(GIST OF YOJANA) दिव्यांगजनों के सामाजिक सशक्तीकरण का सूत्र [August] -2018


(GIST OF YOJANA) दिव्यांगजनों के सामाजिक सशक्तीकरण का सूत्र [August] -2018


दिव्यांगजनों के सामाजिक सशक्तीकरण का सूत्र

दिव्यांग भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूहों में से एक हैं। उन्हें लंबे समय से उपेक्षा, अभाव, अलगाव और बहिष्कार झेलना पड़ा है। भारत में दिव्यांग लोग अब भी उत्पीडित और हाशिए पर हैं और उन्हें बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन और पूर्ण नागरिकता से जुड़े अवसर भी नहीं मुहैया कराए गए। दरअसल, उनको लेकर समाज का दकियानूसी और पूर्वग्रह भरा रवैया रहा है, जिसके तहत दिव्यांगों को हीन, अक्षम, अपर्याप्त और परिवारिक संसाधनों और समाज पर बोझ माना जाता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में दिव्यांगों की कुल संख्या 2 करोड़ 68 लाख 14 हजार हैं, जो कुल आबादी का 2.21 फीसदी हैं। दिव्यांगों में सबसे ज्यादा संख्या चलने-फिरने में लाचार लोगों (54.37 लाख) की है। इसके बाद सुनने में अक्षम (50.73 लाख) और नेत्रहीन लोगों (50.33 लाख) की संख्या है।

दिव्यांगों के सामाजिक सशक्तीकरण के लिए सरकारी पहल

दिव्यांगों के कल्याण और सशक्तीकरण के मकसद के तहत नीतिगत मुद्दों पर फोकस और गतिविधियों पर जोर देने की खातिर 12 मई 2012 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से हटाकर अलग दिव्यांग सशक्तीकरण विभाग बनाया गया। इस विभाग का मुख्य मकसद सामाजिक सशक्तिरण समेत विभिन्न पहलुओं पर फिर से काम करना है।

दिव्यांगों को उपकरण खरीद फिटिंग के लिए सहायता

इस योजना के तहत पिछले तीन साल में (2014-2017) के दौरान मदद के तौर पर 43098 करोड़ रुपए के ग्राट का इस्तेमाल किया गया। इससे देशभर के 5,625 कैपों के जरिये दिव्यांग श्रेणी के 7.03 लाख लोगों को फायदा हुआ। पहली बार अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस, 2014 के मौके पर एडीआईपी योजना के तहत कर्णावर्त तंत्रिका प्रत्यारोपण (कॉक्लीयर इंप्लांट) को शुरू किया गया और इसे देशभर के 172 अस्पतालों से जोड़ा गया। इस दौरान इस तरह की सर्जरी के तकरीबन 794 मामलों को अंजाम दिया गया (एडीआईपी के 667 और सीएसआर के तहत 127 मामलों को) और तमाम मामलों को ऑपरेशन के बाद पुनर्वास की प्रक्रिया में बढ़ाया जा रहा है। एडीआईपी योजना के तहत विभाग गंभीर अक्षमता के शिकार दिव्यागों को 37,000 रुपए की कीमत वाला मोटर से लैस ट्राईसाइकिल सब्सिडी के जरिये 25,000 रुपए में देता है। बाकी 12,000 रुपए का इंतजाम एमपी लैड/एमएलए फंड/ राज्य सरकार के सहयोग/खुद लाभार्थी) द्वारा किया जाता है। ऐसे में 3,639 लाभार्थियों को पिछले 3 साल में मोटरसाइकिल मिली। लिहाजा, ऐसी सहायता/उपकरणों से दिव्यांगों को ज्यादा स्वायत्तता और गतिशीलता हासिल करने में मदद मिलती है और इससे सामाजिक भागीदारी और समग्रता की राह बनती है।

