(GIST OF YOJANA) सरकार का प्रयास : विकास बने जनांदोलन [June -2018]


(GIST OF YOJANA) सरकार का प्रयास : विकास बने जनांदोलन [June -2018]


सरकार का प्रयास : विकास बने जनांदोलन

केंद्र सरकार ने हल में कहा है कि उसके एजेंडे के तीन अहम पहलू है - विकास, तज वकास और सर्वागीण विकास। सूत्रों के मुताबिक, एक और संदर्भ में सरकार ने यह भी कहा है कि विकास को जन आंदोलन बनाना मौजूदा वक्त की जरूरत है। इस बात को लेकर काफी कम लोग असहमत होंगे कि केंद्र की मौजूदा सरकार ने जिस तरह से विकास को भारतीय राजनीति के केद्र में ला खड़ा किया है, वैसा पहले कभी देखने को नहीं मिला था। विकास और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के मकसद से मौजूदा सरकार ने कई कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इनमें जन धन योजना, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया मुद्रा बैंक योजना, स्वच्छ भारत अभियान आयुष्मान भारत आदि शामिल हैं, कार्यक्रमों की सूची यहीं पर नहीं ठहरती, इसकी सूची । काफी लंबी है। मोदी सरकार द्वारा पिछले 4साल में शुरू किए गए कई कार्यक्रमों के बारे में एक आम आदमी क्या सोचता

एक आसान तरीका विभिन्न सुधारों कार्यक्रमों को आर्थिक वृद्धि और बदलाव के औजार की तरह देखने का है। हालांकि इसके लिए गुंजाइश सीमित है, लेकिन यह तरीका उपयोगी नजरिया प्रदान करता है। इस नजरिये के हिसाब से कोई इन सुधारोंकार्यक्रमों को तीन मुख्य श्रेणियों में बांट सकता है: (1) वैसे कार्यक्रम जिनसे तुरंत लाभ हुआ है (2) वैसी योजनाएं. जिनसे लंबी से मध्यम अवधि में फायदा होने की बात की गई है और (3) वे कार्यक्रम जिन पर छोटी अवधि में लागत लगाने से बाद में अहम लाभ हो सकता है। ‘तुरंत लाभ' वाली योजनाओं में देश में डॉक्टरों की कमी की समस्या से निपटने के लिए केद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं के सभी डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की उम्र में बढ़ोतरी और किसानों की आमदनी बढ़ाने के मकसद से गैर-जंगली इलाकों में बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसे भारतीय वन अधिनियम की सूची से हटाने जैसे मामले शामिल हैं। जिन | कदमों से मध्यम से लंबी अवधि में फायदा होगा, उनमें देश के अलग-अलग राज्यों/ हिस्सों में एम्स जैसे नए अस्पताल खोलना बुलेट ट्रेन की शुरुआत आदि हैं। इसी तरह, वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) और बड़े नोटों के विमुद्रीकरण जैसे ढांचागत सधार आदि ऐसे सुधार के उदारहण हैं, जिनसे कुछ समय के लिए दिक्कत हुईलेकिन बाद में इससे जबरदस्त फायदा होने की सभावना है।

आर्थिक जानकारों की राय

इस संबंध में एक और उपयोगी नजरिया सरकार के विभिन्न आर्थिक सुधारों/ कार्यक्रमों को अर्थशास्त्रियों के चश्मे से देखने का हो सकता है: वैसे सुधार कार्यक्रम जो बाजार की असफलता से निपटते हैं या निपटेंगे और वे जो सरकार की नाकामी को दुरुस्त कर रहे हैं या करेंगे। बाजार की अर्थव्यवस्था के बड़ेबड़े पैराकार भी मानते हैं कि कभी-कभी ऐसी ति आती है, जब बाजार का तंत्र धराशायी हो जाता है। ऐसे में सरकारी हस्तक्षेप मुहैया कराने की जरूरत होती है। चाहे सार्वजनिक हित के लिए प्रावधान की बात हो, या कंपनियों की उन गतिविधियों पर अंकुश लगाने का मामला, जिसके तहत वे बाजार में अपनी दबदबे की स्थिति का बेजा फायदा उठाती हैं, सरकार की नजर जरूरी है। साथ ही, मैक्रो-आर्थिक स्थिरता की सुरक्षा या कम मांग के कारण बाजार नहीं होने' या कल अन्य परिस्थितियों में भी यह जरूरी है।

