(GIST OF YOJANA) उद्यमिता विकास से कमजोर और वंचितों का सशक्तीकरण [August] -2018


(GIST OF YOJANA) उद्यमिता विकास से कमजोर और वंचितों का सशक्तीकरण [August] -2018


उद्यमिता विकास से कमजोर और वंचितों का सशक्तीकरण

एक विकासशील अर्थव्यवस्था को अपने कार्यक्रमों और अभियानों में समावेशी होने | की जरूरत होती है, ताकि समाज के सभी तबके को सशक्त बनाया जा सके। पिछले 7 दशकों में भारत ने हर वर्ग के लिए आर्थिक सशक्तीकरण के मौके मुहैया कराने के लिए रणनीतिक तौर पर दखल दिया है। इसके बावजूद समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान की खातिर कदम उठाने के लिए काफी गुंजाइश बची हुई है। इस वर्ग के पास सामाजिक और आर्थिक सीढ़ी पर आगे की तरफ बढ़ने के लिए सामाजिक पूंजी की कमी है। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग, दिव्यांग और महिलाओं को हमारे समाज में भेद-भाव की बीमारी की वजह से कई मौकों पर अलगाव का सामना करना पड़ता है। हमारी आबादी के दिव्यांग तबके को भी कभी-कभी रहन-सहन में खराब स्थितियों का सामना करना पड़ता है। अलग-अलग सामाजिक समूहों के बीच विषमता जैसी स्थितियां लगातार बढ़ रही हैं।

अगर इस आबादी का कमजोर तबका लिंग और दिव्यांगता के लिहाज से टुकड़ों में बांटा जाता है, तो इस तरह के आंकड़े परेशान करने वाले हैं। उदारीकरण और आर्थिक प्रगति के कई साल बीत जाने के बाद भी संसाधनों और अवसरों की एक समान उपलब्धता और समावेशी विकास का लक्ष्य अब तक पूरा नहीं किया जा सका है।

अनुकूल सामाजिक माहौल

नीति आयोग के लिए 'प्रथम' की तरफ से किए गए अध्ययन में शामिल होने वाले अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण इलाको के तक़रीबन 70 फीसदी प्रतिनिधियों ने अपने शहरी समकक्षों के उलट ‘स्व-रोजगार' और उद्यमी बनने की बात कही (द इंडियन एक्सप्रेस 2016)। अध्ययन के नतीजे इस तथ्य की तसदीक करते हैं कि देश के युवा (खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में) गरीबी और बेरोजगारी की चुनौती से निपटने की खातिर उद्यमिता के लिए तैयार हो रहे हैं। भारत उत्साह और साहस से लैस युवाओं का देश है। अगर हम युवाओं के जनसांख्यिकी स्वरूप को देखें, तो इनमें से ज्यादातर ग्रामीण इलाकों के वंचित समुदायों से आते हैं, जो संसाधनों का अभाव वाले माहौल में रहते हैं। हालांकि, इन लोगों के अंदर उद्यमिता के लक्षण हैं, जिन्हें सफल उद्यमी बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है। नए उत्पाद का आविष्कार, नए समाधान और महत्वपूर्ण खोज के जरिए जटिल सामाजिक समस्याओं को सुलझाने जैसी बातें इन युवाओं को आकर्षित करती हैं। वे समाज में बदलाव का प्रतिनिधि बनने की हसरत रखते हैं। इसके तहत उन्हें नए व्यापार के तौर पर अपने सोच को आगे बढ़ाने के लिए भरोसेमंद समर्थक प्रक्रिया के साथ सही सलाह की जरूरत होती है। ताकि वे अपनी सोच को सफल व्यापार में तब्दील कर सके।

‘द ग्लोबल आंत्रप्रेन्योरिशिप मॉनिटर' रिपोर्ट 2016-17 में बताया गया है कि भारत में तकरीबन 44