मिशनरी अंदाज में तकनीक विकास परियोजनाएं

दिव्यांगों के लिए तकनीक के इस्तेमाल - के जरिये उपयुक्त और किफायती मदद और उपकरण मुहैया कराने, रोजगार के मौके बढ़ाने और समाज में उन्हें एकीकृत करने के मकसद से 1990-91 में इस योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना के तहत शोध और विकास से संबंधित उपयुक्त परियोजनाओं की पहचान की जाती है और मदद व उपकरण विकसित करने के लिए फंड मुहैया कराए जाते हैं। इस योजना | को आईआईटी, अन्य शैक्षणिक संस्थानों, शोध एजेंसियों और स्वैच्छिक संगठनों के जरिये लागू किया जाता है। इसके लिए। 100 फीसदी वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाती है। चार तकनीक सलाहकार समूह परियोजनाओं के चयन की निगरानी करते हैं और अलग-अलग चरणों में इसकी प्रगति का भी जायजा लिया जाता है। संबंधित तकनीकी सलाहकार समूह द्वारा सिफारिश की गई। सभी परियोजनाओं को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव की अगुवाई वाली उच्चस्तरीय कमेटी के सामने पेश किया जाता है।

दिव्यांगों के लिए माध्यमिक स्तर पर समावेशी शिक्षा (आईईडीएसएस)

इस योजना के तहत 14 साल या । उससे ऊपर के दिव्यांग बच्चों को सरकारी, । स्थानीय संस्था से जुड़े या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में नौवीं से बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई के लिए मदद मुहैया कराई जाती है। इस योजना के जरिये प्राथमिक स्कूलों से माध्यमिक स्कूलों में जाने वाले दिव्यांग बच्चों की पहचान की जाती है और उन्हें उनकी अक्षमता की खातिर मदद व उपकरण, पठन सामग्री, आने-जाने की सुविधा, छात्रावास की सुविधाएं, छात्रवृत्ति, किताबें, मददगार तकनीक | आदि उपलब्ध कराए जाते हैं। दिव्यांग छात्रों को उच्च शिक्षा पूरा करने के लिए भी कई तरह की छात्रवृत्ति मिलती है। इस तरह की समावेशी शिक्षा दिव्यांगों को बाकी सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाई का इंतजाम सुनिश्चित करती है और इस तरह से समावेशन का मार्ग प्रशस्त होता है।

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सुगम्य भारत अभियान

प्रधानमंत्री ने 3 दिसंबर 2015 को इस | अभियान की शुरुआत की थी। इसका मकसद मौजूदा इमारतों, परिवहन के साधनों, सूचना और संचार तकनीक के परितंत्र में दिव्यागों के लिए पूर्ण सुगम्यता उपलब्ध कराना था। यह अभियान दिव्यांगता के सामाजिक मॉडल के सिद्धातों पर आधारित है, जिसके तहत दिव्यांगता की वजह सामाजिक ढांचा है, न कि किसी शख्स की सीमाएं और दुर्बलताएं। | इस सिलसिले में जागरूकता फैलाने और बिल्डर व कार्यकर्ता समेत तमाम मुख्य संबंधित पक्षों को इसके प्रति संवेदशील बनाने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम सघन तरीके से काम कर रही है। इसको लेकर एक वेब पोर्टल भी बनाया गया है, जहां लोग किसी बिल्डिंग की प्रवेश संबंधी सुगमता के बारे में तस्वीरें अपलोड करने के साथ-साथ टिप्पणी | भी कर सकते हैं।

दिव्यांग कानून के अमल के लिए योजना (एसआईपीडीए)

यह व्यापक रेंज वाली योजना है, जिसके तहत कौशल विकास, बाधा रहित माहौल तैयार करने, कुछ संस्थानों को फील्ड में चलाने और इस कानून के अमल से संबंधित बाकी गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता | मुहैया कराई जाती है। मिसाल के तौर पर यह योजना दिव्यांग कानून की धारा 46 के तहत दिव्यांगों के लिए अहम सरकारी बिल्डिंग में बाधा-रहित माहौल मुहैया कराती है। इसके तहत रैंप के लिए प्रावधान, रेल में सुविधा, लिफ्ट, व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वालों के लिए शौचालय, स्पर्श योग्य फर्श की सुविधा आदि शामिल हैं।

दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना (डीडीआरएस)

इस योजना के तहत दिव्यांगों के पुनर्वास से जुड़ी परियोजनाओं के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराई जाती है। इसका मकसद 18 उप-घटकों के जरिये उन्हें शारीरिक, संवेदी, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कामकाज के अधिकतम स्तर तक पहुंचाने और उसे बनाए रखने में मदद करना है।

