(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर के विकास के लिए निति फोरमा [April-2018]


(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर के विकास के लिए निति फोरमा [April-2018]


पूर्वोत्तर के विकास के लिए निति फोरम

सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए पूर्वोत्तर के लिए नीति फोरम की घोषणा की है। फोरम की सह-अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) करेंगे। फोरम का सचिवालय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय में होगा। फोरम विकास कार्यों में आने वाली अड़चनों की पहचान करेगा और पूर्वोत्तर क्षेत्र में तेज एवं सतत विकास के लिए आवश्यक कदमों की सिफारिश करेगा। वह पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास स्थिति का जायजा भी लेगा।
फोरम के सदस्यों में सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालयरेल मंत्रालय, बिजली मंत्रालय, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय , नवीन एवं नवीकरणीय का ऊर्जा मंत्रालयस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा पर्यावरण, वन एवं जलवाय परिवर्तन मंत्रालय के सचिव शामिल होंगे। इनके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों असम, सिक्किमनगालैंडमेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के मुख्य सचिव भी फोरम के सदस्य होंगे। पूर्वोत्तर परिषदशिलांग के सचिव फोरम में सदस्य सचिव होंगे। फोरम में गृहमंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्वोत्तर) सहित विभिन्न क्षेत्रों के कई विशेषज्ञों को भी सदस्य बनाया जाएगा। .

सड़क

किसी भी क्षेत्र के विकास का आइना सड़क होती हैं। मतलब, सड़क देखकर आप अनुमान लगा सकते हैं कि क्षेत्र में विकास की स्थिति क्या है? यही वजह है कि केद्रीय पूर्वोत्तर विकास मंत्रालय ने क्षेत्र आधारित सड़क विकास योजना पूर्वोत्तर सड़क विकास योजना' (एनईआरएसडीएस) बनाई। जिसका मकसद ऐसी सड़कों के रखरखाव, निर्माण और उन्नयन करना है। जो दो राज्यों के बीच सड़कों को जोड़ने वाली होने के कारण उपेक्षित रह गई। बिना स्वामित्व वाली रहीं और उन्हें अनाथ सड़के' कहा जाने लगा।
पूर्वोत्तर परिषद ने राज्यों में 10 हजार 500 किलोमीटर सड़क बनाने का निर्णय लिया है। इसमें सड़कों के साथ-साथ जगह-जगह पुल भा बनाए जाएंगे। राष्ट्रीय राजमार्ग एवं आधारभूत संरचना विकास निगम डोईमुख से हरमूट, दूरा से मनकाचार, वोखा-मेरापानी-गोलाघाट में लगभग 85 किलोमीटर सड़क परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इन पर लगभग 213.97 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।
अरुणाचल प्रदेश वैसे तो देश का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन इस राज्य में सड़कों की संख्या बहुत कम है। इसलिए केद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय द्वारा ट्रांस अरुणाचल राजमार्ग परियोजना पर काम कर रहा है। इसके लिए केद्रीय मंत्रालय द्वारा विशेष अभियान चलाकर | 2319 किलोमीटर सड़के बनाई जाएंगी इसके अलावा अरुणाचल प्रंटियर हाइवे एवं ईस्ट वेस्ट कोरिडोर बनाने की भी योजना है।

एयरपोर्ट

पूर्वोत्तर परिषद (जिसमें पूर्वोत्तर के सभी आठ राज्यों के गर्वनर और मुख्यमंत्री सदस्य हैं) ने इन राज्यों में 12 ऑपरेशन एयरपोर्ट को अपग्रेड करने का निर्णय लिया है। जबकि सिक्किम में एक नया एयरपोर्ट बनाने की योजना है, जिस पर 300 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। यह एयरपोर्ट देश में पांच सबसे ऊंचे एयरपोर्ट में से एक होगा। जबकि गंगटोक में बना एयरपोर्ट अगले साल शुरू हो जाएगा। अगले वित्त वर्ष में तेजू एयरपोर्ट भी बन कर तैयार हो जाएगा, जिसमें नजदीकी जिले दिबांग वैली, अंजवा पूर्वोत्तर भारत में आधारभूत संरचना को विकसित करने के पीछे सरकार की मंशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां एशिया का सबसे बड़ा पुल बनाया गया है, जो दो राज्यों अरुणाचल प्रदेश और असम को आपस में जोड़ता है। ढोला - साहिया पुल का निर्माण वर्ष 2011 में शुरू हुआ था और मई 2017 में इसका निर्माण पूरा हुआ। नमसाई और लोअर डिबांग वैली लाभान्वित य होंगे।

