(GIST OF YOJANA) 1000 दिनों में सौ फीसदी ग्रामीण बिजलीकरण का सफर [July] -2018]


(GIST OF YOJANA) 1000 दिनों में सौ फीसदी ग्रामीण बिजलीकरण का सफर [July] -2018]


1000 दिनों में सौ फीसदी ग्रामीण बिजलीकरण का सफर

बिजली हम सब की बुनियादी जरूरत है। कल्पना कीजिए की 21 वीं सदी में हमें बिजली के बिना जीवन जीना पड़े। देश के प्रत्येक नागरिक को बिजली उपलब्ध कराना सरकार का लक्ष्य रहा है और इस संबंध में अनेक प्रयास किए गए हैं। 15 अगस्त 2015 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि देश के शेष 18500 गैरबिजलीकृत गांवों को अगले 1000 दिनों में बिजलीकृत किया जाएगा। ऊर्जा मंत्रालय को एक निश्चित समय सीमा के भीतर इन सभी गैरबिजलीकृत गांवों में बिजली पहुंचाने का काम सौंपा गया। हालांकि यह काम चुनौतीपूर्ण था, इसलिए पहला कदम वस्तुस्थिति का जायजा लेना था। जैसा कि प्रबंधन में कहा जाता है, आप जिन चीजों का जायजा नहीं ले सकते हैं, उनका प्रबंधन भी नहीं कर सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे पहली मान्यता प्राप्त प्रशासनिक इकाई एक जनगणना गांव होता है। और इसलिए सभी जनगणना गांवों में बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करना अर्थात सौ फीसदी बिजलीकरण करना है। यह जायजा लेना ही इस दिशा में बढ़ने वाला पहला कदम है। बिजली की आपूर्ति के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना, खासकर ग्रामीण इलाकों में, लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरने के लिए जरूरी है। इसलिए सरकार ने ग्रामीण इलाकों में बिजली वितरण के सभी पहलुओं को कवर करने वाली एक एकीकृत योजना का आरंभ किया जिसे दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) नाम दिया गया।

दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना' (डीडीयूजीजेवाई )

इस योजना में निम्नलिखित कार्य निश्चित किए गए : (i) गैरबिजलीकृत गांवों का बिजलीकरण(ii) पहले से बिजलीकृत गांवों में गहन बिजलीकरण, ताकि घर-घर में बिजली पहुंचाई जा सके। (ii) बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में सुधार के लिए सबट्रांसमिशन और वितरण की आधारभूत संरचना को सुदृढ़ और संवर्द्धन करना, (iv) फीडर सपरेशन ताकि किसानों को पक्की तौर पर बिजली आपूर्ति की जा सके और (v) ऊर्जा ऑडिट और घाटे को कम करने के लिए फीडर, वितरण ट्रांसफॉर्मर और उपभोक्ताओं की मीटरिंग। ग्रामीण बिजलीकरण की पूर्व योजना को डीडीयूजीजेवाई में एक पृथक घटक के रूप में शामिल किया गया।
इस योजना का कुल व्यय 75 893 करोड़ रुपए है। इसमें केंद्र सरकार का सकल बजटीय समर्थन 63,027 करोड़ रुपए का | है। इस योजना के तहत स्वीकृत परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।

योजना और रणनीति

सभी शेष गैरबिजलीकृत गांवों के बिजलीकरण का कार्य मिशन मोड में किया गया। 2015-16 से तीन साल पूर्व बिजलीकरण की गति अपेक्षाकृत धीमी थी। (2012-13: 2587, 2013-14: 1197, 2014-15 : 1405) जिसका अर्थ यह था। कि गांवों के बिजलीकरण में 10 साल और लगेंगेइसलिए सभी हितधारकों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया गया ताकि मौजूदा स्थिति को समझा जा सके। साथ ही, संसाधनों की उपलब्धता, कार्य की गति को तेज करने के लिए संभावित उपायों व्यवस्थाओं की निगरानी पर भी चर्चा की गई। इससे नए विचार, रणनीति और दृष्टिकोण प्राप्त हुए। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

