(GIST OF YOJANA) कर प्रणाली में सुधार [June -2018]
(GIST OF YOJANA) कर प्रणाली में सुधार [June -2018]
कर प्रणाली में सुधार
किसी भी उभरती हुई अर्थव्यवस्था को देश और विदेश दोनों मोर्चो से भरी कर प्रणाली
में सुधार किसी भी उभरती हुई अर्थव्यवस्था को देश और विदेश दोनों मोर्चो से भरी
निवेश की आवश्यकता होती है। लेकिन ऐसा निवेश आसानी से नहीं आता। इसके लिए ऐसी
न्यायोचित, निष्पक्ष, पारदर्शी तथा भेदभावरहित कराधान प्रणाली चाहिए, जो निवेशकों
को अपना धन उत्पादक उददेश्यों में लगाने के लिए प्रोत्साहित कर सके।
यह बात पूरी दुनिया में महसूस की गई है और सबसे अधिक विकसित अर्थव्यवस्थााओं
विशेषकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने बेहद प्रगतिशील कराधान प्रणाली लागू की है। एक
के बाद एक सरकारों के लिए कर सुधारो का उदेदेशयो कर आधार को बढ़ाना और कर ढांचे को
तर्कसंगत बनाना रहा है।
केंद्रीय कर ढांचे में व्यापक बदलाव
आयकर
1990 के दशक क मध्य में भारत आर्थिक सुधारों की राह पर बढ़ा ही था और कई विकासशील देश सुधार कर भी चुके थे, जिनमें व्यक्तिगत आयकर की दरें घटकर 15 25 और 35 प्रतिशत ही रह गई थीं। भारत ने भी 1997-1998 में उन्हीं की जैसी 10, 20 और 30 प्रतिशत दरें लागू कर दी थीं। प्रभावशीलता बढ़ाने के इरादे से दरों, उनकी संख्या और प्रसार को घटाया गया था। समूची विकासशील दुनिया मसलन पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका में कंपनी आयकर की दरें घटा दी गईकपनी आयकर की दरों में कमी के पीछे कुछ हद तक प्रशासनिक लचीलेपन और बेहतर कर अनुपालन के उद्देश्य थे, लेकिन वैश्वीकरण की ताकतें और पूंजी की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय आवाजाही इसका वास्तविक कारण थीं। भारत में देसी और विदेशी दोनों प्रकार की कंपनियों के। लिए कंपनी आयकर की दरें घटाकर क्रमश:35 और 40 प्रतिशत कर दी गई।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क
केंद्रीय उत्पाद शुल्क वैट की तरह। काम करता है, जो 1986-87 में मामूली तरीके से शुरू होने के बाद काफी आगे आ चुका है। उस समय कुछ निर्दिष्ट वस्तुओं के। उत्पादन के लिए चुने हुए कच्चे माल पर वैट जैसी क्रेडिट प्रणाली लागू की गई थी। 1994-1995 में पूंजीगत वस्तुओं पर कर क्रेडिट लागू कर दिया गया। आधेअधूरे वैट का जो ढांचा उभर रहा था, उस संशोधित वैट या मॉडवैट कहा गयाइसके बाद मुख्य दरों को घटाकर केवल 8 और 16 प्रतिशत करने के प्रयास किए गए और 2001 में इसका नाम बदलकर केंद्रीय वैट या सेनवैट कर दिया गया।
कर प्रशासन
किसी भी नए कर नीति सुधार की सफलता के लिए तीन अंग अहम होते हैं। करदाताओं के आधार
में विस्तार, कप्यूटरीकरण और राज्य स्तरीय वैट का क्रियान्वयन। केंद्रीय कर प्रशासन
में मिली सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी आयकर के लिए करदाताओं के आधार में
जबरदस्त इजाफा। 1990 के दशक के अध्य में करदाताओं की संख्या लगभग 1.4 करोड़ थी,
जिनमें 1 से 1.1 करोड़ करदाता कर अदा कर रहे थे। करदाताओं का मोटा हिसाबकिताब लगाने
पर पता लगा कि 100 करोड़ की कुल जनसंख्या में लगभग 30 करोड़ आबादी ऐसी थी, जो कर
चुका सकती थी। यदि एक परिवार में औसतन 5 सदस्य मानें तो 6 करोड़ संभावित करदाता बनते
थे। इनमें से 1 करोड़ को ड्रष्टाक परिवार मानकर निकाल देने पर अंत में 5 करोड़ कर
