(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर : एक आर्थिक परिदृश्य [April-2018]
(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर : एक आर्थिक परिदृश्य [April-2018]
पूर्वोत्तर : एक आर्थिक परिदृश्य
सिक्किम समेत सात अलग लेकिन आसन्न राज्यों का समूह 'पूर्वोत्तर' निश्चित रूप से अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व क कारण हमारे देश में एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह उल्लेखनीय है कि त्रिपुरामिजोरम देश के सबसे उच्च साक्षरता वाले राज्यों में से हैं। चीन के बाद असम चाय का दूसरा सबसे बड़ा वाणिज्यिक उत्पादक क्षेत्र है। एशिया का पहला तल का कुआ असम के डिगबोई में है।
भूगोलिक कारक
पूर्वोत्तर क्षेत्र का तक़रीबन 70 % इलाका पहाड़ी है और इसमें लगभग 30 % आबादी
तालिका 1 : जीएसडीपी, पीसीआई और संवृद्धि दर की क्षेत्रवार स्थिति
क्र |
राज्य |
आबादी 2011 |
जीएसडीपी ( रु. करोड़ में ) | जीएसडीपी ( रु. करोड़ में ) |
2011-12 के मूल्यों के आधार पर जीएसडीपी वृद्धि (2016-17ए) |
||
मौजूदा दर पर | स्थिर कीमत पर (2011-12) | मौजूदा दर पर | स्थिर कीमत पर (2011-12) | ||||
1. | आंध्र प्रदेश | 84,580,777 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
2. | अरुणाचल प्रदेश | 1383727 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
3. | असम | 31205576 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
4. | बिहार | 104099452 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
5. | छत्तीसगढ़ | 25545198 | 290140 | 223932 | 91772 | 71214 | लागु नहीं |
6. | गोवा |
1458545 |
लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
7. | गुजरात | 60439692 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
8. | हरियाणा | 25351462 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
9. | हिमाचल प्रदेश | 6864602 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
10. | जम्मू कश्मीर | 125141302 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
11. | झारखण्ड | 32988134 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
12. | कर्नाटक | 61095297 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
13. | केरल | 33406061 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
14. | मध्यप्रदेश | 72626809 | 640484 | 465212 | 72599 | 51852 | 12.21 |
15. | महाराष्ट्र | 112374433 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
16. | मणिपुर | 2570390 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
17. | मेघालय | 2966889 | 29567 | 24005 | 79332 | 63678 | 6.65 |
18. | मिजोरम | 2966889 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
19. | नागालैंड | 1978502 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
20. | ओडिशा | 41974218 | 378991 | 314364 | 75223 | 61678 | 7.94 |
21. | पंजाब | 2774338 | 427870 | 348487 | 128821 | 103726 | 5.93 |
22. | राजस्थान | 68548437 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
23. | सिक्किम | 610577 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
24. | तमिलनाडु | 72147030 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
25. | तेलंगाना | 3673917 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
26. | त्रिपुरा | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | |
27. | उत्तर प्रदेश | 199813341 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
28. | उत्तराखंड | 10086292 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
29. | पश्चिम बंगाल | 91276115 | |||||