फीसदी वयस्क को लगता है। कि व्यापार शुरू करने के लिए उनके पास अच्छे मौके हैं, जबकि 44 फीसदी का मानना है कि उनके पास व्यापार शुरू करने की क्षमता है। इसी तरह, एम्वे उद्यमिता इंडिया रिपोर्ट 2015 में बताया गया कि सर्वे में शामिल 30 फीसदी प्रतिनिधियों ने अपना व्यापार शुरू करने की योजना का जिक्र किया। इस अध्ययन में 21 राज्यों के अलग-अलग आय समूहों, अलग-अलग शैक्षणिक पृष्ठभूमि के पुरुष-महिला दोनों को शामिल किया गया। यहां जिन दो अध्ययनों का जिक्र किया गया है, उनके नतीजों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उद्यमिता का भविष्य बेहतर है, क्योंकि समाज में इसको लेकर धारणा तेजी से बदली है। यह देश में उद्यमिता के विकास का शुभ संकेत है।

चुनौतियां और अवसर

हाशिए पर मौजूद लोगों में शिक्षा और कौशल की कमी उनकी राह में बड़ी बाधा | है। इसके परिणामस्वरूप उनके पास काम | और जिम्मेदारियों को अंजाम देने को लेकर आत्मविश्वास की कमी होती है। खास तौर | पर महिलाओं में इस तरह के आत्मविश्वास | की कमी को देखा जा सकता है। उद्यमिता को लेकर प्रेरणा और प्रशिक्षण के साथ कौशल विकास के जरिए इन कमियों को दूर किया जा सकता है। युवाओं के बीच आत्मविश्वास पैदा करने और उनका उत्साह बढ़ाने में कार्यशाला और सेमिनार सेशन जांचा-परखा उपाय साबित हुए हैं।
इस दिशा में रणनीतिक नियोजन के जरिए समाज के वंचित तबकों को स्वरोजगार से जुड़े अवसरों के लिए तैयार किया जा सकता है। रणनीतिक नियोजन के तहत उद्यमिता से जुड़े प्रशिक्षण, सलाह-निर्देशन पर फोकस किया जाना चाहिए।

वित्तीय साधनों की कमी, जोखिम का डर और संबंधित काम के बारे में जानकारी का अभाव जैसी वजहें लोगों को अपना उद्यम खड़ा करने से रोकती हैं। जमीनी स्तर पर हुए अध्ययनों की मानें तो कच्चे माल की आपूर्ति में बाधा, पर्याप्त पूंजी और बाजार ढांचा की कमी आदि ग्रामीण उद्यमी के लिए प्रमुख बाधा की तरह हैं। साथ ही, शिक्षा की कमी के कारण भी ग्रामीण उद्यमियों को विभिन्न सुविधाओं के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है और उनके पास काबिलियत का अभाव होता है (सक्सेना, 2012, पेज 24)। लिहाजा, वे अक्सर खुद को स्वरोजगार के काम में प्रवेश करने से दूर रखते हैं और दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते रहते हैं।

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स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम

स्टार्ट-अप इंडिया एक्शन प्लान के तहत | भारत सरकार ने फंड ऑफ फंड्स फॉर स्टार्ट-अप (एफएफएस) के तहत स्टार्ट-अप के लिए 10,000 करोड़ रुपए का फंड बनाया था। इस फंड का मकसद अगले 4 साल में इन कंपनियों को मदद मुहैया करना था। नए उद्यम के लिए फंड जीवन-रेखा की तरह होते हैं। इस रकम का भुगतान भारत लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के जरिए होता है। रिपोर्ट के मुताबिक अब तक एफएफएस के लिए सिडबी को 600 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। सिडबी द्वारा जहां 605.7 करोड़ रुपए का वादा किया गया है, वहीं 17 वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) को 90.62 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। इस तरह का निवेश कुल 337.02 करोड़ रहा है और इसे तकरीबन 75 स्टार्ट-अप तक पहुंचाने के लिए व्यवस्था बनाई गई है। इसके अलावा रिपोर्ट | में किए गए दावों के मुताबिक, आयकर | अधिनियम की धारा 80 आईएसी के तहत | कुल 74 स्टार्ट-अप को टैक्स में छूट दी | गई है। बेशक, इन उपायों से स्टार्ट-अप की संभावनाओं में बढ़ोतरी और देशभर में | उद्यमियों में जान फूके जाने की उम्मीद है, लेकिन स्टार्ट-अप इंडिया अभियान युवाओं और उद्यमिता की हसरत रखने वालों के लिहाज से अपनी छाप छोड़ने के मामले में अब तक रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। पिछले दो साल में इसके तहत वास्तविक एफएफएस की काफी कम रकम का ही इस्तेमाल हो पाया है। उद्यमी बनने की आकांक्षा रखने वालों को सूचना और सीखने से जुड़े संसाधन मुहैया कराने के लिए वर्चुअल स्टार्ट-अप इंडिया हब तैयार किया गया था। इस पोर्टल के जरिए अब तक 75453 सवालों का | निपटारा किए जाने का दावा किया गया है और स्टार्ट-अप इंडिया हब पर 15,000 रजिस्टर्ड यूजर हैं। स्टार्ट-अप इंडिया अभियान के तहत नए उद्यमियों के लिए बनाए गए लर्निग और डिवेलपमेंट मॉड्यूल का अब तक 1,89,000 लोग इस्तेमाल कर चुके हैं। बेशक यह पहल तारीफ के योग्य है, लेकिन | भारत जैसे देश में इसका असर काफी कम है। यहां यह भी बताना प्रासंगिक हो सकता है। कि संबंधित सरकारी विभाग ने विभिन्न उपायों के जरिए उद्यमिता के लिए अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में उपयुक्त कदम उठाए हैं।

स्टैंड - अप इंडिया सम्बन्धी पहल

स्टैंड-अप इंडिया पहल के तहत तकरीबन 1.25 लाख बैंक शाखाओं को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों को फंड मुहैया कराने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। इसके तहत देशभर में 2.5 लाख नए उद्यमी बनाने की बात है। इस पहल के जरिए अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के एक शख्स और एक महिला को स्टार्ट-अप इंडिया स्कीम के तहत हर बैंक शाखा द्वारा 10 लाख से 100 लाख तक का ऋण देने का मकसद है, ताकि उनके बीच उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा सके। इस योजना से मौजूदा वित्तीय इंफ्रास्ट्रक्चर और क्रेडिट गारंटी स्कीम के निचले पायदान पर खड़े लोगों तक पहुंचने में भी मदद मिलेगी। एक अनुमान के मुताबिक, तकरीबन 2.5 लाभार्थियों को इससे फायदा होगा। दरअसल, समाज में जमीनी स्तर पर आर्थिक सशक्तीकरण और रोजगार सृजन के लिए उद्यमिता को बढ़ावा देने के मकसद से यह स्कीम तैयार की गई थी। इस स्कीम के तहत अब तक 60,795 आवेदन प्राप्त हो चुके हैं और 13217 करोड़ रुपए को मंजूरी दी जा सकती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 103 बैंकों की । 33 236 शाखाएं स्टैंड अप इंडिया वेब पोर्टल पर सक्रिय हैं और कर्ज के लिए 10084 आवेदन सौपे गए हैं, जिनमें कुल 290s ऋण की मंजूरी दी गई है।

मुद्रा योजना (प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, पीएमएमवाई)

