(GIST OF YOJANA) किसानो का कल्याण ; संकल्प भरी प्राथमिकता [July] -2018]


(GIST OF YOJANA) किसानो का कल्याण ; संकल्प भरी प्राथमिकता [July] -2018]


किसानो का कल्याण ; संकल्प भरी प्राथमिकता

कल्याण लंबे अरसे तक दरकिनार ही रहा। लेकिन केंद्र में नई और अधिक संवेदनशील सरकार ने इस सामाजिक-आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मामले को 2014 में आगे कर दिया। उसके बाद से कृषि विकास के प्रति नया किसान कल्याण केद्रित रुख ग्रामीण जनता को अधिक आयरोजगार तथा संपन्नता के साथ सशक्त बना रहा है। साथ ही, प्रधानमंत्री ने भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर यानि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का आह्वान किया है। उसे पूरा करने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने सात बिंदुओं की रणनीति बनाई है, जिसमें किसानों की आय बढ़ाने के विभिन्न महत्वपूर्ण तथा संभावित घटक शामिल किए गए हैं। इनपुट लागत के प्रभावी प्रयोग के साथ कृषि भूमि के प्रति इकाई उत्पादन को बढ़ाना (कटाई के बाद नुकसान को कम करना तथा मूल्यवर्द्धन बड़े जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करते हुए कृषि विपणन में सुधार) और विभिन्न अनुषांगी गतिविधियों (बागवानी, पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन मुर्गी पालन तथा एकीकृत खेती) के प्रोत्साहन पर विशेष जोर देना इस रणनीति के प्रमुख बिंदु हैं।

विपणन के नुस्खे

इस बार के आम बजट (2018-19) में सभी 23 प्रमुख रबी एवं खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) उनकी उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना रखने की घोषणा कर सरकार ने साहसिक और बहुप्रतीक्षित कदम उठाया। लेकिन इस घोषणा के अनुरूप ऐसी प्रक्रिया खोजना जरूरी है, जिससे खुले बाजार में कृषि उत्पादों की कीमत एमएसपी से नीचे जाने पर भी एमएसपी पर ही खरीद सुनिश्चित हो सके। इसे ध्यान में रखते हुए नीति आयोग को केंद्र तथा राज्य सरकारों से मशविरा कर ऐसा तरीका विकसित करने का जिम्मा दिया गया है, जिससे प्रतिकूल बाजार परिस्थितियों में भी किसानों के हितों की रक्षा हो सके। सरकार ने बहुत अधिक उपज होने पर अधिक उत्पाद को खरीदने का वायदा भी किया है।

देश में 85 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनके पास बाजार में बेचने लायक अतिरिक्त फसल कम होती है और खेती-बाड़ी में उनका खर्च बहुत अधिक होता है। इसलिए सरकार ने लाइसेंस तथा कराधान संबंधी बाधाएं दूर करने एवं किसानों का मुनाफा बढ़ाने के लिए 2015 में इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई- नाम) शुरू किया। अभी तक 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 585 कृषि उत्पाद विपणन समितियां (एपीएमसी या मंडिया) लगभग 90 कृषि उत्पादों के ऑनलाइन व्यापार में मदद करने वाले इस मंच से जुड़ चुकी हैं। 99 लाख से अधिक किसान और एक लाख से अधिक कारोबारी विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में काम करने वाली इस सुविधा का सक्रिय इस्तेमाल करते हैं। लेकिन जो किसान एपीएमसी तक नहीं पहुंच पाते वे ईनाम के फायदों से वंचित हैं। हाल ही में 22,000 ग्रामीण हाटों का उन्नयन कर ग्रामीण कृषि बाजार (ग्राम) बनाकर सरकार ने इस दिशा में सही कदम उठाया।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना एक अन्य प्रमुख योजना है, जिसका मकसद विपणन संबंधी सहायता के साथ प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्द्धन की सुविधाएं प्रदान कर किसानों का कल्याण करना एवं उन्हें समृद्ध बनाना है। इस योजना से 2019-20 तक 20 लाख किसानों को लाभ मिलने और 5 लाख से अधिक प्रत्यक्ष परोक्ष रोजगार उत्पन्न होने की उम्मीद है तथा इससे लगभग 31400 करोड़ रुपए का निवेश भी आएगा। इसके तहत विभिन्न योजनाएं आती हैं और यह फूड पार्क स्थापित एवं संचालित कर रही है (एकीकृत कोल्ड चेन एवं मूल्यवर्द्धन अवसंरचना को विस्तार दे रही है) खाद्यप्रसंस्करण एवं संरक्षण क्षमताओं में विस्तार कर रही है। कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों के लिए बुनियादी ढांचा तैयार कर रही है और किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए सभी प्रकार के लिंकेज भी विकसित कर रही है। सरकार विभिन्न प्रकार के कर प्रोत्साहन देकर, 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफडीआई की अनुमति देकर और कृषि प्रसंस्करण इकाइयों को आसान कर्ज मुहैया कराने के लिए नाबार्ड में 2,000 करोड़ रुपए का विशेष कोष तैयार कर खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा दे रही है।