बाजार की असफलता से निपटना

मौजूदा सरकार अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं को तेजी से बढ़ावा दे रही है। केद्र सरकार न सिर्फ नई परियोजनाओं पर ध्यान केद्रित कर रही है, बल्कि उसने पिछली सरकारों के दौर में अटकी हुई परियोजनाओं को भी शुरू किया है। यह इस हिसाब से सार्थक है कि यह सार्वजनिक हित के मद्देनजर बाजार की असफलता जैसी चुनौती से निपटता है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का संस्थापक सदस्य होने के नाते मौजूदा सरकार ने वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक हितों को तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाई है।

चाहे डिजिटल सौदों को जोरदार तरीके से बढ़ावा देने की बात हो या राष्ट्रिय पोषण मिशन पर नए सिरे से जोर देने का मामला या स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत, इन तमाम अभियानों का मकसद सकारत्मक नतीजा हासिल करना है यानी ऐसी हर पहल विकास की प्रक्रिया से जुड़ी रहे। इसी तरह, गाड़ियों के प्रदुषण को रोकने के मकसद से भारत

स्टेज उत्सर्जन मानक को IV से बढ़ाकर VI करना हो या ऑक्सिटोसिन की बिक्री और आयात पर प्रतिबंध लगाने की बातइन कवायदों का मकसद नकारात्मक असर को कम करना है। केद्र सरकार वित्तीय समावेशन के मकसद से जन धन योजना पेश कर, गरीबों को सस्ते में घर देने के मकसद से सभी के लिए घर योजना की शुरुआत करकौशल भारत अभियान आदि के जरिये गैर-मौजूद' बाजारों के लिए गुंजाइश बना रही है। कौशल विकास अभियान का मकसद वोकेशनल और तकनीकी प्रशिक्षण मुहैया कराना है। मैक्रो-आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आर्थिक विकास जरूरी है। सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कृषि उत्पादन और उत्पादकता पर जोर देने के मकसद से कई कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इनमें प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, सॉयल हेल्थ कार्डफसल बीमा योजना आदि शामिल हैं। इसी तरह, छोटे उद्योमियों/नवोन्मेष में जुटे लोगों व इकाइयों को प्रोत्साहित करने के लिए आसानी वित्तीय इंतजाम पर भी काम किया जा रहा है। मसलन मुद्रा योजना के अलावा स्टार्ट अप इंडिया और स्टैंड अप इंडिया जैसे कार्यक्रम भी शुरू किए गए हैं। इसके अलावा, सरकार ने खुद के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तैयार किया है: 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करना, अगले तीन साल में विदेशी सैलानियों की आवक में दोगुनी बढ़ोतरी करना, 2022 तक सौर ऊर्जा से 100 गीगावॉट बिजली पैदा करने का लक्ष्य आदि। आर्थिक वृद्धि पर फोकस वाले क्षेत्रों को देखते हुए ऐसा लगता है कि मोदी सरकार न सिर्फ विकास के माध्यमों व साधनों को विविधता का स्वरूप देने की कोशिश कर रही है, बल्कि समाज के सभी तबके से लोगो की संभावनाओं को खोलकर विकास को लोकतांत्रिक स्वरुप भी दे रही है।

सरकारी असफलताओं को दुरुस्त करना

बाजार की अर्थवयवस्था में किसी भी सरकार का एक अहम काम मानक तय करना और नियमन विकसित करना होता है , ताकि बाजार का कामकाज बेहतर तरीके से चल सके। सरकार ने नई नियामक इकाइयों के गठन के लिए नए प्रावधान किये है। इसके अलावा मौजूदा नितमाको को मजबूत करने के लिए भी कदम उठाए गए हैं। मिसाल के तौर पर सरकार ने रियल एस्टेट सौदों को ज्यादा पारदर्शी बनाने और घर के खरीदारों के हितों की सुरक्षा के लिए रियल एस्टेट अधिनियम पास किया है। इसी तरह, सरकार भारत में खाद्य सुरक्षा नियमों को मजबूत बना रही है, बैंकिंग नियमों का सख्त बना रही हैं। पेशेवर मापदंडों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार मेडिकल डॉक्टरों की पेशेवर इकाइयों, लेखापालों, ऑडिटरों आदि की गतिविधियों पर भी नजर रख रही है। सामाजिक क्षेत्र में भी सरकार नियामक संबंधी दिक्कतों को दूर करने की कोशिश कर रही है। मिसाल के तौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र के नियामक के अभाव में दवाओं और मेडिकल उपकरण उद्योग में बड़े पैमाने पर बाजार की असफलता सामने आई है और यहां कमीशनों और हेराफेरी का बोलबाला है। अब यह मसला सरकार की निगाह में हैं और इसे दुरुस्त करने की शुरुआत हो चुकी है।