चुकाने योग्य परिवार निकलते थे। इस प्रकार केवल 20 प्रतिशत संभावित करदाता ही कर दे
रहे थे।
1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में स्वेच्छा से खुलासा करने का एक कार्यक्रम आया जिसमें
कमाई करने वाले ऐसे व्यक्तियों को कर योग्य आय शून्य होने के बावजूद पंजीकरण कराना
होता था, जिनके पास कोई संपत्ति अथवा टेलीफोन था और जिन्होंने विदेश यात्रा की थी।
इसका दायरा समय के साथ बढ़ा दिया गया ताकि और भी व्यक्तियों का पंजीकरण हो सके। वर्ष 2000 तक पंजीबूत करदाताओं की संख्या 2 करोड़ से अधिक हो गई थी। शोध बताता है कि मामूली समय में ही संभावित करदाताओं की संख्या दोगुनी हो गई, जबकि दशकों तक यह काम नहीं हो पाया था। 2005 में इस पंजी में लगभग 3 करोड़ लोग शामिल थे, जिनमें से करीब 2.5 करोड़ लोग वर्तमान करदाता माने जाते हैं।
वास्तव में कर सुधारों की दिशा में पहल 1980 के दशक के मध्य में आरंभ हुई, जब सरकार
ने दीर्घकालिक राजकोषीय नीति, 1985 की घोषणा की। इस नीति में माना गया कि देश की
राजकोषीय स्थिति बिगड़ रही है और कराधान प्रणाली में बदलाव करने की आवश्यकता है। उस
दशक में केंद्रीय उत्पाद शुल्कों की समीक्षा करने और उन्हें तर्कसंगत बनाने के लिए
एक तकनीकी समूह का गठन किया गया और उसके बाद 1986 में मूल्यवर्द्धित कर की संशोधित
: प्रणाली (मॉडवैट) लागू की गई। शोध पत्रों के अनुसार सीमा शुल्कों को तर्कसंगत
बनाने के लिए वस्तुओं के वर्गीकरण के लिए एकसमान प्रणाली (एचएस) आरंभ की गई।
उसके बाद सरकार ने कराधान प्रणाली को पूरी तरह ठीक करने के लिए और fउसे
अंतरराष्ट्रीय कराधान प्रणाली अथवा दरों के समतुल्य बनाने के लिए दो बहुत नों
वरिष्ठ अफसरशाहों की अध्यक्षता में एक बाद के बाद एक दो समितियां बनाई। इस प्रकार
राजा चेलैया समिति और विजय केलकर समिति अस्तित्व में आई। उनकी सिफाररिशें एकटाहिसिक
थी।
राजा चेलैया समिति
सरकार ने प्रोफेसर राजा चेलैया के नेतृत्व में कर सुधार समिति गठित की , जिसका काम भारत की कर प्रणाली में सुधार के लिए कार्यसूची तैयार करना था। इस कर। सुधार समिति ने 1991, 1992 और 1993 में तीन रिपोर्ट पेश कीं। इनमें कई उपाय दिए गए। थे, जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं
- सीमांत कर दरों में कमी लाकर व्यक्तिगत कराधान प्रणाली में सुधार करना।
- कपनी कर की दरों में कमी लाना।
- सीमा शुल्क घटाकर आयातित इनपुट सामग्री की लागत कम करना।
- सीमा शुल्क दरों की संख्या कम करना और उन्हें तर्कसंगत बनाना।
- उत्पाद शुल्कों को सरल बनाना और उन्हें वैट प्रणाली के साथ मिलाना।
- सेवा क्षेत्र को वैट प्रणाली के भीतर कर के दायरे में लाना।
- कर आधार को विस्तार देना ।
- कर सूचना नेटवर्क तैयार करना एवं कप्यूटराकरण करना।
- कर प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार। चेलैया समिति के साथ शुरू हुए कर सधार आज भी जारी हैं। बाद में सरकार ने 2002 में विजय केलकर समिति गठित की। जिसने देश में कर सुधारों को दिशा प्रदान की।
प्रत्यक्ष कर संचालन
- करदाताओं को बेहतर गुणवत्ता और सही मात्रा में सेवा मिलनी चाहिए तथा उन्हें इंटरनेट एवं ईमेल के जरिये ये आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए
- स्थायी लेखा संख्या (पैन) का विस्तार होना चाहिए और सभी नागरिक उसमें शामिल होने चाहिए।