जनगणना 2011 कोड के साथ गांवों की उचित पहचान: सभी राज्यों से अनुरोध किया गया है । कि वे 2011 के जनगणना कोड के साथ शेष गैर-बिजलीकृत गांवों की पहचान करें ताकि व्यापक योजना बनाने हेतु नाम, भौगोलिक स्थान, जनसांख्यिकी इत्यादि का पता लगाया जा सके। इस कार्यक्रम से पहले आमतौर पर गांवों की संख्या के आधार पर प्रगति की निगरानी की जाती थी।

सुदूर दुर्गम गांवों के लिए सौर पीवी आधारित ऑफग्रिड समाधान: यह देखा गया था। कि इनमें से कई रबिजलीकृत गांव दूरदराज के इलाकों, बरौली पहाड़ियों पर या गहरे जंगलों में और वामपंथी अतिवादी इलाकों में स्थित हैं। इन गांवों तक पहुंचना भी मुश्किल था और बिजली के लिए जो इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी होता है, उसे वहां तक ले जाना और फिर लगाना, एक अलग किस्म की चुनौती था। इसलिए यह तय किया गया कि जिन गांवों में ग्रिड विस्तार करना अव्यावहारिक या बहुत महगा है, वहां सौर फोटोवोल्टिक आधारित समाधानों का उपयोग करके ऑफग्रिड मोड के माध्यम से बिजलीकरण किया जाएगा। उसी के अनुसार, डीडीयूजीजेवाई के तहत ऑफ-ग्रिड गांवों के लिए परियोजनाओं को मंजूरी दी गई मानक बोली प्रक्रिया के दस्तावेज तैयार किए गए और ई-निविदाएं मंगवाई गई

नए प्रकार से वित्तपोषण : कार्य तेज गति से हो, इसके लिए योजना के तहत राज्यों को धन भी उपलब्ध कराया जाना था। बजटीय समर्थन के अतिरिक्त वित्त मंत्रालय ने ऊर्जा वित्त निगम (पीएफसी) और ग्रामीण बिजलीकरण निगम (आरईसी) जैसे वित्तीय संस्थानों के माध्यम से बांड के रूप में, बाजार से धन जुटाने की अनुमति दी गई ताकि पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जा सके। पिछले दो वित्तीय वर्षो में अतिरिक्त बजटीय संसाधन ( ईबीआर ) के रूप में 9,000 करोड़ रूपये जुटाए गए।

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कार्यों के निष्पादन के लिए राज्यों को लचीलापन: विभिन्न भौगोलिक, जनसांख्यिकीय और अन्य स्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह महसूस किया गया कि सभी राज्यों के लिए एक-सा मॉडल बनाना संभव नहीं है। इसलिए राज्यों को उपयुक्तता के अनुसार टर्नकीआंशिक टर्नकीविभागीय मोड विभिन्न भौगोलिक, जनसांख्यिकीय और अन्य स्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह महसूस किया गया कि सभी राज्यों के लिए एक-सा मॉडल बनाना संभव नहीं है। इसलिए राज्यों को उपयुक्तता के अनुसार टर्नकी/आंशिक टर्नकीविभागीय मोड में परियोजनाओं को निष्पादित करने के लिए पर्याप्त लचीलापन दिया गया।

जरूरी था, राज्योंडिस्कॉम्स को मदद दी गई। नोडल एजेंसी ने लगभग सभी राज्यों में अपने कार्यालय खोले. अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दैनिक आधार पर राज्य अधिकारियों से बातचीत करने और उनकी मदद करने के लिए नियुक्त किया गया। राज्य डिस्कॉम्स/ बिजली विभाग की क्षमताओं को सुदृढ़ करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए, आरईसी ने ब्लॉकजिला स्तर पर ग्राम विद्युत अभियंता (जीवीए) नियुक्त किए ताकि कार्यक्रम की निगरानी और त्वरित कार्यान्वयन में सहायता प्रदान की जा सके। ये जीवीए स्थानीय क्षेत्रों के स्नातक अभियंता हैं जिन्होंने व्यापक क्षेत्र की निगरानी में डिस्कॉम्स की सहायता की।

