(GIST OF YOJANA) भारत में पोषण के उपाय [May-2018]


(GIST OF YOJANA) भारत में पोषण के उपाय [May-2018]


भारत में पोषण के उपाय

भारत ने पिछले दो दशकों में आर्थिक और सामाजिक स्तर पर विकास किया है , लेकिन माताओं और शिशुओं में कुपोषण अब भी| सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। वर्तमान सरकार के लिए भी यह एक नीतिगत प्राथमिकता है। भारत में पांच वर्ष तक के 4 करोड़ से भी अधिक बच्चे अविकसित (स्टंडेड) हैं, जबकि एक करोड़ 70 लाख से भी अधिक कमजोर (वेस्टेड) हैं। पिछले 10 वर्षों के दौरान हमारे देश में पोषण के विभिन्न एंथ्रोपोमैट्रिक उपायों में सुधार हुआ है, इसके बावजूद बच्चों में कुपोषण का स्तर विश्व में सबसे अधिक है। भारत के विभिन्न राज्यों में अनेक प्रकार की असमानताएं हैं, इस कारण प्रत्येक राज्य में कुपोषण की स्थिति भी भिन्न-भिन्न है। अगर हम चाहते हैं कि भविष्य में बच्चों में पोषण की स्थिति में सुधार हो तो हमें मानव संसाधन में उल्लेखनीय निवेश करना होगा, खास तौर से स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बहुत जरूरी है?

पोषण संबंधी मुख्य आंकड़े

1990 के प्रारंभ में गिरावट के बावजूद भारत में कुपोषण संबंधी आंकड़े विश्व में सबसे उच्च हैं। हाल ही में एनएफएचएस 4 के आंकड़ों से अधिकतर संकेतकों में सुधार के उत्साहजनक परिणाम हासिल हुए हैं।
यह कहना जरूरी है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कुपोषण से अधिक ग्रस्त होती हैं।
स्वास्थ्य संबंधी मुख्य केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) में पिछले दो वर्षों के दौरान बजटीय कटौतियां की गई हैं। आईसीडीएस के लिए केंद्रीय आबंटनों में 10 प्रतिशत की गिरावट हुई है, यह 15,502 करोड़ रुपए (वित्तीय वर्ष 2015-16) से घटकर 14000 करोड़ रुपए (वित्तीय वर्ष 2016-17) हो गया है। आंगनवाड़ी केंद्रों में मुख्य बुनियादी ढांचे में निवेश की जरूरत है (आधे से अधिक आंगनवाड़ी केंद्रों में वयस्कों के लिए वजन के काटे चालू स्थिति में नहीं हैं) और आंगनवाड़ी कर्मचारियों (एडब्ल्यूडब्ल्यू) का निरीक्षण किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि वे लक्षित समूहों को अनुपूरक पोषण लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। एक अनुपूरक सरकारी पहल स्कूलों में भोजन का प्रावधान करना है। जो मध्यान्ह भोजन की योजना से फलीभूत किया जाता है। फील्ड अध्ययन बताते हैं। कि स्कूल में भोजन और बच्चों में संज्ञान संबंधी सुधार के बीच गहरा संबंध है। इसके अतिरिक्त यह भी पाया गया है कि स्कूलों में । भोजन मिलने से बच्चों में सीखने की क्षमता बढ़ती है। विभिन्न राज्यों में पोषण की भिन्न-भिन्न स्थितियां और स्टंटिंग को कम करने के संबंध में प्रगति।