- जांच एवं जब्ती के मामलों का इकट्ठा निर्धारण बंद होना चाहिए।
- पिछले बचे कार्य को निपटाने के लिए विभाग को डेटा इंट्री का कार्य बाहर से करा लेना चाहिए
- रिटर्न तथा रिफंड से जुड़े सभी मसले चार महीने के भीतर पूरे हो जाने चाहिए रिफंड भेजने का काम बाहर से कराना चाहिए।
- कर संग्रह विशेषकर टीडीएस एवं टीसीएस को आधुनिक, सरल एवं तर्कसंगत बनाने के लिए सरकार को कर सूचना नेटवर्क की स्थापना करनी चाहिए।
- देश छोड़ने पर कर क्लियरेंस प्रमाणपत्र की आवश्यकता समाप्त हो।
- सीबीडीटी को उचित प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार देकर सशक्त बनाया जाए।
व्यक्तिगत आयकर
- करदाताओं की सामान्य श्रेणी के लिए छूट की सीमा बढ़ाकर 1 लाख रुपये की जाए और वरिष्ठ नागरिकों तथा विधवाओं के लिए और भी छूट दी जाए।
- आयकर श्रेणियों को तर्कसंगत बनाया जाए, व्यक्तिगत आयकर पर उपकर समाप्त किया जाए। आवास ऋण पर 2 प्रतिशत ऋण
- सब्सिडी प्रदान कर आवास ऋण को बढ़ावा दिया जाए।
- पेंशन फंडो में योगदान पर धारा 80 सीसीसी के अंतर्गत कटौती बढ़ाई जाए।
कंपनी कर
- देसी कंपनियों के लिए कंपनी कर घटाकर प्रतिशत और विदेशी 30 कंपनियों के लिए 35 प्रतिशत किया जाए।
- सूचीबद्ध कंपनियों को लाभांश एवं पूंजीगत लाभ पर कर से छूट दी जानी चाहिए
- संयंत्र एवं मशीनों के लिए मूल्यह्रास की दर बढ़ाई जाए।
- न्यूनतम वैकल्पिक कर समाप्त कियाजाए।
संयदा कर
संपदा कर समाप्त किया जाए। उपरोक्त सिफारिशें 13 वर्ष पूर्व की गई थीं। आज उनमें से अधिकतर लागू हो गई हैं। डीटीसी और जीएसटी क्रमश: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सरकार द्वारा आरंभ किए गए अब तक के सबसे बड़े सुधार हैं। कितु डीटीसी आ ही नहीं पाया है और सरकार इसके प्रति बहुत गंभीर दिख भी नहीं रही है क्योंकि इसके अधिकतर प्रावधान आयकर अधिनियम में शामिल किए जा चुके हैं। जीएसटी 1 जुलाई, 2017 को लागू हो गया।
प्रमुख प्रत्यक्ष कर सुधार
कर सूचना नेटवर्क ( टिन )
आयकर विभाग की ओर से नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) ने कर सूचना नेटवर्क (टिन) की स्थापना की। यह देश भर में कर से संबंधित जानकारी का स्रोत है।, टिन की स्थापना के पीछे बुनियादी उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर प्रत्यक्ष कर क के संग्रह, निपटारे, निगरानी एवं लेखा के काम को आधुनिक बनाना था। कर विशेषज्ञों के अनुसार टिन में तीन उप प्रणलियां – ईआरएसीएस ओएलटीएएस और सीपीएलजीएस हैं।
इलेक्ट्रॉनिक रिटर्न एक्सेप्टेंस एवं कंसॉलिडेशन सिस्टम (ईआरएसीएस )
ईआरएसीएस में करदाताओं से संपर्क के लिए एक प्रणाली (टिन फैसिलिटेशन केंद्र या टिन-एफसी) होती है और स्रोत पर कटे गए कर (टीडीएस) एवं स्रोत पर संग्रहीत कर (टीसीएस) के इलेक्ट्रॉनिक रिटर्न तथा वार्षिक सूचना रिटर्न (एआईआर) टिन की केंद्रीय प्रणाली में अपलोड करने के लिए इंटनरेट की सुविधा वाली व्यवस्था होती है।
ऑनलाइन टैक्स अकाउंटिंग सिस्टम (ओएलटीएएस)
ओएलटीएएस का इस्तेमाल देश भर में फैली कर संग्रह की विभिन्न शाखाओं में रोजाना जमा होने वाले कर का विवरण केंद्रीय प्रणाली में अपलोड करने के लिए होता है
सेंट्रल पैन लेजर जेनरेशन सिस्टम ( सीपीएलजीएस )
यह टीडीएसटीसीएस एवं अग्रिम कर के विवरण को पैन के साथ मिलाने वाली केंद्रीय प्रणाली