30. | अंदमान निकोबार | 380581 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
31. | चंडीगढ़ | 1055450 | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं | लागु नहीं |
32. | दिल्ली | 16787941 | 622385 | 498217 | 303073 | 240318 | 8.26 |
33. | पुंडुच्चेरी | 1247953 | 29557 | 23656 | 190384 | 150369 | 7.49 |
34 | सम्पूर्ण भारत | 1210569573 | 15183709 | 12189854 | 103219 | 82269 | 7.1 |
ढांचागत कारक
पर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक पिछड़ेपन के कारणों में से एक है- सड़क मार्ग जलमार्ग, ऊर्जा जैसे बुनियादी सुविधाओं आदि की बुरी स्थिति और शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे सामाजिक बुनियादी संरचना ' क्षेत्र के मानव विकास और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में राष्ट्रीय सड़क का लगभग 6% और राष्ट्रीय राजमार्गों लगभग 13 %है। हालांकि. खराब रखरखाव के कारण इन सड़कों की स्थिति अच्छी नहीं है। इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में कमी के प्रमुख संकेतक हैं: संकरी सड़के, बिजली की खराब स्थिति, पेयजल की कमी आदि।
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औद्योगिक विकास की दिशा में बाधाएं
आजादी के वक्त, असम एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र था, जहा ज्यादातर औपनिवेशिक पूंजीपतियों का वर्चस्व था। इस क्षेत्र में वृक्षारोपण और चाय का उत्पादन, कोयला और तेल के खननतेल रिफाइनरी, प्लाईवुड का निर्माण और अन्य वन संसाधन आधारित उत्पाद शामिल थे। आजादी के बाद भारत के विभाजन के कारण, असम के औद्योगिक क्षेत्र को एक गहरा झटका लगा क्योंकि उसके व्यापारिक मार्ग को देश के बाकी हिस्सों से काट दिया गया। इसकी वजह से भारत के अन्य हिस्सों के साथ आथक एकीकरण में बाधा आई और निवेश कि एक गंतव्य के रूप में इस क्षेत्र का के आकर्षण कम हुआ।
कृषि
कृषि यहां की जनजातीय आबादी की प्रमुख आजीविका होने के बावजूद कृषि विकास का पैटर्न राज्यों और फसलों के बीच असमान रहा है। चावल (खरीफ) इस क्षेत्र की प्रमुख फसल है। इस क्षेत्र में उगाए जाने वाले अन्य फसल (रबी) गेहूं, आलूगन्ना, दाल और तिलहन हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र देश के कुल अनाज उत्पादन का केवल 1.5% करता है और उत्पादन 70% आबादी को आजीविका में मदद देता । है। पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में कृषि विकास की गति देश के बाकी हिस्सों से धीमी रही है। हरित क्रांति देश के उत्तर-पश्चिमी भागों तक सीमित रही और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों को इसका लाभ नहीं मिला।
प्राकृतिक संसाधन आधार
मिट्टी, पानी, वनस्पति और हाइड्रोकार्बन जैसे प्राकृतिक संसाधनों का खजाना होने के बावजूद देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र अविकसित है। क्योंकि संसाधनों का अंधाधुंध रूप से दोहन किया जा रहा है और दुरूपयोग किया जा रहा है, जिसकी वजह से बहुत ही संपत्ति नष्ट हो रही है जो आमतौर पर पूर्वोत्तर के क्षेत्रों के विकास और संवृद्धि के लिए सबसे बड़ी क्षमता को ट्रिगर करने हेतु रेखांकित की जाती है। इसके अलावा क्षेत्र की जैव विविधता भी खतरे में है। कोयला खनन उर्वरक उद्योग, पेपर इंडस्ट्री, सीमेंट उद्योग और आतंकी गतिविधियों के कारण प्राकृतिक संसाधन प्रभावित हुए हैं।
परिवहन और संचार
पूर्वोत्तर क्षेत्र का परिदृश्य बिल्कुल भी प्रभावी नहीं है। विभिन्न भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक कारणों के कारण क्षेत्र में सड़क विकास बहुत धीमा रहा । पंचवर्षीय योजनाओं के दौरानपूर्वोत्तर को परिवहन क्षेत्र के विकास के लिए आवंटित धनराशि इसकी आवश्यकता के मुकाबले पर्याप्त नहीं थी। अपर्याप्त परिवहन सुविधा एक गंभीर समस्या रही है जिसने लंबे समय तक इस क्षेत्र के विकास को बाधित किया है। विभाजन के परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र ने उपभोक्ता वस्तुओं की अपेक्षाकृत ऊंची कीमतों और एक उच्च लागत वाली अर्थव्यवस्था के रूप में न केवल आर्थिक रूप से नुकसान सहा है बल्कि पूरे देश से अलगाव भी भोगा है।