सूचना, संचार और तकनीक (आईसीटी)

किसी शहर में दिव्यांगों के अनुकूल सार्वजनिक सुविधाओं के बारे में सूचना मुहैया कराने के लिए मोबाइल एप लॉन्च किया जाएगा। मोबाइल संचार के जरिये भी दिव्यांगों को कई नई सुविधाएं मिलती हैं। इस क्षेत्र में लगातार नए उपकरणों को विकसित किया जा रहा है - मसलन कंप्यूटर के लिए आवाज पहचाने वाले प्रोग्राम। यह एटीएम, बैंक, मॉल, शौचालय आदि जगहों पर मौजूद होगा और इसमें इस्तेमाल करने वाले इस बात के लिए भी रेटिंग दे सकेंगे कि ये ठिकाने किस हद तक दिव्यागों के लिहाज से अनुकूल हैं।

सरकार नेत्रहीनों के लिए के लिए टीवी कार्यक्रमों को ज्यादा उपयोगी बनाने की खातिर सेट टॉप बॉक्स भी पेश करने की। तैयारी में है। फिलहाल उनके लिए संकेत भाषा के साथ एकमात्र समाचार बुलेटिन है। सरकार अगले पांच साल में 200 लोगों को संकेत भाषा (साइन लैंग्वेज) में प्रशिक्षित करेगी। इस तरह का भाषा का इस्तेमाल 25 फीसदी से भी ज्यादा कार्यक्रमों में किया जाएगा और इसकी शुरुआत दूरदर्शन से की जाएगी। इन कवायदों का मकसद टेलीविजन को दिव्यांगों के और अनुकूल बनाना है। सरकारी वेबसाइट पर मौजूद लिखित सामग्री को भी नेत्रहीनों के लिए स्क्रीन रीडर प्रोग्राम के जरिये स्पीच मोड में बदला जाएगा।

जागरूकता और प्रचार - प्रसार

इस योजना को 2014 को शुरू किया गया था, जिसका मकसद केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा दिव्यांगों के कल्याण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों का इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट फिल्म मीडिया के साथ-साथ मल्टी मीडिया के जरिये व्यापक प्रचार-प्रसार करना है। इस प्रचार-प्रसार के जरिये दिव्यांगों के सामाजिक समावेशन के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना, उनके कानूनी अधिकारों के बारे में सूचना देना और ऐसे लोगों की खास जरूरतों के प्रति नियोक्ताओं और बाकी ऐसे समूहों को | संवेदनशील बनाने की बात है। योजना के तहत दिव्यांगों के लिए हेल्पलाइन मुहैया कराना और उनके पुनर्वास के लिए कंटेंट तैयार करने का भी मामला शामिल है।

निष्कर्ष

दिव्यांग जनों के लिए बेहतर जीवन स्तर हासिल करने की खातिर सामाजिक सशक्तीकरण बेहद जरूरी है और यह सतत प्रक्रिया और परिणाम दोनों है। सामाजिक सशक्तीकरण आम तौर पर चार निम्नलिखित स्तरों पर लागू किया जाता है।

(1) व्यक्तिगत स्तर पर-जहां कोई शख्स | खुद की अहमियत को समझता है और जीवन में सक्रियता से भागीदारी निभाता है, (2) पारिवारिक स्तर पर, जहां परिवार | को अपने दिव्यांग सदस्यों के सामाजिक पुनर्वास के लिए सलाह, निर्देश और सहयोग मिलता है, (3) समुदाय के स्तर पर, जहां जागरूकता अभियान को अंजाम दिया जा सकता है; सरकारी नीतियों के साथ-साथ समुदाय से सामाजिक सहयोग के कारण सामाजिक समावेशन का मार्ग प्रशस्त होता है, जहां कोई आदमी-औरत अपने निजी हालात और समावेशी माहौल | में फलता-फूलता/फलती-फूलती है। और (4) सभी दिव्यांगों के लिए सामाजिक समानता और समावेशन को बढ़ावा देने की खातिर सामाजिक नीतियों का स्तर इस तरह की स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर की गतिविधियों को प्रभावित करता है।

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Courtesy: Yojana