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किसानों को वित्तीय सहयोग

बैंकिग में कई सुधार होने के बाद भी किसानों को अपनी कृषि संबंधी जरूरतों के लिए संस्थागत ऋण हासिल करने में आम तौर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए सरकार कृषि क्षेत्र के लिए संस्थागत ऋण की मात्रा लगातार बढ़ा रही है। 2014-15 में यह 8.5 लाख करोड़ रुपए था, जो अब 11 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। हाल ही में मछली पालने वाले और पशुपालन करने वाले किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा दे दी गई ताकि कार्यशील पूंजी की अपनी जरूरतें पूरी करने में उनकी मदद हो सके। साथ ही, अल्पावधि फसल ऋण के लिए रियायती ब्याज दर से प्रदान करने, गिरवी या रेहन के बगैर मिलने वाले कृषि ऋण में इजाफा करने और संयुक्त उत्तरदायित्व समूहों को बढ़ावा देने आदि से यह सुनिश्चित होता है कि योग्य किसानों को झंझट रहित कर्ज समय से मिल सके। सरकार ने राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम को मिलने वाले बजट आवंटन में बहुत इजाफा कर दिया है ताकि सहकारी समितियों और उनके सदस्यों को वित्तीय सहायता मिल सके।

सुरक्षित आजीविका की ओर

विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक पदाएंकीड़ों एवं बीमारी का हमला और मौसम में बदलाव किसानों की आय तथा आजीविका के लिए खतरा होते हैं। किसानों की आजीविका को ऐसे खतरों से बचाने के लिए 2016 में बेहद कम प्रीमियम | पर अधिक से अधिक फसलों को शामिल कर नई तथा बेहतर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आरभ की गई। प्रीमियम में किसानों का योगदान घटाकर रबी फसलों के लिए केवल 15 प्रतिशत, खरीफ फसलों के 2 प्रतिशत और वार्षिक बागवानी फसलों के लिए अधिकतम 5 प्रतिशत कर दिया गया है। बीमा सुविधा का विस्तार किया गया है। और कटाई के बाद के जोखिमों और 14 दिन तक के नुकसान को भी इसमें शामिल कर दिया गया है। स्थानीय किसानों के नुकसान के लिए आकलन में जलभराव को स्थानीय आपदा मान लिया गया है। दूरसंवेदी तकनीक और सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियों के इस्तेमाल ने दावों के भुगतान को अधिक सटीक और पारदर्शी बनाते हुए तेज कर दिया है। किसानों के अनुकूल प्रावधानों के साथ 2018-19 क लिए 13,000 करोड़ रुपए का केद्रीय बजट आवटन कर सरकार का इरादा फसल बीमा के दायरे को कई गुना बढ़ाना है।

फसलों को बागवानी , पशुपालन एंव मत्स्य पालन के साथ समुचित तथा समन्वित रूप से जोड़ने वाले एकीकृत खेती के मॉडल अथवा प्रणालियाँ प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी किसानों की आजीविका सुरक्षित रख सकती है। इसके आलावा खेती का यह न्य तरीका एक न एक कृषि घटक से आय सुरक्षित कर भूमि की प्रति इकाई लाभदेयता बढ़ाता है एंव जोखिम कम करता है। वैज्ञानिको ने पिछले चार वर्ष में एकीकृत खेती के ऐसे 31 मॉडल तैयार किए है और उन्हें मान्यता दी है, जो विभिन्न कृषि - पारिस्थितिक क्षेत्रों के छोटे एंव सीमांत किसानो के अनुरूप है। इन मॉडलों को ग्राम स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिए देश भर में इनका प्रदर्शन किया जा रहा है।

जैविक खेती - बेहद महत्वपूर्ण

स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के प्रति बढ़ती चिंता ने हमारी खानपान की आदतों में आमूल - चूल परिवर्तन कर दिया है और अब जैविक उत्पादों की और हमारा झुकाव बढ़ता जा रहा है। यह चलन भारत तथा विदेश में जोर पकड़ रहा है और इस कारण जैविक उत्पादों की कीमतें भी चढ़ती जा रही है। सयोंग से , भारत की जलवायु और सामाजिक - आर्थिक परिस्थितियां जैविक खेती के अनुकूल हैं और किसानों को प्रोत्साहित करने तथा जरूरी बाजार सहायता प्रदान करने भर से इस संभावना का पूरा लाभ उठाया जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने जैविक कृषि को बढ़ावा देने तथा जैविक उत्पादों के लिए बाजार नेटवर्क तैयार करने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना आरंभ की है। क्लस्टर आधारित प्रणाली लागू की जा रही है, जिसमें 50 किसानों को जुटाकर 50 एकड़ जमीन के क्लस्टर पर ऐसी कृषि एवं बागवानी फसलें उगाई जाती हैं, जिनकी बाजार में जैविक उत्पादों के रूप में बड़ी मांग है। प्रत्येक किसान को तीन साल के लिए 50000 रुपए प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता दी जाती है। उसके अलावा जैविक क्लस्टरों को जैविक उत्पाद इकट्ठे कर बाजार तक ले जाने की व्यवस्था करने के लिए 120000 रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। इस वर्ष के अंत तक 10000 जैविक क्लस्टर तैयार करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सरकार पिछले चार वर्ष में इस योजना के तहत 947 करोड़ रुपए की धनराशि वितरित कर चुकी है। जैविक क्लस्टर विशेष रूप से आदिवासी, वर्षा जल सिंचितपर्वतीय तथा सुदूर इलाकों में विकसित किए जा रहे हैं ताकि इन क्षेत्रों के वंचित किसानों का कल्याण हो सके। जैविक तरीकों से खेती की लागत 20 प्रतिशत तक कम हो रही है, जिसके कारण शुद्ध लाभ में 20-25 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है।