आज के समय में पूर्वोत्तर क्षेत्र के समक्ष वैश्वीकरण भी एक बड़ी चुनौती है। भारत के ‘एक्ट ईस्ट' नीति के साथ, जो भारत के पश्चिम उन्मुख रुख को पूर्व की ओर मोड़ रहा था, पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए व्यापार व कारोबार में विदेशी उद्योगों व एमएनसी के साथ सफलतापूर्वक प्रतियोगिता करना काफी कठिन है।
क्षेत्र का सामाजिक विघटन भी चिंता का मामला है। एक समाज जिसका उत्पादक बल अपर्याप्त है, वह अपने सदस्यों को कमजोर करता है और इस तरह का समाज सांस्कृतिक पूंजी के 5 संबंध में निर्धन है और यदि ऐसे समाज का जीवन स्तर इसके उत्पादक बल के वहन किए जाने से अधिक है तो ऐसे समाज की आर्थिक स्थिति नैतिक अपकर्ष की स्थिति पैदा करती है।
शिक्षा प्रणाली यहां बरी तरह विफल रही है। समृद्ध परिवार अपने बच्चों को आगे की शिक्षा के लिए कुछ खास शहरों में भेजते हैं जिससे स्थानीय समाज को एक बड़ा आर्थिक झटका लगता है। समस्या का इस समाधान किए जाने की जरूरत है।
पूर्वोत्तर के विकास पर समग्र ध्यान देने के में भारत सरकार ने पूर्वोत्तर लिए, 1971 परिषद की स्थापना की। सभी 8 राज्य इसक सदस्य हैं। इसका मुख्यालय शिलौंग में स्थित है। यह भारतीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के तहत कार्य करता है। आरंभ में परिषद एक सलाहकार निकाय क रूप में स्थापितकी गई, जिसे 2002 से एक क्षेत्रीय याजना निकाय के रूप में मंजूरी दे दी गईअब ये ।उन बातों पर चर्चा करते हैं जिनमें पूर्वोत्तर राज्यों का हित शामिल हो और ऐसे मामलों पर कार्रवाई करने । ऐसा का निर्णय लेते हैं पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक और सामाजिक नियोजन का ख्याल रखने तथा तरराज्यीय विवादों की स्थिति में मध्यस्थता प्रदान करने के लिए किया गया।
हाल ही में दिसंबर, 2017 में वर्तमान केद्र सरकार द्वारा उठाए गए विकास संबंधी पहलों के संबंध में, केद्र ने पूर्वोत्तर विशेष बुनियादी ढांचा विकास योजना को अनुमोदन दिया है जो दो क्षेत्रों- एक, जल आपूर्ति, विद्युतकनेक्टिविटी और पर्यटन को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं से संबंधित भौतिक आधारभूत संरचना है, दूसरी, शिक्षा व स्वास्थ्य संबंधी सामाजिक क्षेत्र की परियोजनाएं हैं- में बुनियादी ढांचे के निर्माण म अंतराल को भर देगा। इस योजना की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह एनएलसीपीआर, जहां 10% योगदान राज्य सरकार से आना था, के मुकाबले 100% केंद्रीय रूप से वित्त पोषित योजना है। भारत सरकार इस योजना के तहत अगले तीन वर्षों में पूर्वोत्तर राज्यों को 5300 करोड़ रूपये प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त ट्यूरिअल हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट मिजोरम में सफलतापूर्वक आरंभ किया जाने वाला पहला प्रमुख केद्रीय परियोजना है। यह प्रति वर्ष 251 मिलियन विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करगा। और राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा। इसी के साथ, सिक्किम और त्रिपुरा के बाद एनआईआर में मिजोरम तीसरा विद्युत अधिशेष राज्य बन गया है। तथ्य यह है कि वित्तीय बाधाओं के बावजूद पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं का शेयरिंग पैटर्न 90-10 बना हुआ है, जो खुद पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर वर्तमान सरकार की चिंता को दर्शाता है। इसके अलावा पिछले तीन वर्षों के प, दौरान 32000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ से राष्ट्रीय राजमार्ग के 3800 किमी को मंजूरी दी गई है जिनमें से लगभग 1200 किलोमीटर इन सड़क का निर्माण किया जा चुका है।