ई-टीडीएस एवं ई-टीसीएस
स्रोत पर काटे हुए कर को टीडीएस कहते हैं। तीसरा पक्ष स्रोत पर कर काटता है। और उसे पहले से निश्चित बैंक शाखाओं में जमा कर देता है। 2004-05 से ही सरकार एवं निजी क्षेत्र के लिए इलेक्ट्रॉनिक टीडीएस रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही आयकर अधिनियम, 1961 कहता है कि जब विक्रेता खरीदार से स्रोत पर कर संग्रह करता है तो इसे टीसीएस कहा जाता ' है। < 'प्रीत पर संग्रहित कर के रिटर्न की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग की योजना, 2005' के अंतर्गत कटौती करने वाले कपनी एवं सरकार के प्रतिनिधियों को एनएसडीएल के पास इलेक्ट्रॉनिक अथवा कागजी भुगतान करना होता है।
प्रत्यक्ष कराधान में अन्य पहल
ईसहयोग कार्यक्रम: कागजरहित निर्धारण
सूचना प्रौद्योगिकी ने करदाताओं का जीवन आसान कर दिया है क्योंकि उन्हें बैंक चालान जमा करने के लिए खुद बैंक नहीं जाना पड़ता और निर्धारण अधिकारी के सामने अपना मामला और दस्तावेज पेश नहीं करने पड़ते।
तेज रिफंड
आयकर विभाग 10 कार्यदिवसों में ही कर रिफंड निपटाने और भेजने की दिशा में काम कर रहा है। आयकर रिटर्न को आधार अथवा डेटाबेस से बैंक के सत्यापित करने का काम आरंभ किया जा चुका है।
पहले से भरे गए आयकर रिटर्न फॉर्म
ऑनलाइन फॉर्म आने के बाद भी कई लोग के लिए कप्यूटर से डाउनलोड किए कर गए फॉर्म का प्रयोग करते हैं। विभाग अब पहले से भरे हुए फॉर्म देने की पहल कर रहा है, जिनमें प्रयोगकर्ता/करदाता की जानकारी स्वत: भरी होगी और पहले से भरी जानकारी के साथ उसे डाउनलोड किया जाएगा।
पैन शिविर
पैन का दायरा बढ़ाने के लिए सरकार पूरे भारत में पैन शिविर चलाती आ रही है। आयकर बिजनेस एप्लिकेशन - स्थायी लेखा संख्या (आईटीबीए-पैन) पोर्टल आरंभ करने का भी प्रस्ताव है, जिसके जरिये कोई भी पैन के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकेगा और 48 घंटे के भीतर उसे पैन मिल भी जाएगा।
अप्रत्यक्ष कर सुधार
भारत में अप्रत्यक्ष कर में पहला सुधार तब आया, जब 1986 में चुनिंदा उत्पादों में केंद्रीय उत्पाद शुल्क के बजाय संशोधित मूल्यवर्द्धित कर (मॉडवैट) लागू किया गया।
सीमा शुल्क में कमी
1990 में गैर खषि उत्पादों पर सीमा शुल्क की दर लगभग 128 प्रतिशत थी। उसे धीरे-धीरे कम किया गया। इस समय औसत सीमा शुल्क 11-12 प्रतिशत है, लेकिन उसकी दरें 0 से 150 प्रतिशत तक हैं।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क
केंद्रीय उत्पाद शुल्क के स्थान पर पहले मॉडवैट लागू किया गया था और अब सेनवैट लगाया गया है। विभिन्न प्रकार के शुल्कों की संख्या कम की गई।
सेवा कर
सबसे पहले 1994-95 में चुनिंदा सेवाओं पर 7 प्रतिशत की दर से सेवा कर लगाया गया था। इसकी दर धीरे-धीरे बढ़ाई गई और कर के दायरे में आने वाली सेवाओं की संख्या भी बढ़ाई गईइस समय लगभग 100 सेवाओं पर 14 प्रतिशत कर लग रहा है।
वस्तु एवं सेवा कर
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) देश में अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार है। इसमें कुछ गंभीर समस्याएं आईंजिन्हें भाजपा सरकार ने सुधारा और ठीक कर दिया ताकि करदाताओं के लिए इसका पालन करना आसान हो जाए।
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Courtesy: Yojana