माइक्रो यूनिट्स डिवेलपमेंट एड री फाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) स्टैंड-अप इंडिया पहल के तहत कार्यक्रम से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने की खातिर वित्तीय इकाई है। मुद्रा वित्तीय संस्थानों को फंड मुहैया कराता है। जो देश में छोटी इकाइयों को छोटे स्तर पर कर्ज देते हैं। बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी), एमएफआई आदि द्वारा दिए गए छोटे ऋण में गड़बड़ी की स्थिति में भुगतान के मकसद से माइक्रो इकाइयों लिए क्रेडिट गारंटी फंड भी तैयार किया गया। इन छोटे ऋण की भी श्रेणिया तैयार की गई हैं, जिन्हें 'शिशु', 'किशोर' और 'तरुण' नाम दिया गया है। यह श्रेणी फर्म के विकास की स्थिति और उसकी फंडिंग जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। पीएमएमवाई योजना के तहत 12 करोड़ लाभार्थियों को 6 लाख करोड़ रुपए दिए गए हैं और कुल 12 करोड़ लाभार्थियों में से 28 फीसदी (यानी 3.25 करोड़) पहली बार उद्यमी बने हैं। साथ ही, इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है। कि तकरीबन कर्ज लेने के मामले में 74 फीसदी (तकरीबन 9 करोड़) महिलाएं हैं। और 55 फीसदी अनुसूचित जाति/जनजाति और पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं। तीन साल में इस योजना के तहत समाज के सबसे निचले पायदान पर मौजूद लोगों को सशक्त बनाने की कोशिश की गई है। हालांकि, इस मामले में अभी काफी कुछ हासिल किया जाना बाकी है। लगातार निगरानी बनाए रखने का तंत्र और उद्यमिता के लिए सलाह और निर्देशन से मुद्रा के सहयोग वाले उद्यमों के लिए गुंजाइश बढ़ेगी और अगर ये उद्यम वृद्धि के रास्ते पर टिके रहे, तो सरकार ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा कर सकती है। | स्टार्ट-अप ग्रामीण उद्यमिता कार्यक्रम (एसवीईपी) का भी एलान 2014-15 के बजट सत्र के दौरान किया गया था, जिसका मकसद सरकार प्रायोजित वित्तीय सहयोग की मदद से स्व-रोजगार मौकों को हासिल करने के लिए ग्रामीण युवाओं को प्रोत्साहित करना था। एसवीईपी को मुख्य तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मदद देने और माइक्रो-क्रेडिट ऋण और अन्य सहयोग के जरिए वित्तीय समावेशन का लक्ष्य हासिल करने के मकसद से तैयार किया गया है। इसके लिए भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की उप-योजना के तहत काम करने का प्रस्ताव पेश किया गय था। इस आइडिया पर अमल के मौजूदा चरण (2015-2019) में एसवीईपी ने 24 राज्यों के 125 ब्लॉकों से जुड़े तकरीबन 1.82 लाख ग्रामीण उद्यमों के सृजन और उसे मजबूत करने की दिशा में अपना योगदान देना शुरू कर दिया है। इससे तकरीबन 3.78 लाख लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। इस पहल के शुरू होने से ग्रामीण उद्यमिता के परिदृश्य को लेकर जागरूकता और सक्रियता बढ़ गई है। ग्रामीण उद्यमों को टिकाऊ बनाने के मकसद से हर क्षेत्र को उद्यमिता से जोड़ने के लिए इस योजना के अमल की प्रक्रिया और बेहतर बनाई जा सकती है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर यह मानना उचित होगा | कि देश में सामाजिक रूप से पिछड़े और | हाशिए पर मौजूद लोगों के बीच (खास | तौर पर वैसे लोग जो भेदभाव के शिकार हैं, उद्यमिता संबंधी क्षमताओं को बढ़ावा देकर सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर । बहुआयामी प्रगति हासिल की जा सकती | है। इसे भेदभाव की सामाजिक बीमारी से निपटने के लिए सकारात्मक कारगर हथियार | के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। उद्यमिता से जुड़े मामलों की नियमित तौर पर | देखरेख, समय-समय पर परामर्श व निर्देश और माइक्रो फाइनेंस और स्वयं सहायता । समूहों की संभावनाओं का इस्तेमाल कर छोटे | उद्यमों के विकास के लिए एकीकृत नीति संबंधी रणनीति के जरिए सामाजिक रूप | से पिछड़े समुदायों को प्रतिस्पर्धी उद्यमी में बदला जा सकता है, जो हमारे देश की आर्थिक आकांक्षाओं को रफ्तार दे सकते हैं। इसके अलावा, उद्यमिता संबंधी प्रेरणा के साथ आजीविका से जुड़े कौशल और रोजगार प्रशिक्षण पर काम करने के दो मकसद हैं। | एक तरफ रोजगार पैदा करने का लक्ष्य है। तो दूसरी तरफ बिना इस्तेमाल के मौजूद संसाधनों और अवसरों का दोहन करने की भी बात है।

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Courtesy: Yojana