वर्तमान नीतिगत ढांचा

सरकार की मुख्य पोषण योजनाओं में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का आईसीडीएस कार्यक्रम और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का एनआरएचएम कार्यक्रम शामिल हैं। ये दोनों केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं हैं और गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली माताओं तथा शिशुओं के लक्षित समूहों को पोषण प्रदान करने के लिए समुदाय केंद्रित संगठनों - आईसीडीएस के अंतर्गत आंगनवाड़ी केन्द्रो और आंगनवाड़ी कर्मचारीयो और एनआरएचएम के अंतर्गत मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ (आशा) की भूमिका को प्राथमिकता देती है
इन कार्यक्रमों को पीडीएस से जोड़ा गया है जिसका प्रयोग देश के गरीब तबके को सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त छह से अधिक राज्यों, जिनमे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओड़िसा, गुजरात, कर्नाटक और हाल ही में झारखण् शामिल है, ने राज्य पोषण मिशन शुरू किये गए है। बच्चो के जीवन के शुरूआती 1,000 दिनों से सीधे तौर से संबधित सरकारी कार्योक्रमों का विवरण तालिका 5 में दिया गया है।
राष्ट्रिय पोषण मिशन (एएनएम) को तीन वर्षो के बजट (904617 करोड़ रुपए) जे साथ 2017- 18 में शुरू किया कृषि क्षेत्र में राहत कार्यक्रमों को कम किया जा रहा है। यह प्रयास किया जाना चाहिए कि ऐसा न हो- साथ ही ऐसे नकदी फसलों के उत्पादन को हतोत्साहित किया जाना चाहिए जिनसे कोई पोषण प्राप्त नहीं होता, जैसे गन्ना और कपास। कृषि क्षेत्र का ध्यान इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए आहार की गुणवत्ता को सुरक्षित किया जा सके।

नीतिगत सुझाव

भारत में कुपोषण की समस्या और मौजूदा नीतिगत पहल के मूल्यांकन से प्राप्त निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं। आईसीडीएस को सशक्त और पुनर्गठित करना_और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का लाभ उठाना आईसीडीएस को मिशन मोड में चलाया जाना चाहिए एवं पर्याप्त वित्तीय संसाधन केद्र सरकार से) और निर्णय लेने वाले प्राधिकरण को मंजूरी दी जानी चाहिए।

आईसीडीएस के अंतर्गत आने वाले कार्यक्रमों

को अंतिम छोर तक लाभ पहुंचाना चाहिए एवं अनुपूरक भोजन के पोषक तत्वों का मानकीकरण करना चाहिए। गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली माताओं को शिक्षा प्रदान करने को प्राथमिकता देनी चाहिए कार्यक्रम के लक्ष्य में सुधार करना चाहिए। तथा बेहतर ढांचागत प्रावधानों एवं आंगनवाड़ी कर्मचारियों के प्रशिक्षण के जरिए आंगनवाड़ी केंद्रों के कामकाज को सरल और कारगर बनाना चाहिए।

राष्ट्रिय पोषण मिशन के लक्ष्यों के साथ कृषि नीति का तालमेल

कृषि और पोषण नीति के बीच तालमेल बनाया जाना चाहिए। अपने उपभोग के लिए पोषणपूर्ण और स्थानीय फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए। कृषि क्षेत्र में राहत कार्यक्रमों को कम किया जा रहा है। यह प्रयास किया जाना चाहिए कि ऐसा न हो- साथ ही ऐसे नकदी फसलों के उत्पादन । को हतोत्साहित किया जाना चाहिए जिनसे कोई पोषण प्राप्त नहीं होता, जैसे गन्ना और कपास। कृषि क्षेत्र का ध्यान इस बात पर केद्रित होना चाहिए कि शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए आहार की गुणवत्ता को सुरक्षित किया जा सके।

विभिन्न राज्यों में पोषण ल भिन्न- भिन्न स्थितियां

संकेतक औसत सबसे अच्छा प्रदर्शन सबसे खराब प्रदर्शन
स्टंटेड बच्चे (पांच वर्ष तक की आयु ) 38.7 % केरल : 19.4%
गोवा : 21.3%
तमिलनाडु : 23.3%
झारखण्ड : 42.1%
बिहार : 37.1%
मध्यप्रदेश : 36.1%
वेस्टेड बच्चे (पांच वर्ष तक की आयु) 15.1% सिक्किम : 5.1%
मणिपुर : 7.1%
जम्मू और कश्मीर : 7.1%
झारखण्ड : 42.1%
बिहार : 37.1%
मध्यप्रदेश : 36.1%
अंडरवेट बच्चे (पांच वर्ष तक की आयु) 29.4% मणिपुर : 14.1%
मिजोरम : 14.8%
जम्मू और कश्मीर : 15.6%
झारखण्ड : 42.1%
बिहार : 37.1%
मध्यप्रदेश : 36.1%