रेलवे

पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण पूर्वोत्तर वे राज्यों में रेल सेवाएं उपलब्ध कराना आसान से काम नहीं रहा है। यही वजह है कि रेल मंत्रालय द्वारा इस साल लगभग 48 हजार करोड़ का निवेश किया जा रहा है। इस 5 राशि से नई रेल लाइनें बिछाई जा रही हैं। ने इसके अलावा जहां रेलवे की एक लाइन न है, वहां लाइनें डबल की जा रही हैं। क्षेत्र - में रेल लाइनों के विद्युतीकरण पर खास में फोकस किया गया है। इससे रेल सेवाओं में सुधार होने की उम्मीद है। मणिपुर के इंफाल में 2020 तक रेल ट्रेक बनकर तैयार हो जाएंगे। मेघालय में रेल लाइनों के लिए जमीन के अधिग्रहण की तैयारी है। कोहिमा में भी रेलवे ने लगभग 17 किलोमीटर जमीन का अधिग्रहण किया है। पूर्वोत्तर रेलवे जोन द्वारा 51 किलोमीटर लंबी रेल लिंक बनाई । जा रही है, जो अगले साल से चालू हो जाएगी। इसमें 23 सुरंग, 36 बड़े पुल और 147 छोटे पुल शामिल हैं। रेलवे 2020 तक ऐसी रेल लाइन बिछाने की तैयारी कर रहा है, जो सभी आठ राज्यों की राजधानी को आपस में लिंक करेगी। इसे एक बड़ी योजना माना जा रहा है।

बिजली

पूर्वोत्तर क्षेत्र में लगभग 2350 मेगावाट बिजली की जरूरत है। रिपोर्ट बताती है कि इन राज्यों में औसतन 1 फीसदी बिजली कटौती हो रही है। राज्य में लगभग 930 मेगावाट बिजली हाइड्रो और 1770 मेगावाट बिजली थर्मल की क्षमता है। इन परियोजनाओं को अपनी क्षमता के मुताबिक उत्पादन नहीं करने के कारण राज्यों में बिजली कटौती हो रही है। केद्र द्वारा बिजली आपूर्ति में सुधार के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं, जिनमें राज्य का भी सहयोग लिया जा रहा है। जैसे केंद्र सरकार ने सौभाग्य योजना के तहत इन राज्यों में सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।

पूर्वोत्तर परिषद ने अब तक 7 हाइड्रो और थर्मल प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 694.50 मेगावाट है। जिससे इन राज्यों को बिजली मिलती है। अब पूर्वोत्तर परिषद भी ऊर्जा क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है।

पहाड़ी राज्यों में बिजली वितरण के लिए लाइनें बिछाना बेहद दुरुह काम माना जाता है। इसे समझते हुए केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में ट्रांसमिशन लाइन बिछाने क लिए 10 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया है।

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केद्र सरकार ने में रेल, वायु और सड़क परिवहन के साथ-साथ जल परिवहन को भी बहुत महत्व दिया है। केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजमार्ग की तर्ज पर देश की प्रमुख नदियों पर राष्ट्रीय जल मार्ग का निर्माण कर रही है। इसके लिए भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया। दो राष्ट्रीय जल मार्ग पर काम शुरू हो चुका है। राष्ट्रीय जलमार्ग-दो ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहा है। दिसंबर 2017 में असम में सीमेंट कार्यो परिवहन का उद्घाटन किया गया।

राष्ट्रीय जलमार्ग-2 के माध्यम से पण्डु से दुबरी तक कार्गो परिवहन से प्रतिचक्र सड़क परिवहन के 150, 000 टन किलोमीटर की और माल की लागत कम करने में 300 किलोमीटर सड़क यात्रा की बचत होगी। यह ध्यान देने योग्य है कि एक हॉर्स पावर द्वारा सडक से 150 किलोग्राम और रेल से के 500 किलोग्राम ढुलाई हो सकती है जबकि जल मार्ग से4000 किलोग्राम माल ढोया जा सकता है। 1 लीटर ईधन से सड़क से 24 टन प्रति किलोमीटर, रेल से 85 टन किलोमीटर तथा जलमार्ग से 105 टन प्रति
किलोमाटर माल ढोया जा सकता है। - अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण पंड से हुबरी/हत्ससिंमीरी तक जलमार्ग परिवहन शुल्क के रूप में केवल 318 रुपये प्रति टन के हिसाब से शुल्क लेगा। इससे उद्यमियों और माल परिवहन ऑपरेटर को प्रोत्साहन मिलेगा और वे लागत प्रभावी तथा पर्यावरण के अनुकूल परिवहन साधन को अपनाएंगे। इससे सडका पर लगने वाला जाम भी कम हो जाएगा। प्राधिकरण बड़ी सीमेंट फर्मों जैसे डालमिया, स्टार और अमृत के साथ निरंतर संपर्क में है और वे जलमार्ग से कार्यों परिवहन में रुचि ले रहे हैं। प्रयास किया जा रहा है कि अन्य का मालिक भी जलमार्ग से माल परिवहन को अपनाएं।

