीण मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं के एक बड़े वर्ग में बैंकिंग और भुगतान सेवाओं की पहुंच बढ़ाने का अनूठा और किफायती जरिया मुहैया कराता है। कनेक्टिविटी और बिजली आपूर्ति में रुकावट दूरदराज के क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। इसके मद्देनजर पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा अंडमान और निकोबार द्वीपों में सभी सहकारी बैंकों को सौर ऊर्जा से चलने वाले वीसैट के लिए वित्तीय समावेशन कोष से सहायता के वास्ते योग्य बनाया गया है। सभी बैंकों को भी वाम-उग्रवाद प्रभावित जिलों में नई शाखाएं खोलने के लिए वीसैट कनेक्टिविटी की सहायता प्रदान की जाती है। कोई भी बैंक प्रति जिला पांच शाखाओं तक के लिए यह सहायता हासिल कर सकता है।

भविष्य का रास्ता

बैंकों को सिर्फ खाते खोलने तक सीमित रहने के बजाय यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि ग्राहक पूरे विश्वास के साथ और आरामदेह स्थिति में उनका इस्तेमाल कर सकें। देश को वित्तीय समावेशन के लिए प्रौद्योगिकी के एक किफायती भरोसेमंद और प्रभावशाली भारतीय मॉडल की जरूरत है। हमें डॉ. नचिकेत मोर और डॉ. संवामूर्ति कमेटी की सिफारिशों का इंतजार करना चाहिए जिनसे किसी भी तरह के हैंडसेट में कूटबद्ध एसएमएस आधारित धन हस्तांतरण के जरिए देश में मोबाइल बैंकिंग का विस्तार करने के बारे में दिशा-निर्देश मिलेंगे। कुल मिला कर देखें तो चुनौतियां बहुत हैं। लेकिन उनकी कोख में वे अवसर भी छिपे हैं। जो विकास के स्पंदन को बढ़ावा देकर देश को समावेशी विकास की तरफ ले जाएंगे।

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Courtesy: Kurukshetra