पोषण पहल (बच्चे के जीवन के परले 1,000 दिनों से संबधित)

लक्षित समूह योजनाएं  मुख्य पहल
गर्भवती और स्तनपान करने वाली माताएं आईसीडीएस आईसीडीएस: अनुपूरक पोषण, खान-पान, आराम और स्तनपान पर परामर्श, स्वास्थ्य एवं पोषण के संबंध में शिक्षा
  इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग
योजना (आईजीएमएसवाई)
 
अतिरिक्त मातृत्व लाभ
  प्रजनन बाल स्वास्थ्य एनआरएचएम: प्रसव पूर्व
  (आरसीएच-II), राष्ट्रीय
ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
(एनआरएचएम), जननी
सुरक्षा योजना (जेएसवाई)
 
देखभाल, परामर्श, आयरन सप्लीमेंटेशन टीकाकरण, अस्पताल में प्रसव के लिए परिवहन की सुविधा, अस्पताल
में प्रसव, नकद हस्तांतरण, प्रसव उपरांत देखभाल, स्तनपान और दो बच्चों के जन्म के बीच में अंतर के संबंध में परामर्श , इत्यादि
 
बच्चे (0-3 वर्ष) आईसीडीएस आईसीडीएस: अनुपूरक पोषण, विकास का निरीक्षण, बच्चे की देखभाल के संबंध में माता को स्वास्थ्य संबंधी परामर्श, शिशु और छोटे बच्चों क स्तनपानको प्रोत्साहित करना , बालपन में स्टिमुलेशन के लिए घर पर
परामर्श, कुपोषण का शिकार और बीमार बच्चों के लिए रेफरल और
निरंतर जांच (फॉलो अप)
 
  आरसीएच-II, एनआरएचएम एनआरएचएम: घर पर नवजात की देखभाल, टीकाकरण, सूक्ष्म पोषक तत्व देना, कृमिनाश, स्वास्थ्य जांच, बच्चों की बीमारियों और गंभीर कुपोषण से निपटना, शिशु के पहले एक महीने के दौरान रेफरल और नकदरहित उपचार, बीमार नवजात की देखभाल, गंभीर कुपोषण की स्थिति में स्थ्यकेंद्र में देखभाल और निरंतर जांच (फॉलो अप)
  राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रेश
योजना
 
राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रश योजना: कामकाजी माताओं के बच्चों की
देखभाल के लिए सहयोग
 

निष्कर्ष

सतत विकास के लिए किसी भी देश की जनसख्या बहुत मायने रखता है और भारत के समक्ष एक चुनौती यह है की वह किस प्रकार भविष्य में अपनी युवा जनसंख्या का लाभ उठाएसरकार के कई कार्यक्रमों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आने वाले वर्षों में उसके पास प्रशिक्षित श्रमशक्ति उपलब्ध है अथवा नहीं। भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित बच्चे रहते हैं : 2010 में 12 करोड़ 10 लाख बच्चों (पांच वर्ष से कम आयु के) में से 52 प्रतिशत जोखिम ग्रस्त थे। देश की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के मद्देनजर पोषण कार्यक्रम को स्वास्थ्य कार्यक्रमों से जोड़ने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पोषण नीति को बच्चे के जीवन के पहले 1,000 दिनों को लक्षित करना चाहिएभारत का विकास मजबूत कंधों पर टिका रहे, इसके लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। भारत ने राष्ट्रीय पोषण मिशन के रूप में एक आशाजनक प्रतिबद्धता जताई है जो देश के बच्चों और माताओं में कुपोषण की समस्या से निपटने में मदद करेगा। हमें अपने पोषण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी रणनीति के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। "

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Courtesy: Yojana