समानता को बढ़ावा

समानता को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक निश्चित इलाके या तय आबादी समूह को ध्यान में रखते हुए कई तरह के अभियान चलाए हैं। मिसाल के तौर पर मौजूदा सरकार ने उत्तर-पूर्व क्षेत्र के विकास पर खास जोर दिया है। यह क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है। सरकार ने इस क्षेत्र के देश के बाकी हिस्सों की तरह विकास के लिए उत्तर-पूर्व इलाके में विकास की कुछ परियोजनाओं की शुरुआत की है। इसी तरह , सरकार ने 100 से भी ज्यादा एस्पाइरेशनल यानी ‘संभावनाशील' जिलों की पहचान की है, जो विकास के कुछ अहम सूचकांकों के लिहाज से पिछड़े हुए हैं। 'संभावनाशील जिलों का कायाकल्प कार्यक्रम' के तहत सरकार इन जिलों में विकास की रफ्तार तेज करने के लिए खास ध्यान दे रही है।

एक और आधार

बाजार की असफलताओं से निपटने और समानता हासिल करने के मकसद के अलावा सरकारी हस्तक्षेप का एक और आधार व्यवहारवादी अर्थशास्र से मिला है, जिसमें लोगों के व्यवहार और पसंद को प्रभावित करने में सरकार की भूमिका को सही बताया जाता है। वास्तव में सरकार कई क्षेत्रों में सामाजिक संदेशों के जरिये प्रक्रियाओं व्यवहार और संसद को लेकर लोगों की सोच को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। मसलन बेटियों को लेकर जागरूकता फैलाने और गांवों को खुले शौचालय की आदत से मुक्त करने में ऐसा किया जा रहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री ने इस मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करने से कभी परहेज नहीं किया है और इन लक्ष्यों को हासिल करने में यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। मिसाल के तौर पर सेहमसंद बने रहने के लिए लोगों से योग करने का अनुरोधखादी कपड़ों का इस्तेमाल करने की सलाह, वैसे लोगों के लिए गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील जो इसका खर्च वहन नहीं कर सकतेबिजली बचाने के लिए एलईडी बल्ब को अपनाने की गुजारिश आदि ।

विकास को अच्छी राजनीति में बदलना

ऊपर पेश किए उदारहण महज बानगी हैं। वास्तव में सुधारों/कार्यक्रमों की सूची काफी लंबी है। सुधारों/कार्यक्रमों के पोर्टफोलियो की समीक्षा करते हुए यह महसूस किया जा सकता है कि सरकार ने प्रमुख तौर पर लोक-लुभावन वादों से परहेज किया है। उसने वैसे लोक-लुभावन वादों का सहारा नहीं लिया है, जिससे विकास की उपेक्षा होती है।
समाज के तकरीबन सभी तबकों, सभी आयु वर्गों और बाकी क्षेत्रों के लिए सुधार। कार्यक्रम हैं। ऐसा करते हुए वह विकास और राजनीति के बीच घालमेल को काफी कम करने में सफल रही है।
लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं के मुकाबले विकास की भारी कमी वाले इस देश में कई और क्षेत्रों में सरकार का ध्यान आकर्षित करने की खातिर होड़ है। सरकार एक ही वक्त में कई मोर्चों पर आगे बढ़ रही है। सरकार की दिशा सही है। हालांकि, सुधारों या कार्यक्रमों के लागू होने की रफ्तार कई मामलों की सक्रियता पर निर्भर करती है। मसलन सरकारी इकाइयों के बीच समन्वय सुधारों को नाकाम करने के लिए निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा पेश की गई चुनौतियां।