श्रृंखला विकास के लिए है के समर्पित मिशन आरंभ किया । इस पर तीन वर्ष (2015-2018) में 400 करोड़ रुपए खर्च करने का लक्ष्य था। 2016 में सिक्किम को भारत का पहला जैविक राज्य घोषित किए जाने से पूर्वोत्तर के अन्य राज्य भी जैविक ती को तेजी से बढ़ावा देने के लिए उद्यत हुए हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र निर्यात की दृष्टि से जैविक उत्पाद तैयार करने का भारतीय केद्र बनता जा रहा है।

अतिरिक्त आय

विभिन्न प्रौद्योगिकी रिपोर्टों पर काम करते हुए सरकार ऐसी अनुषांगी कृषि गतिविधियों पर ध्यान केद्रित कर रही है, जिनसे किसानों को अतिरिक्त आय होने की पक्की संभावना है। अधिक वित्तीय आवंटन तथा एकीकृत मधुमक्खी पालन विकास केंद्रों ने शहद उत्पादन को नई गति दी है, जो पिछले चार वर्ष के दौरान नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया। केवल 50 पेटी शहद तैयार करने वाली छोटी-सी शहद उत्पादन इकाई भी किसानों की नियमित आय में 2 से 2.5 लाख रुपए जोड़ सकती है। इसी तरह अकत कारोबारी संभावनाओं के कारण अक्सर 'ग्रीन गोल्ड कहलाने वाला बास भी संघर्ष कर रहा था, क्योंकि गैर वन क्षेत्रों में भी उन्हें वृक्ष की श्रेणी में रखा गया था। सरकार ने इसका नए सिरे से वर्गीकरण किया और वन क्षेत्र से बाहर उगाए जाने पर उसे 'घास' की श्रेणी में रख दिया ताकि उसकी खेती. कटाई, दुलाई और हस्तशिल्प के लिए कच्चे माल के तौर पर उसका उपयोग बिना रुकावट हो सके। हाल ही में राष्ट्रीय बांस मिशन को नए स्वरूप में आरंभ किया गया और बांस क्षेत्र को संपूर्ण रूप से बढ़ावा देने के लिए 1290 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित की गई। मशरूम भी जबरदस्त कारोबारी संभावना वाली फसल है, क्योंकि देसी और विदेशी बाजार में उसकी बहुत अधिक मांग है और उसकी कीमत भी लाभकारी है। उसकी इस संभावना का इस्तेमाल किसानों की आय बढ़ाने के मकसद से करने के लिए किसानों को बेहद कम संसाधनों में भीतर ही मशरूम उगाने के लिए किसानों को आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान की जा रही है। सरकार किसानों को अतिरिक्त आय दिलाने के लिए घरों में ही मुर्गी पालन, बकरी पालनसुअर पालन और तालाबों में मछली पालन को भी बढ़ावा दे रही है। 'मेरा गांव, मेरा गौरव की अनूठी योजना के तहत चार-चार कृषि वैज्ञानिकों का समूह खेती एवं अनुषांगी गतिविधियों में नई प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन हेतु पांच गांवों को चुन रहा है और गोद ले रहा है। किसानों को उनकी आय बढ़ाने के लिए ज्ञान, कौशल तथा जानकारी से सशक्त बनाया जा रहा है।

सरकार किसानों के लिए एक अभूतपूर्व कदम उठा रही है, जिसके तहत उनको उनकी ऊसर जमीन पर सौर ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए तैयार किया जाएगा। इससे दो उद्देश्य पूरे हो जाएंगे उनके खेतों की सिंचाई के लिए सौर पंप लग जाएंगे और अतिरिक्त बिजली ग्रिड को देने से उनकी अतिरिक्त कमाई भी होगी। राज्य सरकारों को भी ऐसी प्रणाली लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिसमें वितरण कंपनियां अथवा । लाइसेंसशुदा कंपनियां उचित लाभकारी मूल्य पर यह सौर बिजली खरीद लें।

भारत सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए गंभीर है और इसके लिए वह उचित नीतियांव्यावहारिक कार्यक्रम लागू करने तथा उन्हीं के अनुरूप बजट आवंटन करने में जुटी है। लेकिन उसी भूमि से अधिक कृषि आय प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारोंसहकारी संस्थाओंकृषक संगठनों संबंधित उद्योगों और किसान जैसे अन्य पक्षों को भी मिलजुल कर मिशन की भावना से काम करना होगा।

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Courtesy: Yojana