रेल नक्शे पर पूर्वोत्तर के सभी राज्य की राजधानियों को लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार इन पूर्वोत्तर में विशेष गतिशील सड़क विकास , कार्यक्रम के तहत 60,000 करोड़ और क्षेत्र में उच्चमार्गों और सड़कों के नेटवर्क बनाने क हेतु अगले 2 से 3 वर्षों में भारतमाला के व तहत 30,000 करोड़ का अतिरिक्त निवेश एं करेगी। ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को सक्रियता से न अपनाते हुए किए गए कुछ प्रमुख पहलों में न्य कलदन मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, झां आरआईएच-दीम रोड प्रोजेक्ट और बॉर्डर के हाट्स शामिल हैं। केंद्र सरकार ने पर्यावरण त पर्यटन और साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने त के लिए पिछले दो वर्षों में मिजोरम के लिए 2 रु, 194 करोड़ की दो पर्यटन परियोजनाओं को मंजूरी दी है जिनमें इन परियोजनाओं के में कार्यान्वयन के लिए रु. 115 करोड़ रुपये 7 पहले ही सवितरित किए जा चुके हैं।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बांस पूर्वोत्तर क्षेत्र के लाखों लोगों की आजीविका का साधन है, भारत सरकार ने हाल ही में अपने प्रतिबंधात्मक विनियामक शासन को हटा दिया है। अब बांस उत्पादों के उत्पादन, परिवहन और बिक्री के लिए किसी भी परमिट की कोई आवश्यकता नहीं होगी। इससे लाखों किसानों को फायदा होगा और 2022 तक किसानों की आय को करने के प्रयासों में मदद मिलेगी।
भावी रूप रेखा
क्षेत्र के व्यापक विकास के लिए एक छह चरणीय प्रस्तावित की गई है :
- समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर वाली योजना के माध्यम से स्व - शासन और भागीदारी विकास को अधिकतम करते हुए लोगों की सशक्त बनाना।
- ग्रामीण कृषीतर रोजगार के ज़रिए पशुपालनबागवानी, फूलों की खेती, मत्स्य पालन जैसी कृषि व संबद्ध गतिविधियों में उत्पादकता बढ़ाने व आजीविका विकल्पों के सृजन के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में विकास संभावनाओं का सृजन।
- तुलनात्मक लाभ वाले क्षेत्र में कृषि-प्रसंस्करण, जल विद्युत उत्पादन जैसे क्षेत्रों का विकास करना।
- सरकार व बाहर की संस्थाओं के लिए क्षमता का निर्माण व लोगों के कौशल व दक्षताओं का संवर्द्धन।
- आधारभूत संरचना के लिए खास तौर पर निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एक उपयुक्त निवेश वातावरण बनाना।
- इन उद्देश्यों को साकार करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र के संसाधनों का। उपयोग करना। 03 फरवरी 2018 को गुवाहाटी में संपन्न ग्लोबल इन्वेस्टर्स सम्मिट का नवीनतम कार्यक्रम स्वयं पूर्वोत्तर क्षेत्र में समग्र समद्धि लाने दिशा में एनडीए के की सरकार ईमानदार दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है। कार्यक्रम ने निस्सन्देह विनिर्माणसेवाएं विद्युतकृषि और खाद्य प्रसंस्करण, आईटी. परिवहन, पेट्रोकेमिकल्स, फार्मास्यूटिकल्स टेक्सटाइल और हस्तशिल्प और पर्यटन सहित क्षेत्रों में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में राज्यों की निवेश संभावना को प्रदर्शित किया।
- निष्कर्षत: नवाचार, पहल, विचार और कार्यान्वयन, इन चारों को एक साथ काम करने की जरूरत है। बेहतर प्रशासन पर जोर देते हुए समावेशी विकास के माध्यम से समावेशी संवृद्धि लाने और मूलभूत आवश्यकताओं व सेवाओं के कार्यान्वयन हेतु स्थानीय समुदायों के समर्थित होने को सुनिश्चित करने की जरूरत है। इसके लिए, सभी हितधारकों को पूर्वोत्तर के राज्यों के समग्र विकास के लिए एक सर्वव्यापी यथार्थवादी योजना तैयार करने की आवश्यकता है।
UPSC सामान्य अध्ययन प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा (Combo) Study Kit 2018
Courtesy: Yojana