स्वछता के लिए समय प्रयास

स्वछता और साफ़ पानी किसी भी देश की जनसख्या के स्वास्थ्य और मानव विकास के लिए अति महत्वपूर्ण है। हर वर्ष विश्व के लाखों लोग, जिनमें अधिकतर बच्चे हैं. स्वच्छ जल और साफ-सफाई की कमी के कारण होने वाली बीमारियों का शिकार होते हैं। स्वच्छ जल और साफ-सफाई जीवन के लिए बहुत जरूरी हैं और उनके अभाव में स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और परिवारों के जीविकोपार्जन पर बहुत बुरा असर पड़ता है। पिछले कुछ दशकों में सरकारों ने लगातार बुनियादी जरूरतों और मानवाधिकार क रूप में स्वच्छता अभियानों को शुरू किया है। इन अभियानों ने अनेक मोर्चे पर स्वच्छता की दिशा में कार्य किया है, जैसे खुले में शौच से मुक्ति (ओडीएफ) की स्थिति और मासिक
धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) इत्यादि। स्वच्छ भारत अभियान एक अभूतपूर्व कार्यक्रम है जो विश्व का सबसे बड़ा व्यवहारगत परिवर्तन अभियान है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना, स्वच्छता क दायरे को बढ़ाना, समुदायों को सतत स्वच्छता के लिए कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करना और ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन पर ध्यान केद्रित करना है, ताकि जिसके जरिए 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। 2014 में स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने लाल किले से यह आह्वान किया था कि 2 अक्तूबर, 2019 तक देश को स्वच्छ बनाना है। तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष की शुरुआत होगी। इसलिए विश्व के सबसे बड़े स्वच्छता कार्यक्रमस्वच्छ भारत मिशन का संकल्प लिया गया।

एसबीएम के अनेक कदमों में एक कदम ट्रिगरिंग भी है जो स्वच्छाग्रहियों की मदद से चलाया जाता है। स्वच्छाग्रही सामुदायिक स्तर के कार्यकर्ता और प्रेरक हैं। जो ग्राम स्तर पर स्वच्छता के प्रति सामूहिक दृष्टिकोण (सीएएस) को लागू करते हैं और औडीएफ राष्ट्र को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
स्वच्छाग्रही अधिकतर स्वाभाविक अगुवा। हैं जो मौजूदा व्यवस्थाओंजैसे पंचायती राज संस्थाओंसहकारी संघों, आशा, आंगनवाड़ी। कार्यकर्ताओंमहिला समूहोंसमुदाय केद्रित संगठनों, स्वयं सहायता समूहों इत्यादि के जरिए संलग्न हैं। वे ग्राम पंचायतों के साथ पहले से कार्य कर रहे हैं और उनमें से कुछ ने स्वच्छता के लिए विशेष रूप से अपनी सेवाएं देने की इच्छा जाहिर की है। वर्तमान में जमीनी स्तर पर 4.3 लाख स्वच्छाग्रही पंजीकृत हैं। मिशन का उद्देश्य यह है कि प्रत्येक गांव में एक स्वच्छाग्रही हो यानी मार्च 2019 तक कम से कम 6.5 स्वच्छाग्रहियों की फौज तैयार हो जाए।

महात्मा गांधी ने 10 अप्रैल, 1917 को चंपारण सत्याग्रह शुरू किया था। उसका उद्देश्य बिहार के लोगों की स्थिति में सुधार करना था जिसमें बुनियादी शिक्षा, कौशल विकास, महिला सशक्तीकरण और स्वच्छता प्रमुख थे। चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष समारोह के समापन पर 10 अप्रैल, 2018 को चंपारण में ही सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह अभियान का आयोजन शुरू किया गया। इस अवसर पर पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने बिहार सरकार के सहयोग से 3 से 10 अप्रैल तक सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह अभियान शुरू करके पूरे देश में स्वच्छता का संदेश फैलाने के लिए काम कियादेश के विभिन्न क्षेत्रों से आए 10000 से अधिक स्वच्छाग्रहियों ने बिहार के 10000 स्वच्छग्रहियों के साथ राज्य के 38 जिलों में व्यवहारगत परिवर्तन को ट्रिगर करने और जनांदोलन की गति को तेज करने के लिए काम किया ।
चार राज्यों-बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और जम्मूकश्मीर में एक साथ 13 मार्च और 10 अप्रैल के बीच 3091 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया जिसमें से 14.82 लाख 4 से 10 अप्रैल के बीच बनाए गए।

इस कार्यक्रम में एकजुटता की भावना ने देश को ओडीएफ बनाने की दिशा में समुदायों को जोड़ा है। यह एक ऐसा कदम है जो स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को और मजबूत करता है - एक जन-आंदोलन की सच्ची आत्माओं को दर्शाता है। इस मिशन ने दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए मिसाल कायम की है। मिशन मोड में स्वच्छता को हासिल करने और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 6 को प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। साथ ही सभी के लिए स्वच्छ जल और साफ-सफाई की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन को सुनिश्चित करने का महती कार्य भी किया है।

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Courtesy: Yojana