पूर्वोत्तर परिषद ने अब तक 7 हाइड्रो और थर्मल प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 694. 50 मेगावाट है। जिससे इन राज्यों को बिजली मिलती है। अब पूर्वोत्तर परिषद भी ऊर्जा क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। पहाड़ी राज्यों में बिजली वितरण के लिए लाइनें बिछाना बेहद दुरुह काम माना जाता है। इसे समझते हुए केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए 10 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया है। दुलाई की लागत में काफी कमी आएगी और अधिक व्यवसाय एवं रोजगार अवसर उपलब्ध होंगे ।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में अंतर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए पिछले तीन वर्षों में में अधिसूचित 106 नए राष्ट्रीय जलमार्गों में से 19 जलमार्ग पूर्वोतर क्षेत्र में हैं। इनमें से कुछ राष्ट्रीय जलमार्ग -16 (नदी बराक) राष्ट्रीय जलमार्ग-95 (नदी सुबनसिरी) राष्ट्रीय जलमार्ग -39 (नदी गणोल) राष्ट्रीय जलमार्ग -93 (नदी सिमसंग राष्ट्रीय जलमार्ग -101 (नदी तिजू और जुग्की), राष्ट्रीय जलमार्ग 31 (धनसिरी) राष्ट्रीय जलमार्ग -62 (नदी लोहित), राष्ट्रीय जलमार्ग -106 (नदी उमगोट) राष्ट्रीय जलमार्ग-18 (बेकी नदी) प्रमुख हैं।

एशिया का सबसे बड़ा पुल

पूर्वोत्तर भारत में आधारभूत संरचना को विकसित करने के पीछे सरकार की मशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां एशिया का सबसे बड़ा पुल बनाया गया है, जो दो राज्यों अरुणाचल प्रदेश आर असम को आपस में जोड़ता है। ढोला साढिया पुल का निर्माण वर्ष 2011 में शुरू हुआ था और मई 2017 में इसका निर्माण पूरा हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इसका उद्घाटन कियालोहित नदी पर बने इस पुल की लंबाई 9.15 किलोमीटर है। यह पुल ऐसे स्थान पर बना है, जहां 6 नदियां मिलती हैं, जो ब्रह्मपुत्र में मिल जाती हैं। देश की सुरक्षा की दृष्टि से भी यह पुल बेहद महत्व रखता है। दावा किया गया है। कि इस पुल से 60 टन वजन का टैंक गुजर सकता है।

भारत संचार नेट

किसी भी क्षेत्र के संपूर्ण विकास के लिए सूचना तंत्र का मजबूत होना भी बेहद जरूरी है। इसी के मद्देनजर सरकार ने देश के सभी ग्राम पंचायतों को 100 एमबीपीएस ब्रॉडबैंड कनेक्टीविटी प्रदान करने के लिए भारत नेट परियोजना तैयार की है। परियोजना के पहले चरण में भूमिगत ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाकर एक लाख ग्राम पंचायतों को जोड़ा जा रहा है। दूसरे चरण के अंतर्गत शेष 1.5 लाख ग्राम पंचायतों में भूमिगत फाइबरबिजली की तारों के ऊपर फाइबर, रेडियो और सेटलाइट मीडिया का इस्तेमाल करते हुए कनेक्टीविटी प्रदान की जाएगी।

पूर्वोत्तर राज्यों के लिए भी यह योजना बेहद महत्व रखती है। असम में भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा भारत नेट परियोजना के पहले चरण का काम किया जा रहा है, जबकि बाकी राज्यों में रेलटेल द्वारा यह काम किया जा रहा है। इस योजना के तहत अब तक असम में 133 , अरुणाचल में 82, नगालैंड में 62, मणिपुर में 508, मिजोरम में 45, त्रिपुरा में 79, मेघालय में 30 गांवों में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई जा चुकी है।

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Courtesy: Yojana