माइलस्टोन आधारित निगरानी : ग्रामीण बिजलीकरण की प्रगति की निगरानी और निर्धारित समय पर उसे पूरा करने के लिए 12 चरणमाइलस्टोन बनाए गए। इन माइलस्टोन्स के अंतर्गत पूरी प्रक्रिया आती थी काम सौंपे जाने से लेकर सर्वेक्षणमाल की खरीदसाइट तक माल पहुंचाना, इंफ्रास्ट्रक्चर लगाना, कमीशनिंग और बिजलीकरण। काम को पूरा करने और गांवों के बिजलीकरण को सुनिश्चित करने के लिए परियोजना प्रबंधन के उपायों का अत्यधिक उपयोग किया गया
पारदर्शिता और उत्तरदायित्वः इन गावों में बिजलीकरण की प्रक्रिया और उसकी प्रगति की जानकारी पारदर्शी तरीके से उपलब्ध करने के लिए मोबाइल एप गर्व शुरू किया गया। सार्वजनिक डोमेन में सूचनाओं के प्रसार से जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न हुई।

नियमित समीक्षा और निगरानी : केंद्र राज्य और डिस्कॉम्स के स्तर पर नियमित समीक्षा और निगरानी के लिए एक एक व्यवस्था कायम की गई। बेहतर समन्वय और परियोजना प्रबंधन को सक्षम बनाने के लिए क्षेत्रीय बैठकों का आयोजन किया गया। इन समीक्षाओं में क्षेत्र की प्रगति को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा की गई और उन्हें जल्द से जल्द हल करने परविचार किया गया।

प्रगति

जब इन रणनीतियों पर सहयोगपरक तरह से काम हुआ तो कार्यान्वयन के पहले चरण में ही आशातीत परिणाम नजर आने लगे। पिछले वर्ष की तुलना में 2015-16 के दौरान ग्रामीण बिजलीकरण की दिशा में अधिक प्रगति हुई (7108 गांव बिजलीकृत। यह पिछले तीन वर्षों की समेकित प्रगति से अधिक था (2012-13: 2587 2013-14: 1197, 2014-15: 1405)।
यह कहना महत्वपूर्ण है कि इनमें से अधिकतर गांव कुरा। के इलाकों, वफली पहाड़ियों में या गहरे जगलों में और वामपंथी उग्रवादी इलाकों में स्थित थे। इसलिए बिजलीकरण कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इन चुनौतियों का हल निकालना था। इन चुनौतियों के कारण आजादी के इतने सालों बाद भी लोगों के जीवन में अंधेरा है। लेकिन काम बढ़ता गया तो परेशानियां भी बढ़ती गई। इसमें बड़ी चुनौतियां निम्नानुसार थीं:

  • पारंपरिक ग्रिड सिस्टम का उपलब्ध और व्यवहारिक न होना: 2,762 गांव
  • दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र: 245 गांव (जम्मू- कश्मीर-54, अरुणाचल प्रदेश-182, मेघालय-9)
  • 1-10 दिनों तक माल की सिर पर हुलाई: 102 गांव (अरुणाचल-90, मणिपुर-12)
  • हेलिकॉप्टरों द्वारा माल की ढलाई: 51 गांव (जम्मू-कश्मीर-35 . अरुणाचल प्रदेश-16)
  • वामपंथी अतिवाद (एलडब्ल्यूईगतिविधियों से प्रभावित क्षेत्र: 7614 गांव (बिहार-1044, झारखंड-2478, छत्तीसगढ-1051. मध्य प्रदेश-14, ओडिशा-3027)
  • वन मंजूरियां: 415 गांव (झारखंड-155, उत्तराखंड-23 ओडिशा-45, असम-32, मध्य प्रदेश-160)
  • रेलवे की मंजूरियां: 38 गांव बिहार-37 और असम-1)

इस योजना की गतिशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दौरान 9 राज्यों ने गैर बिजलीकृत 1227 जनगणना गांवों की और सूचना दी। इन गांवों के बिजलीकरण का काम भी तुरंत शुरू किया गया। इनमें से 1193 गांवों का बिजलीकरण किया गया और यह पाया गया कि शेष 34 गांवों में आबादी ही नहीं है।
इस प्रकार राज्यों, डिस्कॉम्स, ठेकेदारों, विक्रेताओंउपकरण निर्माताओं और राज्यों के निवासियों के समर्थन से प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित 1000दिन की समय सीमा से पहले ही लक्ष्य पूरा कर लिया गया।

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Courtesy: Yojana